Sun. Dec 22nd, 2024
    मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव

    देश के सबसे बड़े सियासी कुनबे की आपसी कलह एक बार फिर सतह पर आ गई। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में आयोजित लोहिया ट्रस्ट की बैठक से अखिलेश यादव और उनके समर्थक एक बार फिर नदारद दिखे। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव, शिवपाल सिंह यादव समेत उनके गुट के सभी सदस्य ट्रस्ट की बैठक में उपस्थित रहे वहीं अखिलेश यादव गुट ने इस बैठक का बहिष्कार किया। अखिलेश यादव, रामगोपाल यादव, आजम खान, धर्मेंद्र यादव और बलराम यादव इस बैठक में शामिल नहीं हुए। इससे एक बार फिर साफ हो गया कि सपा में जारी आन्तरिक कलह अभी तक थमी नहीं है। इससे पूर्व मुलायम सिंह यादव द्वारा अगस्त में बुलाई गई लोहिया ट्रस्ट की बैठक का भी अखिलेश गुट ने बहिष्कार किया था। शिवपाल सिंह यादव ने संकेत दिए कि मुलायम सिंह यादव 25 सितम्बर को कोई बड़ी घोषणा कर सकते हैं।

    अखिलेश गुट के 4 सदस्य निष्कासित

    मुलायम सिंह यादव के अलावा शिवपाल सिंह यादव, अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव भी लोहिया ट्रस्ट के सदस्य हैं। लोहिया ट्रस्ट की बैठक में मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव ने हिस्सा लिया और शिवपाल सिंह यादव ने अपनी पकड़ का फायदा उठाकर अखिलेश यादव गुट के 4 समर्थक सदस्यों को ट्रस्ट से निकाल दिया। निष्कासित किए जाने वाले सदस्यों में रामगोविंद चौधरी, उषा वर्मा, अशोक शाक्य और अहमद हसन के नाम शामिल हैं। ये चारों ही अखिलेश यादव के करीबी माने जाते हैं। इनकी जगह दीपक मिश्रा, राम नरेश यादव, राम सेवक यादव और राजेश यादव को ट्रस्ट का नया सदस्य बनाया गया है। ट्रस्ट में शामिल किए गए नए सदस्य शिवपाल सिंह यादव के करीबी हैं। शिवपाल सिंह यादव ने ट्रस्ट में अपना दबदबा और बढ़ा लिया है।

    बढ़ा शिवपाल का कद

    अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले 4 सदस्यों के निष्कासन के साथ ही मुलायम सिंह यादव गुट में शिवपाल सिंह यादव का कद बढ़ गया है। मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच आई रार का मुख्य कारण शिवपाल सिंह यादव को ही माना जाता है। शिवपाल सिंह यादव इस गुटबाजी के बाद से ही लगातार मजबूत होकर उभरे हैं। शिवपाल सिंह यादव सपा के संस्थापक सदस्यों में से एक है और शुरुआत से ही नेताजी के साथ हैं। संगठन और पार्टी कार्यकर्ताओं में उनकी अच्छी-खासी पकड़ है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपनी भूमिका बनाने के लिए अब वह नेताजी के कद का सहारा ले रहे हैं और मुलायम सिंह यादव को आगे कर अपनी चाल चल रहे हैं। सदस्यों के निष्कासन पर शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि ट्रस्ट की बैठक में नियमित रूप से शामिल ना होने की वजह से यह कदम उठाया गया है।

    रामगोपाल यादव पर भी गिर सकती है गाज

    शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि लोहिया ट्रस्ट के निर्माण का उद्देश्य राम मनोहर लोहिया के सिद्धांतों पर चलते हुए समाज के हित में काम करना था। लेकिन कुछ सदस्यों की बेरुखी और अनुपस्थिति की वजह से ट्रस्ट अपने लक्ष्य से भटक रहा था। इस वजह से हम,ने निष्कासन का फैसला लिया है। अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव भी पिछले 2 बार से ट्रस्ट की बैठकों से शामिल नहीं हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि बड़े नामों पर भी कार्रवाई हो सकती है। ऐसे में माना जा रहा है कि रामगोपाल यादव पर भी गाज गिर सकती है। शिवपाल सिंह यादव ने इस बात को सिरे से नकार दिया कि अखिलेश यादव लोहिया ट्रस्ट के अध्यक्ष बनेंगे। उन्होंने कहा कि लोहिया ट्रस्ट के अध्यक्ष नेताजी हैं और आगे भी वही अध्यक्ष बने रहेंगे।

