Mon. Nov 18th, 2024
    सरकारी नौकरी 1

    सरकारी नौकरी (Govt Jobs) की चाहत और तैयारी का चक्र एक ऐसा मायाजाल बन गया है जिसमें भारत के युवा पीढ़ी का एक बड़ा हिस्सा हर साल लाखों की तादाद में पीस रहा है। यह एक ऐसा तिलिस्म है जिसमें “अगली बार… पक्का” जैसा आत्मविश्वास युवाओं को जीवन के ऐसे पड़ाव पर छोड़ देता है जहाँ से आगे का रास्ता धूमिल और पीछे घनघोर अंधेरा दिखाई देता है।

    बिहार, यूपी, या महाराष्ट्र आदि से युवा अक्सर ही आँखों मे एक खूबसूरत दिखने ख्वाब लेकर नई दिल्ली, पटना, प्रयागराज, पुणे, चेन्नई जैसे महानगरों में आ जाता है। कुछ कपड़े, बटुए में कुछ रुपये, एक आधा पुरानी किताबें और मन मे ढेर सारा आत्मविश्वास के साथ परिवार की अनंत उम्मीदों का बोझ… इन्ही चीजों के साथ सपने को साकार करने के लिए अपना घर-परिवार, गाँव-शहर, दोस्त आदि सब से दूर इन महानगरो में छोटे से कमरे में अपनी एक नई दुनिया संजोता है।

    फिर शुरू होता है मुखर्जी नगर और करोलबाग (दोनों दिल्ली), शिवाजीनगर और स्वारगेट (पुणे)  6th एवेन्यू और अन्ना नगर (दोनों चेन्नई), सिविल लाइंस (प्रयागराज) आदि जगहों का दौरा जहाँ थोक के भाव होर्डिंग और विज्ञापनों से लदे इमारतों में सजी होती है कोचिंग मंडी।

    इसी महीने 2 हफ़्ते पहले ही मैं दिल्ली के दौरे पर था। अपने आधिकारिक कामों से फुर्सत पाकर शाम को यूँ कुछ पुराने दिनों की तलाश में करोलबाग और ओल्ड राजेंद्र नगर (ORN) की तरफ़ घूमने निकल गया। यह सवाल हो सकता है कि करोलबाग ही क्यों… जबकि दिल्ली में तो शाम के वक़्त युवा कनॉट प्लेस की तरफ़ भागते है? करोलबाग इसलिए क्योंकि 2017-18 के पहले तक जब मैं भी सरकारी नौकरी की तैयारी में लगा था तो इन इलाकों में हफ्ते में 2-3 बार आना जाना लगा रहता था।

    बहरहाल, करोलबाग और ओल्ड राजेंद्र नगर की गलियों में भटकना शुरू हुआ तो लगा मानो किसी टाइम मशीन में बैठकर जीवन को 5 साल पहले खींच लाया हूँ। कुछ भी तो नहीं बदला था- वहीं 20-30 साल के युवाओं की भीड़ जो अपने पीठ पर बैग लटकाए भागे जा रही थी.. वही लाल,पीला,सफेद रंगों वाली फ़ोटोकॉपी पाठन सामग्री की दुकान और उसके चारों तरफ़ सब कुछ खरीदने की जद्दोजहद वाली भीड़… दुकान वाले से कोई चिल्ला कर ‘येलो पेज PTC’ मांग रहा था तो कोई ‘Insights On India का सिक्योर सिनॉप्सिस’ तो कोई किसी फलाने टीचर के नोट्स तो किसी टॉपर का हैण्ड रिटेन नोट….

    दिल्ली के मुखर्जी नगर, ओल्ड राजेन्द्र नगर या करोलबाग आदि वे जगह हैं जहाँ युवाओं की ये कभी न खत्म होने वाली भीड़ हर वक़्त देखी जा सकती है। काँधों पर बैग लटकाए, किताबों की दुकानें छानते और कोचिंग सेंटर के चक्कर काटते ये हज़ारों युवा एक ही सपना देखते हैं- एक अदद सरकारी नौकरी हासिल करने का।

    दरअसल, यह वो जगह होती हैं जहाँ सपने दिखाकर दूर कहीं से ‘तैयारी करने’ दिल्ली आए युवाओं के सपनों का सौदा होता है। इन संस्थानों में आईएएस और तमाम अधिकारी बनाने का दावा तो ऐसे किया जाता है कि मानो संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) परीक्षा का अंतिम परिणाम इन संस्थानों से पूछकर ही घोषित करता हो। एक 22-24 साल का युवा इन दावों को सुनकर मन ही मन फैसला कर लेता है- “सबकुछ झोंक देंगे, लेकिन बनेंगे तो आईएएस ही”…. और बस यहीं से शुरू होता है तिलिस्म।

