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    मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव

    देश के सबसे बड़े सियासी कुनबे सपा परिवार की अन्तर्कलह शांत होती दिख रही है। बीते 5 अक्टूबर को आगरा में हुए सपा के राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव को अगले 5 सालों के लिए सपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था। अधिवेशन से पूर्व शिवपाल सिंह यादव ने अखिलेश को अध्यक्ष बनने की बधाई दी थी और उनके अध्यक्ष बनने के बाद भी उन्हें ट्ववीट कर बधाई दी थी। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने लोहिया ट्रस्ट में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव को आशीर्वाद दिया था और कहा था कि वह सपा के साथ हैं और सपा की बेहतरी के लिए प्रयास करते रहेंगे। मुलायम और शिवपाल के नरम पड़ते तेवरों और बदलते रुख से यह संकेत मिल रहे थे कि सपा परिवार पुनः एक हो सकता है। दीवाली साथ मनाकर अखिलेश और शिवपाल ने इसपर मुहर लगा दी है।

    दीवाली के मौके पर सपा परिवार अपने पैतृक गाँव सैफई में जुटा था। अरसे बाद सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव साथ नजर आए। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने पत्रकारों से वार्ता में कहा कि उनके परिवार में कोई कलह नहीं है और सभी लोग एकजुट हो गए हैं। हालाँकि मुलायम सिंह यादव के चचेरे भाई और सपा के प्रमुख महासचिव रामगोपाल यादव इस अवसर पर उपस्थित नहीं थे। दीवाली मनाने अपने पैतृक गाँव सैफई पहुँचे मुलायम सिंह यादव ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, भाई शिवपाल सिंह यादव, सांसद धर्मेन्द्र यादव, सांसद तेज प्रताप यादव तथा अपने भतीजे एवं जिला पंचायत अध्यक्ष अंशुल के साथ करीब दो घंटे तक बातचीत की। दीवाली मिलन से इस बात के स्पष्ट संकेत मिले हैं कि सपा परिवार एकजुट हो चुका है।

    शिवपाल-अखिलेश में थे मतभेद

    उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से ठीक पहले सपा में जबरदस्त अन्तर्कलह देखने को मिली थी। 1 जनवरी, 2017 को रामगोपाल यादव ने सपा का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाकर अखिलेश यादव को सपा अध्यक्ष घोषित कर दिया था। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने इस अधिवेशन को अवैध बताया था और रामगोपाल यादव को 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था। पिछले 6 महीनों के दौरान यह तीसरा मौका था जब सपा से रामगोपाल यादव को निष्कासित किया गया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और उन्हें सपा प्रदेशाध्यक्ष पद से बर्खास्त कर दिया था। सपा की इस आपसी खींचतान का असर पारिवारिक रिश्तों पर भी पड़ा था और अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव में दूरियां बढ़ती गई।

    पार्टी मंच से दूरी बनाकर चल रहे थे मुलायम-शिवपाल

    सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव पिछले कुछ महीनों से पार्टी आयोजनों से दूर रह रहे थे। इसका मुख्य कारण था अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव के बीच चल रहे राजनीतिक मतभेद। शिवपाल सिंह यादव कई बार यह बात कह चुके थे कि नेताजी का अपमान अब और बर्दाश्त नहीं लिया जाएगा। अखिलेश यादव ने सपा अध्यक्ष बनने के बाद शिवपाल सिंह यादव के समर्थकों को किनारे लगाना शुरू कर दिया था और आज सपा पूर्णतया अखिलेशमय हो चुकी है। शिवपाल सिंह यादव अपने समर्थकों और नेताजी के नेतृत्व के भरोसे अखिलेश के खिलाफ खड़े हुए थे। हाल के कुछ वक्त में शिवपाल सिंह यादव का प्रभुत्व मुलायम सिंह यादव के गुट में बढ़ा था पर सपा संगठन अखिलेश यादव को नेताजी का उत्तराधिकारी मान चुका है। मुलायम सिंह यादव के नरम पड़ते तेवरों के बाद शिवपाल भी उन्ही के पीछे हो लिए हैं।

    शिवपालमय है लोहिया ट्रस्ट

    बीते दिनों लखनऊ में हुई लोहिया ट्रस्ट की बैठक का अखिलेश गुट ने बहिष्कार किया था। मुलायम सिंह यादव द्वारा बुलाई गई बैठक में शिवपाल सिंह यादव और उनके समर्थकों ने हिस्सा लिया वहीं अखिलेश यादव और उनके समर्थक बैठक से नदारद दिखे। लोहिया ट्रस्ट की इस बैठक में मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव के तथाकथित सलाहकार और उनके चाचा रामगोपाल यादव को ट्रस्ट सचिव के पद से बर्खास्त कर दिया गया और उनकी जगह शिवपाल सिंह यादव को नया सचिव नियुक्त किया। अखिलेश गुट के 4 सदस्यों को लोहिया ट्रस्ट से निष्कासित कर दिया गया। उनकी जगह शिवपाल गुट के 4 लोगों को ट्रस्ट का सदस्य बनाया गया। निष्कासित सदस्यों में रामगोविंद चौधरी, उषा वर्मा, अहमद हसन और अशोक शाक्य के नाम शामिल थे वहीं नवनिर्वाचित सदस्यों में दीपक मिश्रा, राम नरेश यादव, राम सेवक यादव और राजेश यादव के नाम शामिल थे।

