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    “शिव” महज़ भगवान नहीं, एक जीवन-पद्धति का नाम

    कल शिवरात्रि का महापर्व था। वैसे तो शिवरात्रि मनाये जाने की वजह को लेकर काफी अलग अलग मान्यताएं हैं। उनमें सबसे प्रमुख यह कहा जाता है कि फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही माता पार्वती और शिव की शादी हुई थी।

    शिवरात्रि के कारण भगवान शिव के भक्तों के बीच – व्हाट्सएप के स्टेटस से लेकर गलियों में DJ पर बजते “ॐ नमः शिवाय” के धुन पर थिरकते युवाओं की मंडली तक; प्रयागराज के संगम में डुबकी लगाने को आतुर भीड़ की भावनाओं से लेकर बनारस की गलियों में ठंढई के साथ भांग गटकते बनारसियों के जोश में-  हर तरफ़ शिव जी छाए थे।

    सूचना तंत्र और हिन्दू आस्था

    सूचना क्रांति ने हमारे जीवन के हर हिस्से को प्रभावित किया है। जाहिर है, यह हमारे आस्था और उस से जुड़ी भावनाओं को भी एक नया रंग दिया है। यह सूचना क्रांति ही है कि हम सुबह उठते ही बस एक क्लिक “फारवर्ड टू ऑल” कर के सैकडों मित्रों को “Happy Shivratri” का संदेश दे देते हैं।  GOOGLE बाबा की दया से आज हर कोई “ॐ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधि पुष्टि वर्धनम…” का जाप कर रहा है।

    मेरा मानना है कि सूचना क्रांति ने आज वही जिम्मा उठाया हुआ है जो कभी रामचरित मानस लिखकर तुलसीदास ने किया था; या फिर जो काम राजा रवि वर्मा ने अपने चित्रों के माध्यम से किया था।

    रामचरित मानस की पंक्तियों को लेकर को लेकर आज की पीढ़ी बेशक लड़ रही है, सवाल उठा रही है लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह तुलसीदास ही थे जिन्होंने संस्कृत में लिखे रामायण को एक क्षेत्रीय भाषा (अवधी) में लिखकर इसे आम जनमानस तक पहुंचाया। उसके पहले संस्कृत भाषा पर ब्राह्मणों का वर्चस्व था और समाज के ज्यादातर वर्ग रामायण जैसे हमारे महाग्रंथों से वंचित थे।

    राजा रवि वर्मा ने भी यही किया। आज हम अपने घर के दीवारों पर टंगे कैलेंडर पर या किसी TV सीरियल में राम, लक्ष्मण, शिव, आदि का जो स्वरूप देखते हैं, उसका पूरा श्रेय राजा रवि वर्मा को जाता है। उन्होंने पहली बार भगवान के पेंटिंग्स बनाये और निराकार भगवान को आकार देने का काम किया।

    इस वक़्त तक समाज मे ऊँची जातियाँ और नीची जातियों का शिवालय अलग होता था, मंदिर अलग होते थे। मेरे गाँव मे आज भी मुसहर जाति (एक भील जनजाति से संबंधित एक जाति-मांझी या भुइयां भी कहते हैं) का देवी-स्थान अलग है जबकि गाँव के अन्य जातियों की देवी-मंदिर अलग। भारतीय समाज मे कमोबेश हालात पहले यही थे, कई जगह आज भी यही है।

    लेकिन राजा रवि वर्मा ने जब कैलेंडर में और पेंटिंग्स में देवी देवताओं को साकार किया, तो जो देवी माँ की तस्वीर एक उच्च जाति वाले ब्राह्मण के घर मे था, वही तस्वीर एक शुद्र या नीची जाति के लोगों के घर मे भी पहुंचा। भगवान के जिस स्वरूप की कल्पना ब्राह्मणों तक सीमित संस्कृत भाषा मे लिखे महाकाव्यों और धार्मिक ग्रंथों में थीं, भगवान का वह स्वरूप राजा रवि वर्मा द्वारा बनाये पेंटिंग और तस्वीरों के जरिये समाज के हर वर्ग तक पहुंचा।

