म्यांमार के रखाइन प्रांत से बेदखल किये जाने के बाद तितर बितर हुए रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय की बांग्लादेश तैनात भारतीय उच्चायुक्त ने सुध ली है।
बांग्लादेश में नियुक्त भारतीय उच्चायुक्त हर्ष वर्धन श्रृंगला ने कहा कि रोहिंग्या समुदाय की म्यांमार वापसी पर रखाइन प्रांत सुरक्षित और रहने योग्य होना चाहिए।
पहली बार बांग्लादेश शरणार्थी कैंप में पहुंचे भारतीय उच्चायुक्त ने कहा कि रोहिंग्या समुदाय की मुसीबतों से निपटने के लिए भारत ‘थ्री एस’ पर कार्य कर रहा है।
बांग्लादेश ने अभी 10 लाख रोहिंग्याओं को शरणार्थी कैम्पों में शरण दे रखी है। उच्चायुक्त ने रोहिंग्याओं की राहत सामग्री बांग्लादेश के मंत्री एम. हुसैन चौधरी को सौंपी।
इस सामग्री में 11 लाख लीटर केरोसिन तेल और 20 हज़ार केरोसिन चलित स्टोव थे। बंगलादेशी मंत्री ने भारत का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि नई दिल्ली के राहत कोष के कारण पांच माह तक 20 हज़ार घरों में चूल्हें जले।
उन्होंने कहा कि ईंधन का बंदोबस्त करना बहुत मुश्किल है लिहाजा उन्होंने भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई और उन्हें ख़ुशी है, भारत ने सकारात्मक रुख दिखाया।
अगस्त 2017 में म्यांमार आर्मी का रोहिंग्या समुदाय पर अत्याचार के बाद उन्होंने भागकर पड़ोसी देश बांग्लादेश में पनाह ली थी।
म्यांमार सरकार के मुताबिक उनका मकसद अराखन रोहिंग्या आर्मी से निपटना था ना कि आम नागरिकों को क्षति पहुँचाना।
सितम्बर 2017 में भारत की ‘ऑपरेशन इंसानियत’ की तहत की गई पहले स्तर की मदद में 981 टन राहत सामग्री ढाका पहुंचाई गई। वही मई 2018 में दूसरे स्तर की सहायता के दौरान 373 टन रहत सामग्री चटगांव में सौंपी।
हाल ही में बांग्लादेश और म्यांमार के बीच रोहिंग्याओं शरणार्थियों की घर वापसी को लेकर समझौता हुआ था जिसमें कुछ ही रोहिंग्या म्यांमार वापस लौटे। रोहिंग्या समुदाय के नेता ने बिना सुरक्षा के आश्वासन के रखाइन लौटने के लिए नकार दिया।
रखाइन प्रांत में सेना की दमनकारी नीति को न रोक पाने के कारण नोबेल पुरूस्कार नेता अंग सान सु की को समस्त विश्व की आलोचना झेलनी पड़ी।
बौद्ध बहुसंख्यक देश म्यांमार रोहिंग्या समुदाय को नागरिकता देने के लिए नकारता रहा है। म्यांमार मुस्लिम अल्पसंख्यकों को अपने देश का नागरिक मानने से इनकार करता है।