Hooch Tragedy in Bihar And Liquor Ban Policy: अभी हाल में बिहार में जहरीली शराब पीने से 80 से भी ज्यादा मौतों के बाद राज्य में जारी शराबबंदी की नीति (Ban on Liquor) पर तमाम राजनीतिक सवाल-जवाब एक बार फिर शुरू हो गए।
बिहार सरकार ने 2016 में अपने चुनावी वायदों को पूरा करने के क्रम में राज्य में शराबबंदी की नीति को लागू किया और तब से ही इस नीति को लेकर तमाम प्रश्न उठते रहे हैं। मसलन, क्या शराबबंदी एक सही नीति है? क्या शराबबंदी के बाद बिहार में शराब मिलना बंद हो गया? शराबबंदी की बावजूद आये दिन जहरीली शराब पीने से लोगों की मौत क्यो होती है? या फिर क्या इसे और प्रभावी बनाये जाने की आवश्यकता है?
बिहार के समाजिक परिवेश पर पड़ा है असर
महिला वोटरों से किये गए चुनावी वादे को पूरा करने के लिए 2016 में नीतीश कुमार की सरकार ने राज्य में शराबबंदी की थी। असल मे शराबबंदी ने वहाँ के सामाजिक ताने-बाने पर निःसंदेह एक फर्क डाला है।
मैं खुद बिहार राज्य का स्थायी निवासी हूँ और इस बात को वहाँ के आवो-हवा में महसूस किया जा सकता है। जब हम बच्चे थे, तब मेरे गाँव मे एक कलाली (शराब-अड्डा जिसे स्थानीय भाषा मे कलाली कहते हैं) हुआ करता था। हर शाम वहां पर इलाके के मर्दों का खासकर निम्न आय वाले लोग या मजदूर वर्ग के लोगों का जमावड़ा हुआ करता था।
शाम ढलती थी और कलाली पर जाम छलकना शुरू। फिर शाम ढलते ही रात के अंधेरो के बढ़ती सघनता के साथ सड़कों पर नशे में धुत्त लोगों के नौटंकी व कभी कभी बिरहा (स्थानीय गाने की एक विधा) सुनाई देने लगता था।
कई बार यह नशा दो गुटों के बीच की झड़प की भी वजह बनती थी और पूरे गाँव या इलाके की शांति भंग होता था। फिर इनमें से कुछ दारूबाज घर पहुंच कर अपने बीवी-बच्चों पर अपना नशा उतारते थे। गृह-कलह का तमाशा लगभग हर शाम वहाँ हनलोगों के लिए आम बात थी।
शराब की लत ने न जाने कितने युवाओं को बर्बाद किया था। कुछ लोग मात्र 40-50 की उम्र में इसलिए दुनिया छोड़ गए क्योंकि वे लोग जीते-जी शराब ना छोड़ सके। यह सिर्फ एक मेरे गाँव की कहानी नहीं है; कमोबेश यही तस्वीर पूरे बिहार की होती थी।
पर आज शराबबंदी के बाद इन गाँव मे ना वह कलाली रहा, ना ही कोई वैधानिक शराब अड्डा। राज्य सरकार की पुलिस और अन्य विभाग भी शराबबंदी को लेकर लगातार अभियान चलाते रहती हैं।
हालाँकि, ऐसा नहीं है कि बिहार में शराब नही मिल रहा। चोरी-छिपे स्थानीय लोगों द्वारा महुआ के फूल आदि से देशी शराब बनाये जाते हैं। लोग चोरी छिपे या दूसरे राज्यों से लाकर शराब आज भी पी रहे हैं। लेकिन जिन्हें शराब की लत है वे भी रोज-रोज चोरी-छिपे शराब की जुगाड़ लगाने से अज़ीज़ आकर इसका सेवन कम कर चुके हैं।
इसका नतीजा यह हुआ कि महिलाओं के ख़िलाफ़ होने वाले अपराध खासकर घरेलू-हिंसा में भारी कमी आयी है। 2016 से 2020 के बीच बिहार में दर्ज घरेलू हिंसा के मामलों में 37% की बड़ी गिरावट दर्ज की गई है। साथ ही यह महिलाएं अब “जीविका दीदी” जैसी परियोजनाओं के जरिये न सिर्फ अपना बल्कि पूरे परिवार के आर्थिक हालात को सही कर रही हैं।