    गर्दिश में चल रहे हैं सपा के सितारे

    सपा के सितारे पिछले कुछ वक्त से गर्दिश में चल रहे हैं। कभी देश का सबसे शक्तिशाली राजनीतिक परिवार रही सपा में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से पूर्व मतभेद खुलकर सामने आ गए थे और पार्टी दो धड़ों में विभाजित हो गई थी। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने पिता मुलायम सिंह यादव के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और चाचा शिवपाल सिंह यादव समेत उनके करीबियों को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। सपा की आपसी कलह का असर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों पर भी दिखा और सत्ता पर काबिज सपा को शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा सत्ता में आई थी और योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे। मुलायम सिंह यादव को किनारे कर अखिलेश यादव ने उन्हें सपा संरक्षक की भूमिका तक ही सीमित कर दिया था।

    राष्ट्रपति चुनावों के दौरान भी बढ़ी थी रार

    भाजपा के हाथों उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद कुछ वक्त तक सपा की आंतरिक कलह शांत रही थी। तब ऐसा लग रहा था कि सपा परिवार के मतभेद समाप्त हो गए हैं और पूरा परिवार फिर से साथ आ गया है। लेकिन एनडीए द्वारा रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाए जाने के बाद सपा की कलह एक बार फिर से उजागर हो गई। सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव ने एनडीए को रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी के लिए समर्थन देने की बात कही। उत्तर प्रदेश में चल रहे गठबंधन की वजह से अखिलेश यादव ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की उम्मीदवार मीरा कुमार का समर्थन किया। मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव ने रामनाथ कोविंद के पक्ष में मतदान किया था और शिवपाल सिंह यादव ने तो 15-20 सपा विधायकों के रामनाथ कोविंद के पक्ष में क्रॉस वोटिंग करने की बात भी कही थी।

    25 सितम्बर को नई पार्टी के गठन की घोषणा कर सकते हैं मुलायम

    सपा में चल रही इस आपसी प्रतिद्वंदिता का असर पार्टी पर भी स्पष्ट रूप से दिख रहा है। सपा का संगठन कमजोर होता जा रहा है और पार्टी की लोकप्रियता भी घट रही है। इस वर्चस्व की जंग में खुद को विजेता बनाने में अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव जी-जान से जुटे हुए हैं। अखिलेश यादव को इस बात का अंदाजा हो चुका है कि मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर शिवपाल सिंह यादव नई पार्टी गठित कर सकते हैं। अखिलेश यादव सपा में अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहते हैं और इसी वजह से वह पार्टी कार्यकर्ताओं से लगातार मिल रहे हैं। 23 सितम्बर को सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने लखनऊ के रमाबाई अम्बेडकर मैदान में सपा का प्रादेशिक सम्मलेन बुलाया है। 5 अक्टूबर को आगरा में सपा का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया गया है। राष्ट्रीय अधिवेशन के माध्यम से अखिलेश यादव एक बार फिर सपा में अपना वर्चस्व साबित करना चाहते है।

    शिवपाल सिंह यादव ने कन्नौज में कहा था कि नेताजी का और अपमान अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने संकेत दिया था कि नवरात्रि के दौरान वह नेताजी के साथ मिलकर नई पार्टी शुरू कर सकते हैं। लोहिया ट्रस्ट की बैठक के बाद इस बात पर मुहर लगाते हुए उन्होंने कहा कि 25 सितम्बर को नेताजी मुलायम सिंह यादव कोई बड़ी घोषणा करेंगे। माना जा रहा है कि यह घोषणा नई पार्टी के गठन की हो सकती है। शिवपाल सिंह यादव के मुलायम सिंह यादव के साथ मिलकर नई पार्टी गठित करने से अखिलेश यादव के लिए मुश्किलें और बढ़ जाएगी।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।