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    AMIT SHAH

    भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पिछले कुछ महीनों से उत्तर प्रदेश में एक विशेष योजना पर काम कर रहे हैं जिसमे राज्य के सभी 80 सीटों पर आतंरिक सर्वे करना, मतदाताओं का फीडबैक लेना, जनता के मुख्य मुद्दों का पता लगाना और उसी हिसाब से नेताओं की तैनाती प्रमुख है। ये सब 2019 की तैयारियां हैं जिसमे मोदी को एक बार फिर दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही तय करना है।

    गुजरात के पूर्व गृहमंत्री और एक समय मोदी के विरोधी रह चुके गोर्धन ज़ादाफिया को उत्तर प्रदेश का प्रभारी नियुक्त कर भाजपा और संघ ने ये सन्देश देने की कोशिश की है कि पार्टी हित के लिए अपने इगो और आपसी दुश्मनी को परे रखकर उन सब को एकत्रित करेगी जो पार्टी के लिए काम करने की क्षमता रखते हैं।

    उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 2014 में 73 सीटें जीत कर पार्टी और एनडीए अपने सर्वोच्च शिखर पर पहुँच चुकी है। चूँकि राज्य में इस वक़्त ज्यादातर सांसद और ज्यादातर विधायक पार्टी के ही है तो भाजपा जानती है कि ज्यादा नुकसान उसे ही होगा। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के हाथ मिला लेने के बाद भाजपा को नुकसान का अंदेशा है इसलिए वो नुकसान को कम करने की कोशिश में है।

    संघ के साथ साथ विश्व हिन्दू परिषद् भी जमीनी स्तर पर सक्रीय हो गए हैं। स्थानीय सांसद के प्रदर्शन पर प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए भाजपा द्वारा जीती गई 71 सीटों में से प्रत्येक में RSS प्रभारियों को नियुक्त किया गया जो सांसदों पर फीडबैक प्राप्त कर रहे हैं। ये फीडबैक इन सीटों पर टिकट पाने वालों के चुनाव में में अहम भूमिका निभाएगा।

    आरएसएस के संयुक्त महासचिव कृष्ण गोपाल यूपी के घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए हैं और उनका यह शब्द आगामी चुनावों में कई लोगों के भाग्य का निर्धारण करेगा। आरएसएस भी बीजेपी को सलाह देता रहा है कि कौन-कौन से मुद्दे प्रासंगिक हैं और कहां पार्टी में कमी पाई गई है।

    हालांकि मोदी अभी भी यूपी में बहुत लोकप्रिय हैं, लेकिन फिर भी वे कोई मौका नहीं ले रहे हैं।  क्योंकि उनके निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी को संभालने वाले भाजपा नेताओं की संख्या से देखा जा सकता है कि इस बार उत्तर प्रदेश किस कदर उनके लिए महत्वपूर्ण है। गुजरात के नवसारी से बीजेपी सांसद सी आर पाटिल ने परियोजनाओं की देखरेख के लिए अपने अधिकांश सप्ताहांत जिले में बिताए है।

    केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा, जो पड़ोसी गाजीपुर का प्रतिनिधित्व करते हैं, भी वाराणसी में उसी तरफ सक्रीय हैं जिस तरह भाजपा के राज्य इकाई प्रमुख और चंदौली के सांसद महेंद्र नाथ पांडे सक्रीय हैं। जदाफिया ने 2014 के चुनावों के दौरान और बाद में राज्य में किसानों और पिछड़ी जातियों के बीच वाराणसी में काम किया था। यूपी के लिए नए चुनाव सह-प्रभारी, दुष्यंत गौतम और नरोत्तम मिश्रा को भी विशिष्ट उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए चुना गया है। जबकि गौतम दलित मतदाताओं को लुभायेंगे, मिश्रा की सेवाओं का उपयोग बुंदेलखंड क्षेत्र में किया जाएगा जहाँ उच्च जातियाँ बड़ी संख्या में हैं।

    पार्टी को अहसास है कि 2014 में लोग यूपीए सरकार से नाराज थे और मोदी के लिए एक लहर थी इसलिए भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश आसान था लेकिन इस बार मोदी के खिलाफ जनता में 5 सालों की नाराजगी होगी और सपा -बसपा गठबंधन का सोशल इंजीनियरिंग भी जिससे पार्टी को पार पाना है।

    By आदर्श कुमार

    आदर्श कुमार ने इंजीनियरिंग की पढाई की है। राजनीति में रूचि होने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने कई वेबसाइट पर स्वतंत्र लेखक के रूप में काम किया है। द इन्डियन वायर पर वो राजनीति से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं।

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