संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) ने म्यांमार में मुस्लिम रोहिंग्याओं और अन्य अल्पसंख्यकों के प्रति मानवाधिकारों के उल्लंघन की निंदा करने वाला एक प्रस्ताव पारित किया है। शनिवार को यह जानकारी दी गई। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र का यह प्रस्ताव कुल 193 देशों में से 134 देशों ने शुक्रवार को पारित किया। जहां नौ वोट इसके विरोध में पड़े तो 28 सदस्य देशों ने खुद को इस वोटिंग से दूर रखा।
प्रस्ताव में म्यांमार में ‘सुरक्षा और सैन्य बलों के अत्याचारों’ के कारण पिछले चार दशकों में बांग्लादेश में रोहिंग्या की लगातार आवक के संबंध में चेतावनी जाहिर की गई।
प्रस्ताव में एक स्वतंत्र अंतर्राष्ट्रीय मिशन द्वारा म्यांमार के ‘सुरक्षाबलों द्वारा रोहिंग्या और अन्य अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करने और मानवाधिकारों का हनन’ करने का जिक्र किया, जिसे उसने ‘अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत सबसे गंभीर अपराध बताया।’
प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया देते हुए म्यांमार में संयुक्त राष्ट्र के राजदूत हाओ दो सुआन ने इसे ‘दोहरे मापदंड और मानवाधिकार नियमों के भेदभाव तथा चयनात्मक रवैये का उत्कृष्ट उदाहरण बताया।’
उन्होंने कहा कि इसे म्यांमार पर ‘अवांछनीय राजनीतिक दवाब डालने के लिए लाया गया है और यह राखाइन प्रांत की जटिल परिस्थिति का समाधान निकालने के लिए नहीं है।’
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को यह प्रस्ताव म्यांमार स्टेट काउंसलर और राजनेता आंग सान सू की द्वारा संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) द्वारा म्यांमार सरकार पर लगाए गए नरसंहार के आरोपों को खारिज करने के बाद लाया गया।
गाम्बिया दर्जनों अन्य देशों के साथ रोहिंग्या के मामले को आईसीजे ले गया था।
म्यांमार में सैन्य ऑपरेशन शुरू होने के बाद से हजारों रोहिंग्या मुस्लिम देश छोड़ चुके हैं।
बांग्लादेश के शरणार्थी शिविरों में 30 सितंबर तक 9,15,000 रोहिंग्या थे। लगभग 80 प्रतिशत रोहिंग्या सिर्फ 2017 में अगस्त से दिसंबर के बीच आए।
इसके बाद बांग्लादेश ने और रोहिंग्या शरणार्थियों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।