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    सऊदी अरब यमन

    सऊदी अरब द्वारा यमन पर हमला

    मार्च 2015 में जब ईरान द्वारा समर्थित हाउथी विद्रोहियों ने यमन के सत्ताधारी नेता (जोकि सऊदी अरब का संबद्ध था) को हटा दिया और यमन की राजधानी सना पर कब्ज़ा जमा लिया तब सऊदी अरब ने यमन पर युद्ध घोषित कर दिया।

    ईरान के द्वारा कोई समर्थित समूह यानि कि हाउथी विद्रोही यमन पर कब्ज़ा कर ले, सऊदी अरब यह बात मानने को कतई तैयार नहीं था। अतः उसने इस देश पर युद्ध छेड़ दिया।

    सऊदी अरब के नेतृत्व में एक गठबंधन ने हाउथी विद्रोहियों के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया। इस गठबंधन में सभी सुन्नी प्रधान देश हैं एवं इस युद्ध को Operation Decisive Storm का नाम दिया गया। यमन एक सुन्नी प्रधान देश है एवं यह गठबंधन वहां सुन्नी सत्ता स्थापित करने कि कोशिश में है।

    इस युद्ध में सऊदी अरब के 1,50,000 लड़ाके और 100 जेट, मोरक्को, जॉर्डन, बहरीन और सूडान के 15 जेट, मिस्र की सेना, Qatar के 10 जेट एवं संयुक्त राज्य अमीरात के 30 जेट भाग ले रहे हैं।

    यमन युद्ध में USA द्वारा सऊदी अरब को समर्थन

    1945 के दौरान US और सऊदी अरब में एक समझौता हुआ था जिसके अनुसार तेल के बदले अमेरिका सऊदी अरब को सुरक्षा प्रदान करेगा।

    हालाँकि पिछले कई सालों से US तेल के लिए सऊदी अरब पर ज्यादा निर्भर नहीं है, लेकिन दोनों देशों के आर्थिक सम्बन्ध काफी मजबूत हैं।

    सऊदी अरब US का ईरान के प्रति न्यूक्लिअर कूटनीति का विरोधी है, तब भी US सऊदी अरब को यमन के युद्ध में पूरा सहयोग दे रहा है। US के हथियार नियात का लगभग 10 प्रतिशत सऊदी अरब को जाता है।

    यमन में चल रहे युद्ध की वर्तमान स्थिति

    सऊदी अरब की सेना हाउथी विद्रोहियों को यमन से पूरी तरह उखाड़ फेंकने में पूरी तरह से असफल रही है। ईरान समर्थित विद्रोही अभी भी यमन के एक बड़े हिस्से में बने हुए हैं।

    इस युद्ध के कारण यमन में प्रतिदिन कई मासूमों की जान जा रही है, ख़राब मानवीय संकट पैदा हो रहे हैं, क्षेत्रीय सुरक्षा बिलकुल नहीं है, आर्थिक व्यवस्था चरमरा गयी है और कई नए आतंकी संगठन उभर कर सामने आ रहे हैं।

    सऊदी अरब को इस युद्ध से कुछ ख़ास फ़ायदा नहीं हुआ, उलटे वहां ISIS एवं अल कायदा जैसे आतंकी संगठन और फल फूल रहे हैं।

    सीरिया गृह युद्ध

    सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद द्वारा हिंसक तरीकों द्वारा देश के जनता की आवाज को दबाया जा रहा है। प्रदर्शनकारी भी हिसंक तरीकों के द्वारा अपना विद्रोह जता रहे हैं।

    पश्चिमी एशिया में जो सीरिया के प्रतिद्वदी हैं जैसे कि सऊदी अरब और तुर्की ने ISIS का निर्माण कर इस मतभेद को बढ़ावा दिया।

    अन्तराष्ट्रीय प्रणाली जैसे कि संयुक्त राष्ट्र इस युद्ध को रोक पाने में पूरी तरह से नाकामयाब रही है और दूसरे देश भी चुपचाप देख रहे हैं।

    क्षेत्रीय शक्तियों जैसे कि ईरान और सऊदी अरब के मतभेद और विश्व शक्तियां जैसे कि US और रूस के मतभेद के कारण इन देशों का इस युद्ध में काफी हस्तक्षेप होता रहा है।

    इस युद्ध में अबतक लगभग 5 लाख लोगों कि जानें जा चुकी हैं और काफी लोग शरणार्थी (refugee) बन गए हैं।

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