उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य आज लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देंगे। 14 सितम्बर को योगी और मौर्य निर्विरोध विधानपरिषद सदस्य (एमएलसी) चुने गए थे। इसके बाद ही यह साफ हो गया था कि दोनों जल्द ही अपनी लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देंगे। नियमों के मुताबिक, कोई भी व्यक्ति एक वक्त में सिर्फ एक ही पद पर काबिज रह सकता है। पहले यह अटकलें लगाईं जा रही थी कि केशव प्रसाद मौर्य को केंद्रीय मन्त्रिमण्डल में शामिल किया जा सकता है पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने यह कहकर इन अटकलों पर विराम लगा दिया था कि मौर्य को उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ी भूमिका निभानी है। इसके साथ ही यह भी तय हो गया है कि आगामी 6 महीनों के भीतर उत्तर प्रदेश में लोकसभा उपचुनाव होंगे।
निर्विरोध एमएलसी चुने गए थे योगी समेत मन्त्रिमण्डल के पाँचों मंत्री
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत योगी मन्त्रिमण्डल में 5 ऐसे मंत्री थे जिन्हें उत्तर प्रदेश विधान मंडल के किसी भी सदन की सदस्यता हासिल नहीं थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अलावा इनमें उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, डॉ. दिनेश शर्मा, स्वतंत्र देव और मोहसिन रजा के नाम भी शामिल थे। नियमों के मुताबिक अपने पद पर बने रहने के लिए इन्हें 6 महीने के भीतर उत्तर प्रदेश विधान मंडल के किसी भी सदन की सदस्यता लेनी जरुरी थी। योगी सरकार का गठन 19 मार्च को हुआ था और नियमों के मुताबिक 19 सितम्बर इन मंत्रियों के विधान मंडल की सदस्यता ग्रहण करने की आखिरी तारीख थी। पिछले दिनों 5 विधानपरिषद सदस्यों ने अपनी सदस्यता से इस्तीफा देकर भाजपा की राह आसान कर दी थी। इस्तीफा देने वालों में से 4 नेता सपा के वहीं 1 नेता बसपा का था। बाद में यह सभी भाजपा में शामिल हो गए।
भाजपा पर लगा था जोड़-तोड़ की राजनीति करने का आरोप
चन्द दिनों के भीतर विपक्षी दलों के 5 विधानपरिषद सदस्यों के इस्तीफे से उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल मच गई थी। इन इस्तीफों के पहले भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ का दौरा किया था। विधानपरिषद सदस्यता छोड़ने वाले 5 सदस्यों में से 4 सदस्य सपा के थे वहीं बसपा का 1 सदस्य इसमें शामिल था। सपा से अखिलेश यादव के करीबी माने जाने वाले बुक्कल नवाब समेत अशोक वाजपेयी, सरोजिनी अग्रवाल और यशवंत सिंह ने अपने इस्तीफे सौंपे थे वहीं बसपा से जयवीर सिंह ने अपना इस्तीफा सौंपा था। इन इस्तीफों के बाद सपा और बसपा ने भाजपा पर जोड़-तोड़ की राजनीति करने का आरोप लगाया था। इस्तीफा देने वाले सभी नेता अब भाजपा में शामिल हो गए हैं और आगामी समय में भाजपा इन्हें महत्वपूर्ण पद दे सकती है।
लोकसभा उपचुनावों का रास्ता साफ
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफों के साथ ही उत्तर प्रदेश में लोकसभा उपचुनाव का रास्ता साफ हो गया है। 2014 में हुए लोकसभा चुनावों में योगी आदित्यनाथ लगातार पांचवी बार गोरखपुर से सांसद बने थे वहीं केशव प्रसाद मौर्य ने वर्तमान में सपा के गढ़ और कभी कांग्रेस की परंपरागत सीट रही फूलपुर से लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज की थी। आजादी के बाद यह पहला मौका था जब भाजपा को फूलपुर सीट हाथ लगी थी। इस सीट पर दलित, अल्संख्यक और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं का बड़ा जनाधार है और इसी वजह से हमेशा यहाँ जाती आधारित राजनीति हावी रही है। सपा दशकों से इसी समीकरण को साध कर यह सीट जीतती आ रही थी पर इस बार केशव प्रसाद मौर्य की उम्मीदवारी सभी समीकरणों पर भरी पड़ी थी। सपा, बसपा और कांग्रेस के उम्मीदवारों को संयुक्त रूप से भी मौर्य से कम मत मिले थे।
वहीं गोरखपुर लोकसभा सीट पर बतौर सांसद योगी आदित्यनाथ पिछले 19 सालों से काबिज हैं। 1998 में गोरखपुर सीट योगी आदित्यनाथ को उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ से विरासत में मिली थी। उसके बाद से योगी लगातार 5 बार यह सीट जीत चुके हैं। उनसे पूर्व उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ 4 बार गोरखपुर सीट से सांसद रह चुके थे। योगी आदित्यनाथ देश की राजनीति के इतिहास में सर्वाधिक बार किसी लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व करने वाले संत हैं। पिछले 3 दशकों से भाजपा गोरखपुर में काबिज है और गोरखपुर पूरी तरह से हिंदुत्व के रंग में रंगा हुआ है। बतौर सांसद योगी आदित्यनाथ ने क्षेत्र के विकास के लिए काफी काम भी किया है और उनकी संस्थाएं जनकल्याण की कई योजनाएं भी चलाती है। ऐसे में दशकों से भगवा रंग में रंगे गोरखपुर में किसी और दल से जीत की उम्मीद रखना भी बेमानी होगी।
बसपा के अगले कदम पर टिकी हैं सबकी नजरें
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के विधानपरिषद सदस्य बनने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया था कि आगामी 6 महीनों के भीतर उत्तर प्रदेश में लोकसभा उपचुनाव होंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले 5 बार से गोरखपुर से लोकसभा सांसद थे वहीं उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने 2014 के लोकसभा चुनावों में फूलपुर की अहम सीट जीती थी। फूलपुर की लोकसभा सीट पर दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े तबके का बड़ा जनाधार है और वर्तमान हालातों में बसपा मायावती एक मजबूत दावेदार बन सकती हैं। यह सीट बसपा के लिए काफी मायने रखती है और यहाँ से बसपा संस्थापक कांशीराम ने 1996 में चुनाव भी लड़ा था। हालाँकि उन्हें सपा के जंग बहादुर पटेल हाथों 16 हजार से अधिक मतों से शिकस्त खानी पड़ी थी।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने मेरठ की रैली में भीड़ जुटाकर सभी दलों को मजबूत सन्देश दे दिया कि बसपा अभी पूरी तरह चूकी नहीं है। बसपा सुप्रीमो मायावती पहले ही कह चुकी हैं कि वह भाजपा के खिलाफ किसी भी गठबंधन में तभी शामिल होंगी जब सीटों का बँटवारा हो जाए। इसी वजह से उन्होंने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की रैली से भी किनारा कर लिया था। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पहले ही कह चुके हैं कि भाजपा को रोकने के लिए बसपा के साथ गठबंधन करने से भी उन्हें कोई ऐतराज नहीं है। उत्तर प्रदेश में सपा और कांग्रेस का पहले से ही गठबंधन है। ऐसे में मुमकिन है कि सूबे की यह तीनों प्रमुख विपक्षी पार्टियां आगामी लोकसभा उपचुनावों में गठबंधन कर ले और भाजपा के खिलाफ एक होकर चुनाव लड़े। ऐसी स्थिति में भाजपा के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं।