हाल ही मे जारी एक बयान मे सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति विशेष की जाति स्थायी है और विवाह के बाद जाति में बदलाव संभव नही है।
इस कड़ी मे सर्वोच्च न्यायालय ने एक शिक्षिका की नियुक्ति को रद्द करार दिया। इस शिक्षिका ने 21 वर्ष पूर्व केंद्रीय विद्यालय मे नियुक्ति ली थी। यह नियुक्ति आरक्षण के आधार पर पर हुई थी, जिसमे उन्होंने अपने पति की जाति का आधार दिया था।
जजों के पैनल से जस्टिस अरूण मिश्रा और एम एम शंतानागौदार ने कहा कि यह महिला, जो इस समय उस ही विद्यालय मे उप-प्रधानाध्यापक के तौर पर नियुक्त है, असल मे उस आरक्षण की हकदार नही है, क्योंकि उसका जन्म उच्च जाति मे हुआ था। और किसी आरक्षित जाति के व्यक्ति से शादी करने से उनकी व्यक्तिगत जाति मे कोई बदलाव नही आता है।
खबरों के मुताबिक, उस महिला को जाति प्रमाण पत्र 1991 मे जारी हुआ था और 1993 मे केंद्रीय विद्यालय पठानकोट मे उनकी नियुक्ति शैक्षणिक योग्यता और जाति पर आधारित थी।
उनकी नियुक्ति के 2 दशक बाद किसी अज्ञात याचिकाकर्ता की शिकायत पर जांच के बाद उनकी नियुक्ति को अवैध करार देते हुए उसे रद्द कर कर दिया गया।
जिसके बाद शिक्षिका ने इलाहाबाद हाई कोर्ट मे याचिका दायर की, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा की जाति को आधार बनाकर उन्हे नियुक्ति दी जा सकती ।
इस बयान को ध्यान मे रखते हुए हाईकोर्ट ने उनकी बर्खास्तगी को स्थायी निवृत्ति मे बदल दिया। यह फैसला उनके असाधारण कार्यकाल रिकॉर्ड को देखकर लिया गया है। इस पर कोर्ट ने कहा कि “उन्होंने अपने कार्यकाल मे कोई जालसाजी या धोखा नही किया। बल्कि उनकी 10वी और 12वी की मार्कशीट मे उनकी जाति का भी उल्लेख था।”