देश के सबसे बड़े सियासी कुनबे में मची अन्तर्कलह अब शांत होती दिख रही है। समाजवादी पार्टी के संस्थापक और संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने बीते 25 सितम्बर को लखनऊ के लोहिया ट्रस्ट में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए जो पुत्रमोह दिखाया था, अखिलेश यादव ने उसे तहे दिल से स्वीकार कर लिया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने पिता मुलायम सिंह यादव द्वारा नई पार्टी का गठन ना किए जाने से खुश थे और उन्होंने ट्विटर पर अपनी खुशी का इजहार भी किया था। इसके बाद से ही यह अटकलें लग रही थी कि पिता-पुत्र के रिश्तों में चल रही कड़वाहट जल्द ही मिट सकती है।
इसकी पहल करते हुए सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव आज खुद मुलायम सिंह यादव के आवास पर गए और उन्हें 5 अक्टूबर को आगरा में होने वाले सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में शामिल होने का न्यौता दिया। नेताजी ने भी इस न्यौते को सहर्ष स्वीकार लिया और अधिवेशन में अपनी उपस्थिति को लेकर अखिलेश को आश्वस्त किया। इस अधिवेशन के दौरान सपा का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना जाएगा। अब यह तय माना जा रहा है कि अखिलेश यादव अधिवेशन के दौरान सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की सहमति से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर उनके उत्तराधिकारी और सपा के सर्वेसर्वा होने का अपना दावा और पुख्ता कर लेंगे। राष्ट्रीय अधिवेशन में मुलायम सिंह यादव की उपस्थिति और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए अखिलेश यादव को उनका समर्थन देश के सियासी पटल पर अखिलेश की भूमिका को और मजबूती देगा।
एक हुए पिता-पुत्र, चाचा हुए बेगाने
मुलायम सिंह यादव पहले हर मौकों पर अपने भाई शिवपाल सिंह यादव का पक्ष लेते नजर आए थे पर पिछले कुछ दिनों से उनका पुत्रमोह जाग गया था। सोमवार, 25 सितम्बर को उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के लोहिया ट्रस्ट में प्रेस कॉन्फ्रेंस को सम्बोधित करते हुए मुलायम सिंह यादव ने कहा था कि अखिलेश मेरे पुत्र हैं और एक पिता के तौर पर मेरा आशीर्वाद हमेशा उनके साथ हैं। यह पूछने पर कि अखिलेश और शिवपाल में से वह किसके साथ हैं, उन्होंने कहा था कि वह समाजवादी पार्टी के साथ हैं। इसके बाद अखिलेश यादव ने ट्विटर पर खुशी जाहिर की थी और “नेताजी की जय, समाजवादी पार्टी की जय’ लिखा था। कॉन्फ्रेंस के दौरान मुलायम सिंह यादव ने नई पार्टी के गठन की प्रेस रिलीज भी नहीं पढ़ी थी जिसके बाद शिवपाल सिंह यादव और उनके समर्थक नाराज हो गए थे।
शिवपाल सिंह यादव ने मुलायम सिंह यादव के हालिया रुख और नई पार्टी गठित करने के मसले पर यू-टर्न लेने पर चुप्पी साध रखी है। शिवपाल सिंह यादव के समर्थकों में मुलायम सिंह यादव के रवैये को लेकर आक्रोश है और वे नेताजी के खिलाफ बगावत करने का स्पष्ट संकेत दे चुके हैं। अभी तक अपने राजनीतिक भविष्य के लिए नेताजी की ओर उम्मीद भरी निगाहों से देखने वाले शिवपाल सिंह यादव की पलकें भी अब बोझिल हो चुकी हैं। शिवपाल सिंह यादव के कई करीबी नेता नेताजी को कोसने में लगे हैं वहीं उनके समर्थकों का गुस्सा उबाल ले रहा है। शिवपाल सिंह यादव समझ चुके हैं कि पिता-पुत्र की यह जोड़ी अब एक हो चुकी है और वह बेगाने बन चुके हैं। ऐसे में शिवपाल सिंह यादव के लिए यही बेहतर होगा कि वह अपने समर्थकों संग मिलकर अपने राजनीतिक भविष्य के लिए नई संभावनाएं तलाशें।
शिवपाल के समर्थन में उतरे शारदा प्रसाद शुक्ल
सपा में जारी इस वर्चस्व की लड़ाई में अब तक कई सपाई दिग्गज अब खुलकर शिवपाल के समर्थन में आ खड़े हुए हैं। कभी मुलायम सिंह यादव के खास रहे शारदा प्रसाद शुक्ल ने शिवपाल सिंह यादव का समर्थन करते हुए कहा है कि मुलायम सिंह यादव झूठे समाजवादी हैं। उन्होंने पुत्रमोह में आकर नई पार्टी के गठन की प्रेस रिलीज नहीं पढ़ी जिसे शिवपाल ने उन्हें दिया था। मुलायम सिंह यादव नाराजगी का ढ़ोंग कर अखिलेश यादव को मजबूत करने में जुटे हुए हैं। उन्होंने कहा कि दोनों बाप-बेटे मिले हुए हैं और जनता के साथ छल कर रहे हैं। सपा अब अपना वजूद खो चुकी है। उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनावों के दौरान कन्नौज से डिंपल यादव 20,000 वोटों से हार गईं थी पर सूबे में सरकार होने के कारण उन्हें जबरदस्ती जिताया गया।