    दिल्ली में रहकर आईएएस अधिकारी बनने का सपना पाले मणिपुर की तुम्पी बताती हैं कि उन्हें तैयारी करते हुए 05 साल हो गया है। इस दौरान एक उन्होंने संघ लोकसेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षा में 3 बार भाग लिया है। हालांकि अभी एक भी बार प्रारंभिक परीक्षा पास नहीं हो पायीं है लेकिन मन मे उम्मीद पुरजोर है।

    तुम्पी आगे बताती हैं, “अब तो घरवालों से पैसे लेने में शर्म आती है; इसलिए प्राइवेट ट्यूशन लेना शुरू कर दिया है। पॉकेट मनी तो निकल आता है लेकिन  दिल्ली में जीवन यापन के लिए इतना काफी नहीं है… हर बार रिजल्ट देखकर लगता है कि – बस! अब नहीं… लेकिन कुछ दिन बाद फिर से तैयारी में जुट जाती हूँ। क्या करें कोई चारा भी तो नहीं है अब इसके अलावे...”

    उत्तर प्रदेश के आगरा में रहकर उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन आने वाली राज्यस्तरीय नौकरियों की तैयारी कर रहे एक युवा ने बताया कि वह किसी भी कीमत पर सरकारी नौकरी लेना चाहता है। उसका कहना है- “सर, जमीन जायदाद बेचकर भी हम पैसा (घूस) दे देंगे,बस सरकारी नौकरी लग जाये… फिर वह ग्रुप डी ही क्यों न हो…।” उनसे जब वजह पूछी कि, खेत बेचकर नौकरी क्यों लेना? जवाब आया- साहेब, शादी नहीं हो रही नौकरी बिना… खेती के नाम पर समाज मे कौन अपनी लड़की देगा।”

    बिहार के पटना में रह रहे दीपक बताते हैं कि वे एसएससी सीजीएल (SSC CGl) 2025 परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। पिता भागलपुर जिले में एक किराने की दुकान पर सहायक का काम करते हैं। माँ घर पर भैंस आदि पाल रखी हैं और दूध बेचकर घर के खर्चो में मदद करती हैं। बड़े भाई ने बैंक से एडुकेशन लोन लेकर बीटेक किया था पर वह भी बेरोजगार है और 2 सालों से लगातार नौकरी की तलाश कर रहा है। कुलमिलाकर परिवार की माली हालात बेहद खराब है और परिवार की सारी उम्मीदें अब दीपक से ही है।

    बहरहाल, बात सिर्फ मणिपुर की तुम्पी या बिहार के दीपक या किसी एक युवा की या किसी एक जगह या राज्य के युवाओं तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यही दास्तां पूरे देश की है। यह अलहदा बात है कि उत्तर भारत मे जनसंख्या ज्यादा है तो सरकारी नौकरी और उसकी तैयारी का मायाजाल इन जगहों पर ज्यादा व्यापक है।

    आये दिन अखबारों में यह ख़बर देखने को मिलती हैं कि चपरासी के पद के लिए मारामारी मची है। छत्तीसगढ़ में चपरासी बनने के लिए मास्टर्स और पीएचडी की डिग्री धारकों की लंबी कतार हाल ही में दिखा था। ऐसे ही झारखंड के धनबाद जिला न्यायालय में चपरासी के 36 पद के लिए 20,000 से ज्यादा आवेदन प्राप्त हुए जिसमें इंजीनियरिंग और प्रबंधन के छात्र भी शामिल है।

    सवाल यह है कि क्या इन छात्रों के सपने कभी पूरे होंगे? क्या सरकार के पास इतनी बड़ी तादाद में नौकरियां हैं भी? और फिर कब तक या किस उम्र तक सरकारी नौकरी की आस में जवानी खर्च की जाए?

    एक सरकारी नौकरी की क्या अहमियत होती है, यह हाल ही में उस वक़्त दिखा जब केंद्र सरकार सेना में भर्ती के लिए अग्निवीर नामक योजना लेकर आई। इसके बाद उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल आदि राज्यों मे इस योजना के विरोध में लाखों युवा सड़कों पर उतर आए और आगजनी व तोड़फोड़ सहित हिंसक प्रदर्शन करने लगे।

    इस बात में कोई शक़ नहीं है कि भारत जैसे विशाल देश मे उतनी संख्या में सरकारी नौकरियां शायद कभी उपलब्ध नहीं होंगी जितने उसके दावेदार हैं। लेकिन सरकारी नौकरियों की दास्तां का एक पहलू और भी है।

    केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक़ मार्च 2022 तक सरकारी विभागों में 9.5 लाख से ज्यादा पद खाली थे। जनवरी 2023 तक केंद्रीय आर्म्ड पुलिस बल में करीब 85000 पद, मार्च 2023 तक कक्षा एक से आठ तक पढ़ाने वाले शिक्षकों के करीब 7.5 लाख पद और जुलाई 2023 तक भारतीय रेलवे में 2.5 लाख से ज्यादा पद रिक्त थे।

