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    जयराम ठाकुर

    जयराम ठाकुर ने आज शिमला में हिमाचल प्रदेश के 13वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। जयराम ठाकुर के शपथ ग्रहण समारोह में पीएम नरेन्द्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह, गृह मंत्री राजनाथ सिंह, भूतल परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा के अन्य दिग्गज नेता भी उपस्थित रहे। जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने के साथ ही हिमाचल प्रदेश की सियासत का रंग पूर्णतया बदल गया है। अब मण्डी हिमाचल प्रदेश की सियासत का नया केंद्र बन गया है तथा हमीरपुर और शिमला बीते जमाने की बात हो गई है।

    बीते 24 दिसंबर को शिमला में हुई भाजपा विधायक दल की बैठक में हिमाचल प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में जयराम ठाकुर के नाम पर मुहर लगी थी। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज भाजपाई नेता प्रेम कुमार धूमल ने विधायक दल की बैठक में जयराम ठाकुर का नाम आगे किया था जिस पर सबकी सहमति रही थी। बैठक के दौरान रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी उपस्थित थे।

    हिमाचल प्रदेश के सभी लोकसभा और राज्यसभा सांसद भी बैठक में मौजूद थे। बैठक की अध्यक्षता हिमाचल भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती ने की थी। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में सुजानपुर विधानसभा सीट से धूमल की अप्रत्याशित हार के बाद मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में जयराम ठाकुर का ही नाम सबसे आगे चल रहा था और इस पर अंतिम मुहर स्वयं धूमल ने लगाई थी।

    हिमाचल प्रदेश में लगभग दो तिहाई बहुमत मिलने के बावजूद भाजपा इस उलझन में थी कि मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए। चुनाव पूर्व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में चुनाव लड़ने की घोषण की थी। भाजपा ने तो हिमाचल प्रदेश फतह कर लिया पर मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल सुजानपुर से चुनाव हार गए थे।

    हिमाचल भाजपा के अन्य दिग्गज नेताओं को भी चुनाव में शिकस्त का सामना करना पड़ा था जिस वजह से भाजपा आलाकमान के लिए एक मजबूत और सशक्त चेहरे का चुनाव करना कठिन हो चला था। ऐसे में यह कयास उठने लगे थे कि भाजपा केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा को हिमाचल प्रदेश की कमान सौंप सकती है लेकिन आखिरकार सहमति लगातार 5 बार से विधायक रहे जयराम ठाकुर के नाम पर ही बनी।

    बता दें कि हालिया सम्पन्न हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा ने दो तिहाई के करीब सीटें जीतते हुए 5 सालों बाद सत्ता वापसी की थी। भाजपा ने हिमाचल प्रदेश विधानसभा की 68 में से 44 सीटों पर जीत हासिल की थी वहीं सत्ताधारी दल कांग्रेस 21 सीटों पर सिमट कर रह गई। 3 सीटें अन्य दलों के खाते में आई थी। भाजपा ने मुख्यमंत्री को लेकर जारी असमंजस की स्थिति को स्पष्ट करते हुए पूर्व भाजपा प्रदेशाध्यक्ष जयराम ठाकुर को हिमाचल प्रदेश का नया मुख्यमंत्री चुना था। जयराम ठाकुर ने आज 27 दिसंबर को हिमाचल प्रदेश के 13वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

    अगर हिमाचल प्रदेश के पिछले 3 दशकों के सियासी इतिहास पर नजर डालें तो भाजपा और कांग्रेस यहाँ बारी-बारी से सत्ता में आती रही है। पर हिमाचल प्रदेश की सत्ता पर मुख्यतः दो परिवारों का ही कब्जा रहा है। कांग्रेस की सरकार बनने की सूरत में वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री बनते थे जो शिमला क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। वहीं भाजपा की सरकार बनने की सूरत में हिमाचल प्रदेश की कमान प्रेम कुमार धूमल के हाथों में रहती थी जो हमीरपुर से आते हैं।

    हालाँकि बीच में वरिष्ठ भाजपा नेता शांता कुमार थोड़े समय के लिए हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे थे और उस वक्त कांगड़ा सूबे की सियासत का केंद्र बन गया था। जयराम ठाकुर के मुख्यमंत्री बनने के बाद एक बार फिर दशकों बाद हिमाचल प्रदेश का सियासी केंद्र शिमला-हमीरपुर की जगह कहीं और स्थानान्तरित हुआ है।

    बतौर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के सामने जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरने की कड़ी चुनौती है। जयराम ठाकुर जमीन से जुड़े नेता हैं और उनके शपथ ग्रहण समारोह में छोटे से मैदान में उमड़ी खचाखच भीड़ ने इसकी बानगी भी पेश कर दी है। विधानसभा चुनावों भाजपा प्रेम कुमार धूमल को अपना चेहरा बनाकर उतरी थी और उनकी हार के भी यह माना जा रहा था कि भाजपा उनके सियासी तजुर्बे और नेतृत्व को प्राथमिकता देगी।

