साम्प्रदायिकता (Communalism) का इक्कीसवीं सदी के भारत- “नए भारत (New India)” की सोच में जगह बना लेना, चिंता का सबब है। “नए भारत (New India)” की सारी तरक्की उस समय खोखली लगती है जब एक धर्म या सम्प्रदाय का युवा दूसरे धर्म के लोगों को नीचा दिखाने की कोशिश करता है।
इक्कीसवीं सदी की जब शुरुआत हुई तो बीसवीं सदी का भारत दुनियाभर के देशों के मुकाबले अपेक्षाकृत युवा जनसंख्या के बल पर एक “नए भारत (New India)” का ख्वाब अपने पलकों पर संजोने लगा था।
भारत में उन्नति की संभावना और भारतीयों की कार्य-क्षमता को पूरी दुनिया ने एक नए नजरिये से देखना शुरू कर दिया। जिस भारत पर अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाया जाता था, इक्कीसवीं सदी का भारत विश्व की उसी महाशक्ति के लिए एक अहम कूटनीतिक और व्यापारिक मित्र देश बन रहा था।
क्रिकेट का मैदान हो या स्पेस मिशन या अर्थव्यवस्था और बाजार के दांव-पेंच, विश्व पटल पर अपनी बात रखनी हो या संयुक्त राष्ट्र संघ के अहम फैसले…. हर जगह “नया भारत (New India)” अब दुनिया के बड़े देशों का फॉलोवर नहीं, दुनिया को लीड करने वाला देश के रूप में देखा जाने लगा।
यह सब हो भी क्यों ना… “नया भारत” अपने युवा पीढ़ी के कंधों पर नए जोश और मेहनत के बदौलत हर जगह अपनी छाप छोड़ रहा है। कृषिप्रधान देश के युवा टेक्नोलॉजी में दुनिया भर के बड़ी संस्थानों में “डिसीजन मेकर्स” की भूमिका में शामिल हुए।
इक्कीसवीं सदी के नए भारत (New India) की तरक्की का जब भी इतिहास लिखा जाएगा, उसमें इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IT) के क्षेत्र में भारत की बादशाहत सुनहरे अक्षरों में दर्ज किया जाएगा।
टेक्नोलॉजी और खासकर इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (IT) के विकास में यूँ तो कई शहरों की गाथाएं लिखी जाएंगी, लेकिन “सिलिकॉन वैली” के नाम से प्रसिद्ध कर्नाटक (Karnataka) राज्य के बंगलुरु (Banglore) शहर का नाम सबसे पहले लिखा जाएगा और निःसंदेह इसका श्रेय कर्नाटक और देश की युवा शक्ति को ही जाएगी।
सफलता के इस कहानी के नायकों यानि देश की युवाशक्ति को पता नहीं किसकी नज़र लग गयी है कि इन्हीं युवाओं के बीच का एक वर्ग साम्प्रदायिकता (Communalism) के नशे में डूबता जा रहा है। “सिलिकॉन वैली” वाले राज्य से शुरू हुआ हिजाब और हलाल व अन्य साम्प्रदायिक विवाद अचानक पूरे देश मे सिर उठाने लगा है।
यहाँ यह स्पष्ट कर देना बहुत जरूरी है कि, ऐसा नहीं है कि इस से पहले देश मे साम्प्रदायिकता नाम की चिड़िया नहीं थी। देश का विभाजन भी 1947 में साम्प्रदायिकता के आधार पर हुआ था लेकिन वह जिन्ना थे, गाँधी नेहरू पटेल या अम्बेडकर नहीं, जिन्हें एक विशेष सम्प्रदाय के लिए अलग देश चाहिए था।
यह भी सच है कि आज़ादी के बाद भी राजनीति के धुरंधरों ने समय समय पर इसे हमेशा से भड़काया है लेकिन “नए भारत” में भी इनका इन दिनों अचानक हावी हो जाना शर्मनाक व दुखद भी है और नए भारत (New India) के माथे पर एक धब्बा भी।
साम्प्रदायिकता की हालिया खबरें
उपरोक्त बातों का तार्किक प्रमाण है बीते दिनों की सुर्खियाँ…. ऐसी सुर्खियां किसी एक राज्य से नहीं, बल्कि एक राज्य से शुरू होकर देश के कई अलग अलग हिस्सों से आई है।
सबसे पहले बात कर्नाटक (Karnataka) की..