    इन आंकड़ो में वक़्त के साथ बदलाव संभव है; लेकिन एक बात शाश्वत सत्य के तरह कही जा सकती है कि सरकारी क्षेत्र में हर साल लाखों पद खाली रहते हैं। लगातार नाकाम होने और अनिश्चितता के भंवर में अटके युवाओं को यही रिक्तियां हमेशा से रिझाती रही हैं और इसी से कड़ी जुड़ती है- कोचिंग और तैयारी का व्यवसायीकरण का;  जिस से मुखर्जी नगर या करोलबाग के गलियों में लाखों युवा को एक आस लिए साल दर साल भटकते रहते हैं।

    फिर वक़्त बदलता है। इन युवाओं में से कई सरकारी नौकरी के सपनों को जीने के लिए जीवन में आगे बढ़ जाते हैं वहीं युवाओं की एक बड़ी तादाद नाकामयाब होकर भविष्य की अनिश्चितता के गलियारों में जाने पर मजबूर होते हैं। उनकी आंखों मे बसे एक अदद सरकारी नौकरी का सपना इसी वक्त के साथ धुंधला होने लगता है। फिर एक अरसे बाद समझ आता है कि वे जिस सपने का पीछा कर रहे हैं, वह एक मृगतृष्णा है।

    केंद्र सरकार युवाओं को स्वरोजगार के तरफ़ आकर्षण पैदा करने और उनकी मदद करने के लिए मुद्रा योजना जैसे कई अन्य योजनाएं चला रखी है। लेकिन सरकार के आंकड़े ही इस बात की गवाही देते हैं कि युवाओं का आकर्षण सरकारी नौकरी के तरफ़ ही है।

    संसद में पेश किए एक एक आंकड़े के मुताबिक़ साल 2014 से 2022 के बीच तकरीबन 22 करोड़ लोगों ने सरकारी नौकरी के लिए आवेदन किया। इनमें से मात्र 07 लाख आवेदकों को ही सरकारी नौकरी के योग्य पाया गया जो कुल आवेदन का 0.5% से भी कम है। ऐसे में बड़ा सवाल एक ही है कि सरकारी नौकरी के लिए ऐसी होड़ क्यों?

    सरकारी नौकरी के पीछे भागने वाले ज्यादातर युवा यह मानते हैं कि सरकारी नौकरी में जो भविष्य की सुरक्षा और रुतबा मिलता है, वह तुलनात्मक रूप से अच्छे वेतनमान वाले प्राइवेट नौकरियों में भी नहीं मिलता। इसलिए सरकारी नौकरी पाने के लिए “तैयारी’ में जवानी की ऊर्जा खपत करने का सौदा बुरा नहीं है।

    भारतीय समाज भी सरकारी नौकरी को लेकर एक जुदा रवैया रखता है। मसलन, सरकारी नौकरी देखकर विवाह और अच्छे रिश्तों की गुंजाइश बढ़ जाती है। फिर जन वैवाहिक रिश्तों में अघोषित रूप से मोटा दहेज़ भी जुड़ा होता है। यह भी एक बड़ी वजह है कि ज्यादातर अभिभावकों की पहली पसंद अपने संतान को सरकारी नौकरी में देखना ही है।

    एक खुशहाल जिंदगी की उम्मीद लिए हजारों युवा हर साल सरकारी नौकरी की जद्दोजहद की भीड़ में शामिल होते हैं लेकिन कुछ गिने चुने लोगों की खुशियों को ही सरकारी नौकरी में पंख लग पाता है । अपने सपनों का पीछा करते करते ज्यादातर लोग कब उसी भीड़ में खो जाते हैं, उन्हें इसका एहसास तक नहीं हो पाता और जब एहसास होता है तो आधी जिंदगी पीछे छूट चुकी होती है।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

    2 thoughts on “सरकारी नौकरी की मृगतृष्णा: युवा-ऊर्जा को लीलती एक अदद सरकारी नौकरी की चाहत”
    1. प्रिय नौकरी
      फुरसत मे मिलो बताना है, कुछ दिल की बात सुनाना है;
      तेरे मिलने की आशा मे, हम कई सालो से तरसते हैं lएक छोटी दुनिया है मेरी, जहाँ सारे सपने बसते हैं,…..जिम्मेदारी का बोझ लिए हम, राहो मे तेरी भटकते हैं,…….उम्मीद नहीं छोड़ी थककर, हम गिरते हैं फिर चलते हैं,……थकना, गिरना, गिरकर उठना,आदत अब इसे बनाना हैl
      Kaafi dino baad aapka post padhne ka moka mila sir…..har ek students ki aapne vyatha likh di…ise padhne wale yuva kaafi hadd tk khud ko isse relate kr paayenge….. Humesa ki tarah bahut hi achcha

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