Sat. Nov 23rd, 2024
    लालू की रैली

    देश के सियासी पटल पर पिछले कई दिनों से आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव द्वारा पटना के गाँधी मैदान में आयोजित रैली छाई हुई थी। रोज-रोज इस रैली को लेकर नई- नई बातें सामने आ रही थी। रैली शुरू होने से पहले आखिरी क्षणों तक इस बात को लेकर संशय बरकरार था कि कौन-कौन से नेता इसमें शामिल हो रहे हैं। इस रैली को विपक्ष के 18 छोटे-बड़े दलों का समर्थन हासिल हुआ और तकरीबन 3 लाख की भीड़ पटना के ऐतिहासिक गाँधी मैदान पर एकत्रित हुई थी। इस लिहाज से भाजपा के खिलाफ आरजेडी की यह रैली सफल रही और इसे विपक्षी दलों के अलावा जनता का भी पूरा समर्थन मिला। लेकिन मंच पर कई प्रमुख विपक्षी नेताओं की गैरमौजूदगी से इस बात पर फिर से संशय उत्पन्न हो गया कि क्या सभी मंचासीन नेता 2019 में भाजपा के खिलाफ महागठबंधन में साथ खड़े होंगे?

    नदारद दिखे सोनिया-राहुल

    कांग्रेस बिहार में आरजेडी की सहयोगी की भूमिका में है और वह बिहार के बहुचर्चित महागठबंधन का भी हिस्सा थी। इस महागठबंधन ने नीतीश कुमार के नेतृत्व में भाजपा के विजय रथ को थाम लिया था और बिहार में सरकार बनाई थी। लेकिन बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन से किनारा कर भाजपा के साथ गठबंधन कर सरकार बना ली। अलगाव के बाद राहुल और आरजेडी ने लगातार नीतीश कुमार पर हमले बोले थे। लेकिन पिछले कुछ दिनों से बिहार कांग्रेस में भी फुट देखने को मिल रही थी। नीतीश के खिलाफ जाकर लालू का साथ देने से कांग्रेस के 7 विधायक नाराज बताए जा रहे थे। उनके जेडीयू में शामिल होने की सम्भावना जताई जा रही थी लेकिन अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ।

    सोनिया और राहुल
    नदारद दिखे सोनिया और राहुल

    लालू की रैली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी और उपाध्यक्ष राहुल गाँधी में से कोई भी शामिल नहीं हुआ। राहुल गाँधी के आर्डिनेंस फाड़ने की वजह से ही लालू यादव जेल गए थे और आज तक चुनावों से दूर हैं। इस घटना के बाद आज तक दोनों ने कभी मंच साझा नहीं किया है। हालाँकि राजनीति में कोई स्थायी मित्र या शत्रु नहीं होता पर लालू यादव के मन में कहीं ना कहीं इस बात की कसक जरूर होगी। हालाँकि राहुल गाँधी ने लिखित रूप से इस रैली के समर्थन की बात कही थी पर उनकी मौजूदगी कुछ अलग प्रभाव रखती। रैली में सोनिया गाँधी का रिकार्डेड भाषण सुनाया गया लेकिन मंच को गाँधी परिवार के किसी एक सदस्य की कमी खल रही थी। कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, बिहार कांग्रेस प्रभारी सीपी जोशी और हनुमंत राव ने हिस्सा लिया।

    मायावती और बसपा ने बनाई दूरी

    कभी दलित राजनीति की अगुआ रही मायावती और बसपा इस समय हाशिए पर चल रहे हैं। इसके बावजूद मायावती किसी तरह का कोई भी समझौता करने को तैयार नहीं हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में लचर प्रदर्शन के बाद बसपा का जनाधार हिला हुआ था और रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी ने इस जनाधार को ढहाने के लिए तूफ़ान का काम कर दिया। भाजपा के इस दलित कार्ड का सबसे ज्यादा नुकसान मायावती और बसपा को ही हुआ। मायावती ने दलित पर हो रहे अत्याचारों के नाम पर राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफ़ा दे दिया लेकिन उनका ये दांव भी दलितों का भरोसा जीतने के लिए नाकाफी रहा। अब मायावती पार्टी संगठन पर ध्यान दे रही हैं और पुनः पार्टी का जनाधार तलाशने का प्रयास कर रही हैं।

    लालू यादव और मायावती
    मायावती का लालू को झटका

    मायावती के राज्यसभा से इस्तीफ़ा देने के बाद आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने सबसे पहले उनका समर्थन किया था और उन्हें अपनी पार्टी के कोटे से राज्यसभा भेजने की पेशकश की थी। मायावती का लालू यादव से किसी तरह का कोई मतभेद नहीं हैं। वह भाजपा के खिलाफ हैं लेकिन वह भाजपा विरोधी गठबंधन में तभी शामिल होंगी जब खुलकर सीटों का बँटवारा कर दिया जाए। भले ही बसपा आज हाशिए पर जा चुकी हो पर मायावती आज भी देश में दलित राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा है। उनकी पार्टी का जनधार घटा जरूर है पर वह पूर्णतया समाप्त नहीं हुआ। विपक्ष के पास दलित नेता के रूप में सबसे बड़ा चेहरा मायावती का ही था और बसपा सुप्रीमो मायावती का इस तरह से रैली में आने से इंकार करना भाजपा के खिलाफ विपक्ष की लामबंदी को और कमजोर कर गया।

    अखिलेश आये पर मुलायम नदारद

    सपा इस समय आंतरिक कलह के दौर से गुजर रही है और हाल के कुछ समय में पार्टी हर अहम मुद्दों पर दो धड़ों में विभाजित नजर आई है। एक धड़े का नेतृत्व सपा के संस्थापक मुलायम सिंह यादव कर रहे हैं वहीं दूसरे धड़े का नेतृत्व पार्टी में “टीपू सुल्तान” कहे जाने वाले मुलायम सिंह यादव के सुपुत्र अखिलेश यादव संभाल रहे हैं। मुलायम सिंह यादव के साथ भाई शिवपाल सिंह यादव खड़े हैं और उनके हर फैसले का उन्होंने समर्थन किया है। वहीं अखिलेश यादव के साथ उनके चाचा रामगोपाल यादव खड़े हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से लेकर रामनाथ कोविंद की उम्मीदवारी तक, हर जगह सपा का आतंरिक टकराव खुलकर सतह पर आ गया। लालू यादव की रैली में भी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव उपस्थित थे पर “नेताजी” की अनुपस्थिति से मंच अधूरा सा लग रहा था।

    अखिलेश यादव
    अखिलेश यादव

    ममता के आने से नदारद रहे येचुरी

    तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी रैली में शामिल हुई। उन्होंने काफी लम्बा-चौड़ा भाषण भी दिया। उनकी उपस्थिति से आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव काफी प्रसन्न नजर आये। हालाँकि ममता बनर्जी की उपस्थिति की वजह से सीपीएम ने इस रैली में हिस्सा नहीं लिया। सीपीएम ने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि वह भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी ममता बनर्जी के साथ मंच साझा नहीं करेगी। वह भाजपा के खिलाफ है और लालू यादव की रैली का समर्थन करती है। तृणमूल और सीपीएम के बीच की प्रतिद्वंदिता जगजाहिर है और सीताराम येचुरी इसी वजह से रैली में शामिल नहीं हुए। उनकी उपस्थिति विपक्ष को और मजबूती देती। हालाँकि लालू प्रसाद यादव के लिए यह रहत भरी बात रही कि सीपीआई नेता डी राजा इस रैली में शामिल हुए।

