चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शुक्रवार को रोम की यात्रा की। पश्चिमी देशों में अफवाहे उड़ रही थी कि इटली एशिया के सिल्क रोड यानी बेल्ट एंड रोड के प्रोजेक्ट में शामिल होगा।
चीनी मीडिया के मुताबिक इटली के प्रधानमंत्री गिउसेप्पे कंटे ने शनिवार को राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये जिसके तहत इटली बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव में शामिल हो गया है। जी-7 देशों के सदस्यों में बीआरआई को ज्वाइन करने वाला इटली पहला सदस्य है।
शुक्रवार को राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने इटली के समकक्षी सर्जिओ मट्टरेल्ला से मुलाकात की थी। राष्ट्रपति शी की यात्रा से पूर्व रोम में एक हज़ार सैनिको की तैनाती की गयी थी। इटली के उप प्रधानमंत्री मट्टेओ साल्विनि ने कहा कि “वह राष्ट्रपति शी के लिए शनिवार को आयोजित रात्रि भोज में शामिल नहीं होंगे।”
उन्होंने कहा कि “इटली किसी का उपनिवेश नहीं हो सकता है और हुआवेई के नेक्स्ट जनरेशन 5 जी टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल पर खतरे को इत्तलाह किया था। जबकि गठबंधन के साझेदार लुइगी डी माइओ चीन के साथ साझेदारी करने के लिए उत्सुक है।
अमेरिका ने अपने यूरोपीय साझेदारों को आगाह किया था कि हुआवेई की 5 जी तकनीक का इस्तेमाल जासूसी के लिए किया जा सकता है। हालाँकि चीन ने अनैतिक प्रहार बताया था। नाटो का सदस्य इटली चीन की महत्वकांक्षी परियोजना से जुड़ने की योजना बना रहा है। आलचकों के मुताबिक इससे सिर्फ चीनी कंपनियों का फायदा होगा।
उप प्रधानमंत्री डी माइओ ने कहा कि “व्यापार संबंधों में इटली सर्वप्रथम है जबकि वह अमेरिका का सहयोगी है।” चीन में अभी मंदी का दौर है और वह चीन के साथ व्यापर करने के लिए इच्छुक है। बीते हफ्ते व्हाइट हाउस के अधिकारी ने ट्वीट कर कहा था कि इटली को चीन की परियोजना का समर्थन करने की जरुरत नहीं थी।
हाल ही में यूरोपीय संघ ने बीजिंग के साथ मुखर संबंधों के बाबत बदलाव की रूपरेखा के तहत 10 सूत्रीय योजना जारी की थी। इसमें चेतावनी थी कि चीन ब्लॉक के साथ ही बड़े व्यापारिक साझेदारों का भी प्रतिद्वंदी था। फ्रांस ने गुरूवार को ऐलान किया कि राष्ट्रपति इम्मानुएल मैक्रॉन व्यापार और जलवायु परिवर्तन पर शी जिनपिंग, जर्मन चांसलर एंजेला मर्केल और यूरोपीय परिषद् के अध्यक्ष जीन क्लॉउड़े के साथ बातचीत करेंगे।
फ्रांसीसी राष्ट्रपति के दफ्तर से काफी नरम लफ्जों में ऐलान किया गया कि मंगलवार की वार्ता यूरोप की रणनीति को समझाने और चीन व यूरोप के मध्य अभिसरण की बिंदुओं को खोजने का एक अवसर था। आगामी माह ब्रुसेल्स में चीन-ईयू सम्मेलन का आयोजन होगा। शी रविवार को मोनाको जायेंगे और इसके बाद फ्रांस की यात्रा करेंगे।
बेल्ट एंड रोड से जुड़ना इटली के लिए हो सकता है खतरनाक
जहाँ चीन और इटली इस योजना से जुड़ने पर ख़ुशी मना रहे हैं वहीँ अमेरिका समेत कई यूरोपीय देश भी इटली के इस कदम को ठीक नहीं बता रहे हैं।
आपको बता दें कि इटली जी-7 देशों का एक हिस्सा है, जो कि यूरोपीय संघ के मुख्य देश हैं। इसके अलावा इटली यूरोप की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। ऐसे में यदि इटली चीन की इस योजना से जुड़ता है, तो यह चीन के लिए एक बेहद बड़ी सफलता होगी।
इटली की वर्तमान सरकार को दक्षिण पंथी सोच की सरकार कहा जाता है, जो चीन से नजदीकियां बढ़ा रही है और पश्चिमी देश जैसे अमेरिका आदि से दूरियां बना रही है। चीन से बढ़ती नजदीकियों के चलते इटली को अन्य यूरोपीय देशों से भी निंदा झेलनी पड़ रही है।
हाल ही में हालाँकि इटली को इसके विरुद्ध अमेरिका नें चेताया था, लेकिन इटली इसपर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् नें हाल ही में ट्विटर पर चेतावनी दी थी कि यदि इटली ऐसा करता है तो यह पूरी तरह से चीन का फायदा होगा और इटली के लोगों का इसमें कोई फायदा नहीं होगा।
Italy is a major global economy and a great investment destination. Endorsing BRI lends legitimacy to China’s predatory approach to investment and will bring no benefits to the Italian people.