शारदा प्रसाद शुक्ल ने कहा कि सपा अपना वजूद खो चुकी है। उन्होंने कहा कि अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा का समाजवाद से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने कहा कि नई पार्टी के गठन के लिए वह शिवपाल सिंह यादव का समर्थन करेंगे। शिवपाल सिंह यादव का गुट भी इस मामले पर बागी तेवर अख्तियार कर रहा है। नई पार्टी के गठन के मुद्दे पर मुलायम सिंह यादव के यू-टर्न लेने के बाद शिवपाल समर्थकों में नाराजगी है। शिवपाल सिंह यादव खुद नई पार्टी के गठन की घोषणा को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले थे जिसे ऐन वक्त पर रद्द कर दिया गया। नेताजी के रुख पर शिवपाल सिंह यादव भले ही मौन हो पर उनके समर्थकों में जबरदस्त उबाल है। ऐसे में मुमकिन है शिवपाल जल्द ही नई पार्टी के गठन की घोषणा कर दें।
अमर सिंह ने बाप-बेटे की लड़ाई को कहा था सियासी ड्रामा
कभी मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी रहे पूर्व सपाई और राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने मुलायम और अखिलेश की लड़ाई को सपा का सियासी ड्रामा करार दिया था। उन्होंने मुलायम सिंह यादव पर पुत्रमोह का आरोप लगाते हुए कहा था कि नेताजी सिर्फ अखिलेश को मजबूत करने में जुटे हुए हैं। इसके लिए ही उन्होंने नाराजगी का सियासी ड्रामा रचा है और प्रदेश की जनता के साथ-साथ सपा के नेता भी इसमें छले जा रहे हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से शिवपाल सिंह यादव की नाराजगी को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा था कि शिवपाल सही बात कर रहे हैं पर अभी भी उन्हें वास्तविक सच्चाई नहीं दिख रही है। नेताजी शिवपाल के साथ खड़े होकर भी अखिलेश का साथ दे रहे हैं।
क्या कदम उठाएंगे शिवपाल
शिवपाल सिंह यादव अभी तक अखिलेश पर वार करने के लिए मुलायम सिंह यादव के कंधे का इस्तेमाल कर रहे थे। हालिया घटनाक्रमों से शिवपाल को भी इस बात के स्पष्ट संकेत मिल गए हैं कि नेताजी पुत्रमोह में फंसकर रह गए हैं और उन्हें आगे की राह अकेले दम पर ही तय करनी होगी। शिवपाल सिंह यादव सपा की स्थापना के वक्त से ही पार्टी से जुड़े हैं और अपने सियासी सफर में उन्होंने नेताजी के साथ हर तरह के उतार-चढ़ाव देखे हैं। संगठन में उनकी पकड़ की वजह से उन्हें नेताजी का दायाँ हाथ कहा जाता था और हमेशा ही मुलायम सिंह यादव के बाद सपा में उनका प्रभुत्व रहा है। लेकिन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पूर्व कुनबे में मची सियासी कलह का फायदा अखिलेश यादव को मिला है। सपा नेता और कार्यकर्ता अखिलेश को नेताजी के उत्तराधिकारी के तौर पर स्वीकार कर चुके हैं।
शिवपाल सिंह यादव का रसूख अखिलेशमय हो चुकी सपा में लगातार घटता जा रहा है। ऐसे हालातों में शिवपाल सिंह यादव के लिए बेहतर यही होगा कि वह अपनरे समर्थकों के साथ मिलकर नई पार्टी का गठन करें। सपा का आधार माने जाने वाले लोहिया ट्रस्ट में शिवपाल गुट का बोलबाला है हालाँकि अभी भी लोहिया ट्रस्ट के अध्यक्ष पद पर नेताजी बने हुए हैं। शिवपाल सिंह यादव के समर्थन में शारदा प्रसाद शुक्ल कई दिग्गज सपाई उतर आए हैं और कभी सपा के महत्वपूर्ण अंग रहे अमर सिंह ने भी शिवपाल को सराहा है। अगर शिवपाल चाहे तो अमर सिंह को अपनी ओर मिलाकर नई पार्टी का गठन कर सकते हैं। शिवपाल सिंह यादव की सपा के वरिष्ठ वर्ग में अब भी अच्छी पकड़ है और इस पकड़ का लाभ उठाकर वह एक सशक्त पार्टी बना सकते हैं। यह उनके डूबते राजनीतिक जीवन को नया आधार देगा और हाशिए की ओर बढ़ रहे उनके सियासी सफर को नई उड़ान देगा।