    ममता बनर्जी
    ममता बनर्जी

    एनसीपी के शीर्ष नेताओं ने बनाई दूरी

    लालू प्रसाद यादव ने रैली में सभी गैर-एनडीए दलों के नेताओं को आमंत्रित किया था। एनसीपी के चार बड़े चेहरों शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल, सुप्रिया सुले और अजित पवार ने इस रैली से दूरी बनाकर रखी। एनसीपी ने आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव द्वारा आयोजित इस रैली के समर्थन की बात कही थी। हालाँकि एनसीपी प्रतिनिधि के तौर पर तारिक अनवर इस रैली में शामिल हुए लेकिन उनकी उपस्थिति कुछ खास असरदार नहीं रही। तारिक अनवर एनसीपी में वही मुकाम रखते हैं जो शरद यादव जेडीयू में रखते हैं। तारिक अनवर बिहार से ही राज्यसभा सांसद हैं और पार्टी के मुस्लिम चेहरे हैं। लेकिन इसे एनसीपी के महागठबंधन में बने रहने की गारंटी नहीं माना जा सकता। एनसीपी और कांग्रेस में आजकल सबकुछ ठीक नहीं चल रहा और ऐसे में एनसीपी के साथ को लेकर कुछ कहना जल्दबाजी होगी।

    अपनी भूमिका तलाश रहे हैं शरद यादव

    जेडीयू महासचिव केसी त्यागी द्वारा बतौर चेतावनी मिली चिट्ठी के बावजूद शरद यादव ने रैली में हिस्सा लिया। नीतीश कुमार के खिलाफ बगावती रुख अपनाने के बाद आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने हर मोर्चे पर शरद यादव का साथ दिया था। उन्होंने खुले तौर पर कह दिया था कि उनका शरद यादव के नेतृत्व वाली जेडीयू से गठबंधन जारी रहेगा। ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि शरद यादव इस रैली में शामिल होंगे। शरद यादव इससे पूर्व भी कई बार जेडीयू की चेतावनियों को दरकिनार कर चुके हैं। उन्हें अंदाजा हो चुका है कि जेडीयू से उनका पत्ता कट चुका है। ऐसे में वह अपने लिए नई भूमिका की तलाश कर रहे हैं और उनकी रैली में उपस्थिति भी इसी बात का संकेत कर रही है।

    शरद यादव और लालू यादव गठबंधन
    शरद यादव और लालू यादव

    नीतीश पर निशाना साधते रहे लालू

    यूँ तो आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने यह रैली भाजपा के खिलाफ बुलाई थी पर अपने सम्बोधन के दौरान पूरे समय वह नीतीश कुमार पर ही बरसते रहे। उनकी बातों में सत्ता से बिछड़ने का दर्द साफ़ झलक रहा था। उन्होंने कहा कि नीतीश कुमार पर उन्हें शुरू से भरोसा नहीं था पर साम्प्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए उन्होंने नीतीश कुमार से हाथ मिलाया था। उन्होंने नीतीश कुमार पर आरोप लगाया कि तेजस्वी यादव की बढ़ती लोकप्रियता से नीतीश परेशान हो गए थे और इसीलिए उन्होंने भ्रष्टाचार का झूठा आरोप लगवाकर भाजप का हाथ थामा। उन्होंने सीबीआई छापों के लिए भी नीतीश कुमार को ही दोषी ठहराया।

    लालू प्रसाद यादव
    आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव

    शरद यादव की दिल्ली में बुलाई गई “सांझी विरासत सम्मलेन” भी बिना किसी निष्कर्ष के आरएसएस और भाजपा पर बयानबाजी कर ख़त्म हो गई थी। विपक्षी एकता के राष्ट्रीय मंच से आयोजक द्वारा इस तरह क्षेत्र आधारित बयानबाजी राष्ट्रीय राजनीति की दिशा तय नहीं कर सकती। राहुल गाँधी, शरद यादव, लालू यादव समेत सभी विपक्षी दलों के नेता जितनी जल्दी इस बात को समझ लें उनके लिए आगे की राह उतनी ही आसान होगी।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।