— NSC 45 Archived (@WHNSC45) March 9, 2019
ऐसा भी माना जा रहा है कि जो समझौता चीन और इटली के बीच होने जा रहा है उसमें चीन नें बहुत से ऐसे वादें किये हैं, जो पुरे नहीं किये जा सकते हैं।
इटली की ओर से हालाँकि यह तर्क दिया जा रहा है कि इस बेल्ट एंड रोड से जुड़ने से उसका चीन से व्यापार घाटा कम हो जाएगा, जो साल 2018 में लगभग 12.1 अरब डॉलर था।
लेकिन फ्रांस और जर्मनी ऐसे यूरोपी देश हैं, जिनका चीन के साथ व्यापार संतुलित है और ये देश बेल्ट एंड रोड योजना का हिस्सा भी नहीं हैं।
इसके अलावा यूरोप के वे देश, जिन्होनें पहले ही इस योजना में हिस्सा ले लिए है, जिसमें पोलैंड और अन्य पूर्वी यूरोप के देश आते हैं, उन्होनें शिकायत की है कि चीन नें जो वादे किये थे वे अब तक पुरे नहीं हुए हैं।
इसके अलावा इस योजना की सबसे बड़ी आलोचना यह होती है कि चीन किस तरह पहले साथी देशों को भारी कर्ज देता है और जब कर्ज समय पर नहीं चुकाया जाता है तो चीन उस देश की जमीन पर कब्ज़ा कर लेता है।
पाकिस्तान में सीपीईसी इसका एक बड़ा उदाहरण है। चीन नें इस योजना में लगभग 62 अरब डॉलर का निवेश किया है और आज ही यह खबर थी कि चीन नें पाकिस्तान में सीपीईसी की ‘सुरक्षा’ के लिए अपने सैनिक तैनात किये हैं।
इसके अलावा चीन नें श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर भी इसी तरह कब्ज़ा किया था।
ऐसे में इटली के साथ देश उसे लगातार इसके खिलाफ सलाह दे रहे हैं।
ऐसी खबर भी है कि चीन नें कहा है कि यदि इटली नें बेल्ट एंड रोड योजना पर हस्ताक्षर नहीं किये, तो अन्य सभी योजनाओं पर भी बात नहीं की जायेगी। ऐसे में चीन नें इटली को पूरी तरह से अपने जाल में फंसा लिया है और उसके लिए अब वापस हटना काफी मुश्किल होगा।
यूरोपीय संघ को खतरा है कि यदि इटली चीन जैसे देश से इतना बड़ा करार करता है तो भीतरी यूरोपीय देशों में सम्बन्ध कमजोर हो जायेंगे।
इटली नें हालाँकि कई ऐसे संकेत पहले ही दे दिए हैं। उदाहरण के तौर पर फरवरी में यूरोपीय देशों की सुरक्षा से सम्बंधित एक समझौता था, जिसपर इटली नें हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। ऐसे में इटली के पुराने साथ देश, जैसे फ्रांस और जर्मनी भी इटली से दूर जाते दिख रहे हैं।
यूरोपीय संघ का मानना है कि यदि इटली ऐसी किसी योजना से जुड़ना चाहता है तो उसे ऐसी शर्त रखनी चाहिए, जो अन्य यूरोपीय देशों को भी मान्य हों।