    विधायक दल की बैठक से पूर्व शिमला में ठाकुर और धूमल के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प देखने को मिली थी जिसकी वजह से हिमाचल भाजपा में गुटबाजी के आसार नजर आने लगे थे। पर दिल्ली बुलाए जाने का आश्वासन मिलने के बाद धूमल ने सहर्ष हिमाचल प्रदेश की कमान जयराम ठाकुर को सौंप दी। धूमल गुट के विधायकों को साथ लेकर चलना भी जयराम ठाकुर के लिए बड़ी चुनौती होगी।

    जयराम ठाकुर हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांगड़ा से भाजपा सांसद शांता कुमार के काफी करीबी माने जाते हैं। शांता कुमार हिमाचल प्रदेश के सियासी इतिहास में अहम स्थान रखते हैं और वह राज्य के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे। शांता कुमार भले ही वृद्ध हो चले हो पर भाजपा संगठन में उनकी पकड़ आज भी कमजोर नहीं हुई है। शांता कुमार के समर्थन की वजह से ही जयराम ठाकुर की दावेदारी को और बल मिला। जयराम ठाकुर ने दशकों तक हिमाचल भाजपा के हर छोटे-बड़े नेता के साथ काम किया है और उनके मृदुल स्वभाव का ही परिणाम है कि कोई भी नेता उनके खिलाफ खड़ा नहीं हुआ।

    हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा सांसद शांता कुमार की कांगड़ा में अच्छी पकड़ है और जयराम ठाकुर मण्डी के नए राजा बनकर उभरे हैं। हालिया संपन्न चुनावों में भाजपा ने मण्डी की 10 में से 9 विधानसभा सीटें जीती है। वहीं कांगड़ा की 15 विधानसभा सीटों में से 8 पर भाजपा को जीत हाथ लगी है। ऐसे में दोनों की यह जोड़ी हिमाचल प्रदेश को भाजपा का गढ़ बना सकती है।

    चुनाव प्रचार के वक्त कांगड़ा में चुनावी रैली को सम्बोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा था, “जो कांगड़ा में चुनाव जीतता है, हिमाचल प्रदेश में उसी की सरकार बनती है।” उनकी यह बात सोलह आने सच है। कांगड़ा हिमाचल प्रदेश का सबसे बड़ा जिला है। हिमाचल प्रदेश विधानसभा की कुल 68 सीटों में से अकेले 15 सीटें कांगड़ा जिले की है। एक तरह से कांगड़ा जिला हिमाचल प्रदेश की सियासत में ‘किंगमेकर’ की भूमिका निभाता है। इसी वजह से यह कहा जाता है कि हिमाचल जीतने के लिए कांगड़ा जीतना जरुरी है। भाजपा ने जिले में 8 सीटों पर जीत दर्ज की हैं।

    2012 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को कांगड़ा की 15 में से 2 सीटों पर जीत मिली थी वहीं कांग्रेस के हाथ 10 सीटें लगी थी। हालाँकि 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार ने कांगड़ा संसदीय सीट से निवर्तमान सांसद कांग्रेस के चन्दर कुमार को तकरीबन 2,07,000 मतों के बड़े अंतर से हराया था। शांता कुमार को 5,56,000 मत मिले थे वहीं चन्दर कुमार को तकरीबन 2,86,000 मत मिले थे। मतों के लिहाज से शांता कुमार की यह जीत कांगड़ा में अब तक का रिकॉर्ड थी। 2014 आम चुनावों में भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में क्लीन स्वीप किया था।

    अगर सियासी गणित पर नजर डालें तो हिमाचल की सत्ता तक पहुँचने का रास्ता कांगड़ा, मण्डी और शिमला से होकर जाता है। हिमाचल प्रदेश के 12 जिलों में कांगड़ा सबसे बड़ा जिला है। कांगड़ा जिले में 15 विधानसभा सीटें हैं। कांगड़ा के बाद मण्डी हिमाचल का दूसरा सबसे बड़ा जिला है। मण्डी में 10 विधानसभा सीटें हैं। इसके बाद स्थान आता है हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला का। शिमला में 8 विधानसभा सीटें हैं। हिमाचल विधानसभा में कुल 68 सीटें हैं। राज्य में सरकार बनाने के लिए बहुमत का आंकड़ा 35 सीटों का है।