संविधान क्या कहता है शराब को लेकर
संविधान के भाग-4 में वर्णित राज्यों के लिए नीति-निर्देशक तत्व (Directive Principles of State Policy of India, in short DPSP) के अंदर अनुच्छेद 47 (Article 47) कहता है कि राज्य, नागरिकों के पोषण-स्तर व जीवन स्तर की वृद्धि के लिए लोकस्वास्थ्य, औषधि निर्माण और नशामुक्ति के संबंध में आवश्यक प्रावधान करेगा।
यहाँ यह स्पष्ट करना जरूरी है कि राज्य, DPSP को क़ानूनी तौर पर लागू करने के लिए बाध्य (Legally Enforceable) नहीं होता, अपितु यह अपेक्षा की जाती है कि जनता के हितों को ध्यान में रखते हुए राज्य यह कदम उठाएगा। इसलिए, शराबबंदी या नशामुक्ति के लिए उठाए गए कदम सवैधानिक दायरे में हैं, इसमें कोई शक नहीं है।
फिर पूरे भारत मे शराबबंदी क्यों नहीं है
शराब यानि अल्कोहल (Alcohol) भारतीय संविधान के सातवीं अनुसूची (7th Schedule) के अंदर राज्य-सूची का हिस्सा है। यही वजह है कि शराबबंदी की नीति सम्पूर्ण भारत मे लागू न होकर बिहार, गुजरात, नागालैंड, मिज़ोरम, पुडुचेरी आदि कुछ राज्यों ( +UTs) में ही लागू है।
दूसरा शराब पर प्रतिबंध लगाने से राज्यों को बड़ा आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। उदाहरण के लिए 2020 में कोविड के दौरान राष्ट्रव्यापी लॉक-डाउन के चलते शराब की दुकानें बंद थी जिसकी वजह से महाराष्ट्र राज्य को शराब से प्राप्त होने वाले राजस्व-आय (Revenue) में मार्च (17000 करोड़) के मुकाबले अप्रैल (11000 करोड़) में कुल 6000 करोड़ का नुकसान हुआ था।
बिहार में शराबबंदी के मायने
बिहार इस देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक है। यह राज्य अपने आर्थिक जरूरतों के लिए 75% तक केंद्र सरकार से मिलने वाले GST में हिस्सा और अनुदान पर निर्भर है।
2014-15 में बिहार में अल्कोहल से प्राप्त होने वाला राजस्व कर 3100 करोड़ रुपये का था। यह बिहार राज्य के कुल राजस्व-कर का लगभग 15% तथा राज्य की सकल घरेलू उत्पाद (SGDP) का 1% हिस्सा था।
ऐसे में भी अगर राज्य सरकार शराबबंदी से होने वाले आर्थिक नुकसान को उठाने को तैयार है, यह निश्चित ही एक साहसिक कदम है। अब इसके सफल या असफल होना इस बात पर निर्भर करता है कि हम इसे किस नजरिये से देखते हैं।
शराबबंदी: सवालों से परे नहीं
शराबबंदी की नीति का बिहार में सबसे बड़ा फायदा यही हुआ है कि सामाजिक परिवेश में एक सकारात्मक बदलाव आया है। महिलाओं की स्थिति समाज मे सुदृढ़ हुई है। लेकिन शराबबंदी जैसी किसी भी नीति जो DPSP से सम्बंधित है, उसको सफल होने के लिए सरकार के साथ साथ समाज और सिविल सोसाइटी को भी एक क़िरदार निभाना पड़ेगा।
आप तमाम सवाल उठा सकते हैं कि शराबबंदी के बाद भी शराब उपलब्ध है; लोगों की मौतें ज़हरीली शराब के सेवन से हो रही हैं; आदि आदि…। इसे देखने का नजरिया वही है कि हम क्या देखना चाहते हैं- जाम आधा भरा, या आधा खाली।