कर्नाटक से शुरू हुआ हिज़ाब विवाद आज कई और रूप में सामने आया। देश के नौनिहाल जो अभी अपने सपनों को संजोने के लिए स्कूल और कॉलेज की दहलीज़ पर खड़े थे, हमने (समाज) ने हिज़ाब पहनने और ना पहनने जैसे सवालों में उलझा दिया।
आप किसी भी मीडिया या सो कॉल्ड विशेषज्ञ की टिप्पणी देखिये, सब जगह की हेडलाइन्स में इसे हिज़ाब पहनने या ना पहनने का विवाद बताया गया। पर इन सब के बीच सच्चाई कहीं दूर रह गयी कि यह विवाद “स्कूल यूनिफॉर्म के साथ हिजाब पहनने और ना पहनने का विवाद” था। परंतु हर ख़बर के भीतर तो “स्कूल यूनिफॉर्म” वाली बात थी, उसे बड़ी चालाकी से हेडलाइंस से ग़ायब कर दी गयी।
चूँकि “नया भारत (New India)” पूरी ख़बर को पढ़ने के बाद भी हेडलाइंस याद रखना जानता है; नतीजतन इस मुद्दे से जुड़ी बहस जो आम जनमानस को प्रभावित करती हैं, वह किसी और ढर्रे पर चली गयी और इस पूरे मामले को एक सम्प्रदाय के खिलाफ दूसरे सम्प्रदाय को खड़ा करने की कवायद के तौर पर पेश किया गया।
अब इन सब से हुआ यह कि समाज में साम्प्रदायिक तनाव वाली चिंगारी को हवा मिल गयी। इस आग में “नए भारत” के युवा जिनके बीच बेरोजगारी एक भीषण समस्या है, कूद पड़े।
हिजाब के बाद नंबर आया हलाल मीट का…. गुड़ी पड़वा के शुभ मौके पर कई हिंदूवादी संगठनों ने खुलेआम हलाल मीट के विक्रय पर प्रतिबंध की मांग की।
बात यहीं थमती तब भी …. लगे हाँथ कई राज्य हिन्दू मंदिरों ने एलान कर दिया कि हिन्दू त्योहारों के दौरान मंदिर परिसर में मुस्लिम दुकानदारों को दुकान लगाने नहीं दिया जाएगा। साम्प्रदायिक सद्भाव से मिलजुल कर रह सदियों से रह रहे इन दुकानदारों की न सिर्फ रोजी रोटी गई, बल्कि साम्प्रदायिकता को नई हवा भी मिली।
मुस्लिम समुदाय के रहनुमाओं ने भी इन सब के खिलाफ देश भर में धरना प्रदर्शन किया लेकिन इन सब के बीच जो चीज बिखर गई वह थी- कर्नाटक का सामाजिक और साम्प्रदायिक सद्भाव।
देश के अन्य हिस्सों में भी साम्प्रदायिक तनाव
कर्नाटक (Karnataka) से उठी सांप्रदायिकता की हवा देश भर में फैल गयी। राजस्थान के करौली में नव-संवत्सर के पावन मौके पर भड़के साम्प्रदायिकता की आग ने “नए भारत” के संकल्पना पर एक और सवालिया निशान छोड़ गया।
हालाँकि करौली दंगो(Karauli Violence) के बीच राजस्थान पुलिस से जांबाज कॉन्स्टेबल नेत्रेश शर्मा ( Constable Netresh Sharma) की मानवता, कर्तव्यनिष्ठा और बहादुरी की मिसाल भी सामने आए।
अब नए भारत के युवाओं को चुनना होगा कि वे उस भीड़ का हिस्सा बनना चाहते हैं जिसने दंगो में आगजनी और पथराव को अंजाम दिया है या फिर कर्तव्यपरायण नेत्रेश शर्मा जैसे बहादुर उदाहरण।
राजस्थान से अब चलते हैं उत्तर-प्रदेश जहां हालिया चुनावों में सामाजिक ध्रुवीकरण एक बड़ा मुद्दा रहा। नई सरकार के मुखिया श्री योगी आदित्यनाथ के जिले गोरखपुर में एक मुस्लिम युवक अहमद मुर्तजा अब्बासी द्वारा गोरक्षनाथ मंदिर के बाहर लोगों पर चाकू से हमला किया जाता है। उसे (अहमद मुर्तजा को) भी यही लगता है कि उसके धर्म यानी इस्लाम को दुनिया भर में सताया जा रहा है।
उत्तर प्रदेश से ही नवरात्र के दौरान मेरठ में एक बिरयानी वाले का ठेला कुछ हिन्दू युवकों द्वारा इस शक के आधार पर पलट दिया जाता है कि वह नवरात्रि में नॉनवेज बिरयानी बेच रहा था; लेकिन जब ठेला पलट दिया गया और विवाद ने अपने पांव पसार लिए उसके बाद पता चला कि जिसे नॉनवेज बिरयानी बताकर ठेला पलट दिया गया, असल मे वह सोयाबीन वाली वेज बिरयानी थी।