    अगर कांगड़ा, मण्डी और शिमला की विधानसभा सीटों को मिला दें तो इन 3 जिलों को मिलकर ही आंकड़ा 33 तक पहुँच जाता है जो बहुमत के आंकड़े से मात्र 2 सीटें कम है। अगर हिमाचल भाजपा के गढ़ और प्रेम कुमार धूमल के गृह जनपद हमीरपुर की 5 सीटों को मिला दें तो यह आंकड़ा 38 तक पहुँच जाता है। इस वजह से भाजपा ने हिमाचल प्रदेश की सियासत में अहम स्थान रखने वाले इन 4 जिलों पर ही अपना ध्यान केंद्रित किया था।

    हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे इस बार काफी चौंकाने वाले रहे। एक ओर जहाँ सत्ताधारी दल कांग्रेस सत्ता से हाथ धो बैठी वहीं तकरीबन दो तिहाई बहुमत से सत्ता वापसी करने के बावजूद भाजपा के कई सियासी दिग्गजों को शिकस्त का सामना करना पड़ा। इनमें भाजपा के मुख्यमंत्री उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल, भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती, धूमल के समधी गुलाब सिंह ठाकुर, पूर्व मंत्री रविंद्र सिंह रवि, रणधीर शर्मा जैसे दिग्गजों के नाम शामिल हैं।

    हिमाचल प्रदेश की सत्ता में आने के लिए भाजपा ने अपने तरकश से सारे तीर निकाल लिए थे। प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाना भाजपा की सत्ता वापसी की रणनीति का ही हिस्सा था। कोई भी सियासी दल चाहे विकास को कितनी भी तवज्जो दे पर आज भी देश में राजनीति का मुख्य आधार जातिवाद ही है। हिमाचल प्रदेश में राजपूत समाज ‘किंग मेकर’ की भूमिका में था और उसके समर्थन बिना हिमाचल की सत्ता तक पहुँचना नामुमकिन था। भाजपा ने वीरभद्र सिंह के खिलाफ प्रेम कुमार धूमल को आगे कर हिमाचल के जातीय और सियासी समीकरणों को साधा था।

    प्रेम कुमार धूमल राजपूत समाज से आते हैं और राजपूत मतदाताओं की हिमाचल प्रदेश में बड़ी तादात है। हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग में 37 फीसदी भागीदारी राजपूतों की है। सियासी कद और अनुभव के लिहाज से भी धूमल वीरभद्र सिंह के सामने सबसे वाजिब उम्मीदवार थे। इस वजह से उन्हें आगे करना एक तरह से भाजपा की मजबूरी भी थी।

    भाजपा को हिमाचल प्रदेश में सत्ता से कम कुछ भी मंजूर नहीं था। भाजपा हिमाचल की सत्ता पाने के लिए कितनी आतुर थी इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने सत्ता की चाह में ‘रूल 75’ को ताक पर रख दिया था। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रेम कुमार धूमल के नाम का ऐलान कर यह स्पष्ट कर दिया था कि भाजपा सत्ता वापसी के लिए एक बार अपने सिद्धांतों से समझौता कर सकती है।

    प्रेम कुमार धूमल की मौजूदा आयु 73 वर्ष, 6 महीने है। अगर भाजपा के ‘रूल 75’ के लिहाज से देखें तो बतौर मुख्यमंत्री उनके पास 16 महीने का कार्यकाल होता। भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की लोकप्रियता को हिमाचल में सत्ता वापसी का आधार बनाने का दांव खेला था जो काफी हद तक सफल रहा। अब जब धूमल अपनी विधानसभा सीट हार गए हैं ऐसे में भाजपा उन्हें दोबारा हिमाचल प्रदेश की सियासत में आजमाए ये मुश्किल ही लगता है। भाजपा धूमल को केंद्र की राजनीति या पार्टी संगठन में सम्मानजनक स्थान देकर इसकी भरपाई कर सकती है।

    हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिग्गज नेता ‘राजा साहब’ वीरभद्र सिंह विधानसभा चुनावों से पहले ही यह बात कह चुके थे कि यह चुनाव उनके सियासी जीवन का आखिरी चुनाव है। टिकट वितरण और मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर उनकी कांग्रेस आलाकमान से झड़प भी हुई थी और उन्होंने बगावती तेवर भी दिखाए थे। उनके समर्थन में हिमाचल कांग्रेस के 27 विधायकों तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी को हस्ताक्षर युक्त चिट्ठी लिखी थी।

    इन विधायकों ने वीरभद्र सिंह को अपना नेता माना था और उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ने की बात कही थी। हर दांव आजमाने के बावजूद वीरभद्र सिंह सत्ता बचाने में नाकाम रहे। जिस राहुल गाँधी की सियासी समझ को वीरभद्र सिंह ने कभी तवज्जो नहीं दी वह आज कांग्रेस अध्यक्ष बन चुके हैं। हिमाचल प्रदेश में राहुल गाँधी की पसंद पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू थे। आलाकमान से कायम मतभेदों की वजह से यह चुनाव वीरभद्र सिंह के सियासी जीवन का आखिरी चुनाव साबित हो सकता है।