    सूचना तंत्र के विभिन्न माध्यमों जैसे व्हाट्सएप स्टेटस, कॉलरट्यून, FB अपडेट्स, आदि ने भी निःसंदेह हमारी आस्था को फैलने के लिए एक नया पंख दिया है। “Happy Shivratri” वाला Gif या शब्द-संदेश समाज के हर कोने से हर किसी को फॉरवर्ड किये जा रहे हैं, और यह अच्छी बात भी है।

    लेकिन सूचना तंत्र के इन्हीं पंखों के सहारे कहीं इतना तेज़ तो नहीं भाग रहे हैं कि जिस “शिव” की उपासना का प्रमाण हम दिन भर दे रहे हैं, हम एक इंसान के तौर पर, एक समाज के तौर पर अपने भीतर उसी “शिव” तत्व को खोते जा रहे हैं?

    हमे समझना होगा कि क्या शिवरात्रि महज़ एक त्योहार है? या फिर एक सालाना अलार्म है जो हमें  अपने भीतर के “शिव तत्व” को जिंदा रखने की याद दिलाता है?

    “शिव” तत्व है क्या?

    सरल, सहज और अहंकार से मुक्त शिव जिसके पास संहार करने की सारी शक्तियां है, फिर भी वह संरक्षक की भूमिका में है। लेकिन आज हम में से शायद ही कोई हो जो ताक़तवर होने के बावजूद अपनी अकड़ को दरकिनार कर दूसरों की तरक्की को बर्दाश्त कर पाए।

    शिव वह है जिसके पास भष्मासुर को भी वरदान देने में हिचक ना हो, यह जानते हुए कि वह मूर्ख शिव पर ही हमला करेगा। आज शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो यह जानते हुए भी कि किसी दूसरे अमुक व्यक्ति की शक्तियां बढ़ने से बढ़ने से उसकी खुद के लिए मुसीबत हो सकती है, फिर भी अपने वचन से प्रतिबद्धता का परिचय दे।

    शिव वह है जिसे न सिर्फ मनुष्य बल्कि ब्रह्मांड के हर जीव को अपनी सेना में शामिल कर एक समावेशी भाव का परिचय देना आता हो; जो भूत, प्रेत, साँप, बैल, गंगा, चंद्रमा आदि समस्त ब्रम्हांड को साथ लेकर चलने की प्रेरणा देते हैं। लेकिन आज का समाज जहाँ हम 4-5 लोगों के परिवार को भी एक साथ लेकर नहीं चल पाते हैं।

    शिव वह है जो दूसरों के कल्याण और रक्षा हेतु उनके जीवन के विष को अपने गले मे उतार लेता हो। हम में से कितने लोग हैं जो सही मायनों में किसी दूसरे की जीवन की शांति के लिए खुद के अहंकार, घमंड आदि जैसे विष का पान कर सकते हैं?

    ऐसे अनेकों गुण हैं जो शिव के भीतर तो हैं लेकिन शिव की आराधना करने वाले इस समाज मे देखने को नहीं मिलता है। आज  बद्रीनाथ या बाबा विश्वनाथ के दरबार मे जाकर सेल्फी लेने के बजाए उन पवित्र स्थानों की आवो-हवा में बिखरी “शिवत्व” को अपने भीतर समेटने की कोशिश करनी चाहिए।

    “शिव” जिम (Gym) जाने वाले युवाओं के चौड़े बाजुओं का टैटू के रूप में प्रदर्शन का विषय नहीं, बल्कि “शिव तत्व” समाज के कल्याण हेतू जीवन के दर्शन का विषय है।

    यह सत्य है कि, तमाम महाग्रंथों के ज्ञान-दर्शन के अनुसार शिव ही इस सृष्टि का रचयिता है, शिव ही पालक है, शिव ही विनाशक है। शिव ही आदि है, शिव ही अंत है। शिव हर जगह हर पल विद्यमान है, शिव अनंत है। परन्तु आज समाज को “शिव” की आवश्यकता सबसे ज्यादा है, शिव तत्व को आत्मसात करने की जरूरत सबसे ज्यादा है।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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