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सऊदी अरब-ईरान शीत युद्ध

इतिहास में शिया-सुन्नी प्रतिद्वंदिता

पैगम्बर मुहम्मद के मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों के दो समूहों में उत्तराधिकार को लेकर युद्ध चालू हो गया। यह दो समूह शिया और सुन्नी कहलाये।

सुन्नी समूह चाहता था कि पैगम्बर मुहम्मद के एक निकटतम साथी को मुस्लिम समुदाय का खलीफा बनाया जाये जबकि शिया समूह यह चाहता था कि पैगम्बर के दामाद को खलीफा बनाया जाए।

सुन्नी समूह ने शिया समूह के ऊपर बहुमत पा लिया और वह इस्लाम के प्रबल समूह बन गए। तब से शिया और सुन्नी समूहों और देशों के बीच कड़ा प्रतिद्वंदिता शुरू हो गया जो आज भी चालू है।

विश्व में 85 से 90% इस्लामिक जनता सुन्नी हैं, बाकि सब शिया हैं। इराक, ईरान, अजरबैजान एवं बहरीन शिया प्रमुख जनता वाले देश हैं। बाकि सभी देश सुन्नी प्रमुख जनता वाले हैं।

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वर्तमान स्थिति

तुर्की जोकि सुन्नी बहुमत वाला देश है, पहले वहां खलीफा का राज था। तुर्की का यह खलीफा पुरे विश्व के इस्लाम के प्रमुख नेता के रूप में देखा जाता था।

प्रथम विश्व युद्ध के बाद तुर्की पर खलीफा को हराकर ब्रिटिश राज्य ने कब्ज़ा कर लिया। इसी कारण 1919-26 तक खिलाफत आंदोलन हुआ था।

‘इस्लाम धर्म के नेता’ के रूप में तुर्की ने अपना हैसियत खो दिया और यह पदवी सऊदी अरब के हाथों में चली गयी जोकि दूसरा सुन्नी बहुमत वाला राज्य है एवं खनिज तेल प्रधान देश है।

ईरान जोकि एक शिया बहुमत वाला देश है यह बात स्वीकार करने को तैयार नहीं था कि एक सुन्नी बहुमत वाला देश इस्लाम धर्म पर हावी हो।

तबसे से लेकर अब तक ईरान यह कोशिश कर रहा है कि इस्लाम धर्म पर सऊदी अरब का बहुमत कम हो जाये। तब से लेकर अब तक दोनों देश अलग अलग तरीकों से एक दूसरे को नीचा दिखाने और एक दूसरे का प्रभुत्व कम करने के लिए कई हिंसक और अहिंसक तरीके अपनाते रहते हैं।

इन दोनों देशों ने एक दूसरे के साथ परोक्ष युद्ध (proxy war) छेड़ रखा है जिसके अंतर्गत वे मध्य एशिया और अफ्रीका के और विश्व के अन्य मुस्लिम प्रधान देशों के साथ मित्रता का सम्बन्ध बना कर एक दूसरे के पक्ष में लाते रहते हैं।

ईरान शिया शाषित देशों को समर्थन देता है, जैसे – इराक, सीरिया के शिया राष्ट्रपति बशर अल अशद, लेबनान के शिया प्रधान उग्रवादी हिज़्बुल्लाह। ऐसे ही सऊदी अरब जहां भी हो सके वहां सुन्नी नेतृत्व स्थापित करने में लगा हुआ है।

ISIS और यमन युद्ध सऊदी अरब और ईरान के बीच के दुश्मनी का सीधा नतीजा हैं। वर्तमान में इस युद्ध में विश्व के दो प्रमुख देश USA और रूस भी शामिल हो गए हैं जिससे प्रतिदिन कई बम विस्फोट होते हैं और कई लोगों की जान जाती है।

संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस तीसरे पक्ष के देश हैं जो स्वयं के लाभ को पूरा करने के लिए (जैसे तेल, हथियारों की आपूर्ति, व्यापार, अपने मित्र देशों को समर्थन देने के लिए आदि) ईरान और सऊदी अरब के बीच चल रहे इस युद्ध को अपना समर्थन दे रहे हैं। अमेरिका सऊदी अरब को समर्थन देता है जबकि रूस इराक को समर्थन दे रहा है।

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