    जयराम ठाकुर की उम्र भले ही 52 वर्ष हैं पर सियासी अनुभव के लिहाज से वो किसी से कम नहीं हैं। तकरीबन 3 दशकों से जयराम ठाकुर भाजपा संगठन के लिए कम कर रहे हैं और बीते दो दशक से लगातार 5 बार विधायक चुने जा चुके हैं। जयराम ठाकुर के पास प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल में बतौर कैबिनेट मंत्री 5 वर्षों का अनुभव है। भाजपा आलाकमान ने हिमाचल प्रदेश के सियासी समीकरण को देखते हुए एक योग्य और कर्मठ मुख्यमंत्री का चुनाव किया है।

    हिमाचल प्रदेश में जयराम ठाकुर की पहचान एक कर्मठ और जमीन से जुड़े नेता के तौर पर है। बतौर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष उन्होंने हिमाचल प्रदेश में पार्टी की जड़ें तो मजबूत की ही हैं पर उससे पूर्व बतौर एबीवीपी कार्यकर्ता भी उनका काम कम सराहनीय नहीं था। जयराम ठाकुर ने अपने सियासी सफर का आगाज अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के तौर पर किया। अपनी स्नातक की पढ़ाई के दौरान जयराम ठाकुर एबीवीपी से जुड़े थे। वर्ष 1986 में जयराम ठाकुर एबीवीपी के प्रदेश संयुक्त सचिव बने। वर्ष 1989-93 के दौरान वह जम्मू-कश्मीर एबीवीपी के संगठन सचिव रहे। वर्ष 1993-95 तक जयराम ठाकुर हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी युवा मोर्चा के प्रदेश सचिव रहे।

    जयराम ठाकुर ने अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन का आगाज वर्ष 1993 में किया था जब वह हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों में मण्डी जिले की चाचिओट विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे। इस चुनाव में जयराम ठाकुर को 800 मतों से शिकस्त झेलनी पड़ी थी। हालाँकि अपने प्रदर्शन से उन्होंने पार्टी नेताओं को प्रभावित किया था और सबका ध्यान अपनी ओर खींचा था।

    इसके बाद वर्ष 1998 में ठाकुर ने इसी सीट से दोबारा चुनाव लड़ा और वह विजयी रहे। इसके बाद तो जैसे यह सीट उनका अभेद्य दुर्ग बन गई और उन्होंने लगातार 5 बार इसी सीट से विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की। उन्होंने मण्डी जिले को भाजपा का मजबूत गढ़ बनाने के काफी प्रयास जिसके नतीजन हालिया संपन्न विधानसभा चुनावों में भाजपा जिले की 10 में से 9 विधानसभा सीटों पर जीतने में कामयाब रही।

    जयराम ठाकुर वर्तमान में मण्डी जिले की सेराज विधानसभा सीट से विधायक हैं जो वर्ष 2010 में नए परिसीमन के बाद बनी थी। जयराम ठाकुर प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं। उनके जिम्मे ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्रालय था। भाजपा ने जब 2007 में हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाई थी उस वक्त हिमाचल भाजपा की कमान जयराम ठाकुर के हाथों में ही थी। वह वर्ष 2006-09 तक हिमाचल प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष बने रहे। बतौर भाजपा प्रदेशाध्यक्ष उनका कार्यकाल गैर-विवादास्पद रहा और उनके नेतृत्व में भाजपा हिमाचल प्रदेश में सत्ता वापसी करने में सफल रही थी।

    जयराम ठाकुर की लोकप्रियता कार्यकर्ताओं में इसलिए भी अधिक है क्योंकि वह वातानुकूलित कमरों में बैठकर राजनीति नहीं करते हैं। वह स्वयं जमीनी स्तर की राजनीति करते हैं। जयराम ठाकुर हिमाचल प्रदेश के उन सुदूर क्षेत्रों में भी बतौर संगठन कार्यकर्ता काम कर चुके हैं जहाँ ठण्ड की वजह से कोई नेता जाना नहीं चाहता है। जयराम ठाकुर एक निम्न मध्यम वर्ग के परिवार से आते हैं लिहाजा एक बड़े तबके का उनसे भावनात्मक जुड़ाव भी है। यह सभी बिंदु बतौर मुख्यमंत्री उनकी जनता में स्वीकार्यता को और भी बढ़ाते हैं। उम्मीद है कि जमीनी नेता रहे जयराम ठाकुर हिमाचल प्रदेश में आम जनता के मुख्यमंत्री बनकर उभरेंगे।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।