उत्तर प्रदेश के बाद महाराष्ट्र में राज ठाकरे के बयान सांप्रदायिकता के आग में घी डालने जैसा था जब उन्होंने कहा कि अगर महाराष्ट्र में लाउडस्पीकर से अज़ान होना बंद नहीं हुआ तो महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के लोग लाउडस्पीकर से हनुमान चालीसा बजाना शुरू कर देंगे।
I am not against prayers, but the government should take a decision on removing mosque loudspeakers. I am warning now… Remove loudspeakers or else will put loudspeakers in front of the mosque and play Hanuman Chalisa: MNS chief Raj Thackeray, in Mumbai, Maharashtra pic.twitter.com/MjSVrWJ5XK
— ANI (@ANI) April 2, 2022
उनके इस बयान से मिलती-जुलती बयानबाजी देश के कई और हिस्सों में भी शुरू हो गई। राज ठाकरे के समर्थन में महाराष्ट्र बीजेपी ने भी लोगों को मंदिरों में लगाने के लिए फ्री में लाउडस्पीकर देने की घोषणा कर दी।
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संविधान क्या कहता है धर्म और संप्रदायिकता के विषय पर
आज़ाद भारत के संविधान सभा मे शामिल महापुरुषों ने अपने आँखों से हिन्दू मुस्लिम एकता को छिन्न भिन्न होते देखा था और अंततः उसी धर्म और संप्रदाय (Communalism) के आधार पर देश का बंटवारा होते देखा था।
इसी वजह से उन महापुरुषों ने आज़ाद भारत को धर्म-निरपेक्ष रखने का फैसला किया था तथा नीति निर्देशक तत्व के अंदर केंद्र व राज्य की सरकारों के ऊपर यह जिम्मेदारी दी गई कि समाज मे साम्प्रदायिक और धार्मिक सद्भाव बनाना उनका काम होगा।
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 भारत के नागरिकों को अपनी श्रद्धा और इच्छानुसार धर्म चुनने और उसके उपासना की स्वतंत्रता देता है। साथ ही हमारा संविधान हमें इस बात की भी आजादी देती है कि हम क्या खाएं, क्या ना खाएं (Eating Habits); यह तय करने का अधिकार सिर्फ हमें है।
झटका मीट खाना है या हलाल, यह एक नागरिक का व्यक्तिगत अधिकार है। नवरात्र के दौरान मीट की दुकानें खुलेंगी या बंद होंगी, यह “नए भारत” मे कैसे तार्किक हो सकता है?
भारत एक विशाल देश है और यहाँ हिन्दू धर्म मानने वाला एक बड़ा वर्ग नवरात्र के दौरान भी मीट का सेवन करता है। ऐसे में चंद मुट्ठी भर लोग कैसे यह तय करेंगे कि किसी शहर में वेज बिरयानी ही बिकेंगी या नॉनवेज बिरयानी वालों का ठेला पलट दिया जाएगा?
समाज मे फैल रहा साम्प्रदायिकता का ज़हर
-अब ऊपर लिखित कुछ घटनाएं महज़ उदाहरण हो सकते हैं पर सच तो यही है कि साम्प्रदायिकता का जहर धीरे-धीरे समाज मे पैर पसार रहा है और हमारी सरकारें कई जगहों पर इसे मूक समर्थन भी दे रहे हैं। इसके चपेट में कोई एक धर्म या कोई एक सम्प्रदाय आएगा, ऐसा नहीं है। साथ ही हमें ये भी समझना होगा कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है।
देश ने अतीत में साम्प्रदायिक हिंसा को गाहे बगाहे खूब झेला है, लेकिन “नए भारत (New India)” की सोच में साम्प्रदायिकता का जगह बना लेना, चिंता का सबब है। “नए भारत (New India)” की सारी तरक्की उस समय खोखली लगती है जब एक धर्म या सम्प्रदाय का युवा दूसरे धर्म के लोगों को नीचा दिखाने की कोशिश करता है।
ऐसी स्थिति में सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वह इन युवाओं की शक्ति को सही दिशा में लगाए ना कि धर्म और संप्रदाय के झगड़ो में उलझा रहे।