बॉलीवुड सुपरस्टार शाहरुख़ खान ना केवल सबसे काबिल अभिनेता में से एक हैं बल्कि उन्हें अपनी शिक्षा और ज्ञान के लिए भी बहुत सराहा जाता है। जब उन्हें अपने दान कार्य के लिए लंदन के यूनिवर्सिटी ऑफ़ लॉ से डॉक्टरेट की उपाधि मिली थी तो सभी देशवासी का सर गर्व से ऊँचा उठ गया था। ये उनकी चौथी डॉक्टरेट की उपाधि की है और इसे लेते वक़्त उन्होंने जो स्पीच दी वो आपको जरूर सुननी चाहिए क्योंकि उसे सुनने के बाद, ज़िन्दगी में कुछ बड़ा करने को लेकर आपका नजरिया बदल जाएगा।
उन्होंने शुरुआत की-“मैं एक अभिनेता हूँ और मैं दोनों वास्तविकता की दुनिया जो हमें बना सकती है और नष्ट कर सकती है और एक विश्वास-दिलाएं दुनिया जिसका हम अपनी इच्छा से निर्माण कर सकते हैं और नष्ट कर सकते हैं, में भटकता हूँ। जैसे-जैसे मैं और अधिक सफल होता गया, मुझे समझ आने लगा कि वास्तविक दुनिया में केंद्रीय साझेदारी और देना कैसा है। सब कुछ जमा करना खासतौर पर अपनी सफलताओं का फल से, केवल परिप्रेक्ष्य, असुरक्षा और शक्ति खोने का डर होता है। देना हमें दूसरों के साथ बढ़ने की संभावना के साथ जीवित बनाता है; हमारे काम में साझा करना और उनके स्वयं के विशिष्ट सुंदर दृष्टिकोण के साथ हमारे जीवन को समृद्ध करना।”
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हालांकि, किंग खान की स्पीच का मुख्य आकर्षण तब होता है जब वह स्वार्थी होने और कभी किसी को अपनी विचाधारा नहीं बेचनी चाहिए, इस पर बात करते हैं।
उनके मुताबिक, “मैं हालांकि यह कहना चाहूंगा कि सभी सेवा वास्तव में कुछ मायनों में स्वार्थी है क्योंकि यह हमें अधिक सार्थक या योग्य बनाती है। एक दूसरे के प्रति दयालुता का प्रत्येक कार्य वास्तव में स्वयं के प्रति दयालुता का कार्य है। तो जैसे मैं निष्कर्ष निकालता हूँ, मैं युवाओं को एक ईमानदार इच्छा के साथ छोड़ देता हूँ कि इस कमरे में हर कोई इतना स्वार्थी हो जाए कि किसी दिन मानव जाति की बेहतरी में योगदान दे सके।”
उन्होंने ये भी कहा कि जैसे जो रोब उन्होंने पहना है वो बेचने के लिए नहीं है, वैसे ही किसी भी व्यक्ति की विचारधारा भी कभी बेचनी नहीं चाहिए।