    अखिलेशमय हो चुकी है सपा

    बीते वक्त में अखिलेश यादव बतौर नेता मजबूत होकर उभरे हैं। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार के कार्यकाल के दौरान सरकार के कामकाज और निर्णयों में मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव का सीधा दखल था और इसे स्पष्ट रूप से देखा जा सकता था। अखिलेश यादव को मुलायम सिंह यादव के उत्तराधिकारी के तौर पर सपा के सभी वरिष्ठ नेता स्वीकार चुके हैं। बीते 5 अक्टूबर को आगरा में हुए समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिलेश यादव एक बार फिर सपा चुने गए। आजम खान, रामगोपाल यादव, रामगोविंद चौधरी, नरेश अग्रवाल और किरण नंदा समेत तकरीबन सभी वरिष्ठ सपाई अखिलेश यादव को अपने नेतृत्वकर्ता के तौर पर स्वीकार चुके हैं और उत्तर प्रदेश का यादव समाज भी उन्हें अपना नेता मानता है। अधिवेशन में इस बात की भी सहमति बनी कि सपा 2019 लोकसभा चुनाव अखिलेश के नेतृत्व में लड़ेगी।

    पिता-पुत्र में शुरू हो चुका है मुलाकातों का दौर

    सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के बीच की तल्खियां पिछले कुछ वक्त से मिटती नजर आ रही हैं। मुलायम सिंह यादव ने लखनऊ के लोहिया ट्रस्ट में हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव को आशीर्वाद दिया था और कहा था कि वह सपा के साथ है। इसके बाद अखिलेश यादव ने ट्विटर पर खुशी जाहिर की थी और “नेताजी की जय, समाजवादी पार्टी की जय’ लिखा था। सपा में मुलायम सिंह यादव की उपस्थिति और सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव को उनका समर्थन देश के सियासी पटल पर अखिलेश की भूमिका को और मजबूती देगा। सपा अन्तर्कलह का परिणाम उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में देख चुकी है। प्रदेश में भाजपा की मजबूत होती पकड़ का मुकाबला करने के लिए सपा को मुलायम सिंह यादव के दिशा-निर्देश की जरुरत पड़ेगी और अखिलेश यादव इस ओर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं।

    अखिलेश के खिलाफ खड़े हुए थे दिग्गज सपाई

    सपा में चल रही वर्चस्व की लड़ाई में कई सपाई दिग्गज खुलकर शिवपाल के समर्थन में आ खड़े हुए थे। मुलायम सिंह यादव के खास रहे शारदा प्रसाद शुक्ल ने कहा था, “नेताजी झूठे समाजवादी हैं। उन्होंने पुत्रमोह में आकर नई पार्टी के गठन की प्रेस रिलीज नहीं पढ़ी जिसे शिवपाल ने उन्हें दिया था। अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सपा का समाजवाद से कोई लेना-देना नहीं है। मैं नई पार्टी के गठन के मुद्दे पर शिवपाल सिंह यादव के साथ खड़ा हूँ। नाराजगी का ढ़ोंग कर नेताजी अखिलेश यादव को मजबूत करने में जुटे हुए हैं।” उन्होंने कहा था कि दोनों बाप-बेटे मिले हुए हैं और जनता के साथ छल कर रहे हैं। सपा अपना वजूद खो चुकी है। उन्होंने आरोप लगाया था कि लोकसभा चुनावों के दौरान कन्नौज से डिंपल यादव 20,000 वोटों से हार गईं थी पर सूबे में सरकार होने के कारण उन्हें जबरदस्ती जिताया गया था।

    कभी मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी रहे पूर्व सपाई और राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने मुलायम और अखिलेश की लड़ाई को सपा का सियासी ड्रामा करार दिया था। उन्होंने मुलायम सिंह यादव पर पुत्रमोह का आरोप लगाते हुए कहा था कि नेताजी सिर्फ अखिलेश को मजबूत करने में जुटे हुए हैं। इसके लिए ही उन्होंने नाराजगी का सियासी ड्रामा रचा है और प्रदेश की जनता के साथ-साथ सपा के नेता भी इसमें छले जा रहे हैं। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से शिवपाल सिंह यादव की नाराजगी को सही ठहराते हुए उन्होंने कहा था कि शिवपाल सही बात कर रहे हैं पर अभी भी उन्हें वास्तविक सच्चाई नहीं दिख रही है। नेताजी शिवपाल के साथ खड़े होकर भी अखिलेश का साथ दे रहे हैं।

    मजबूत बनकर उभरेगी सपा

    परिवार में मची अन्तर्कलह से सपा बिखर सी गई थी। सपा परिवार दो धड़ों में विभाजित हो गया था और एक-दूसरे के खिलाफ तल्ख बयानबाजी जारी थी। पार्टी के नाम और चुनाव चिन्ह को लेकर मामला चुनाव आयोग तक पहुँच गया था जहाँ बाजी अखिलेश यादव के हाथ लगी थी। सपा परिवार में मची इस खींचतान का असर पार्टी संगठन पर भी पड़ा था और कई दिग्गज नेता सपा छोड़कर भाजपा और बसपा के साथ हो लिए थे। इसका खामियाजा सपा को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भी भुगतना पड़ा था और पार्टी के हाथ से सत्ता निकल गई थी। अब जब पूरा सपा परिवार एक होता दिख रहा है तो यह उम्मीद की जा रही है कि सपा एक बार फिर उत्तर प्रदेश और देश के सियासी पटल पर मजबूत होकर उभरेगी।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।