संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार परिषद् की अध्यक्ष मिशेल बचेलेट ने कहा कि “म्यांमार विभागों द्वारा अब भी रोहिंग्या समुदाय के मानव अधिकार और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया जा रहा है और नागरिकता मसले से सम्बंधित कोई भी कार्रवाई शुरू नहीं की गयी है।”
उन्होंने कहा कि “व्यवस्थित भेदभाव और आवाजाही की आज़ादी पर व्यापक प्रतिबंधों के कारण रोहिंग्या समुदाय के सदस्यों के मानव अधिकार और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन अभी भी जारी है।” यूएनएचआरसी की अध्यक्ष बुधवार को नौ देशों पर अपनी रिपोर्ट जिनेवा में स्थित यूएन मुख्यालय में पेश कर रही थी। इसमें म्यांमार में मानव अधिकारों की असल हकीकत भी शामिल थी।
उन्होंने कहा कि “हमारी रिपोर्ट के मुताबिक रोहिंग्या समुदाय की नागरिकता के मसले पर म्यांमार ने पर्याप्त कदम नहीं उठाये हैं। किसी भी स्तर की चर्चा में रोहिंग्या समुदाय का कोई प्रतिनिधित्व मौजूद नहीं है। मानव अधिकार उल्लंघन के आरोपों की जांच अभी भी नहीं हो रही है। रोहिंग्या समुदाय के नागरिकों की वापसी सतत, स्वैच्छिक और सुरक्षित होनी चाहिए।”
600000 रोहिंग्या मुस्लिम बिना नागरिकता के रखाइन में रह रहे हैं जबकि हज़ारों मुस्लिमों को हिंसा के सहारे जबरन देश छोड़ने पर मज़बूर किया गया है।
साल 2017 में म्यांमार की सेना द्वारा रक्तपात नरसंहार के कारण लाखों रोहिंग्या शरणार्थियों को दूसरे देशों में पनाह लेनी पड़ी थी। साल 1948 में ब्रिटेन की हुकूमत से म्यांमार की आज़ादी का ऐलान किया गया था, लेकिन देश इसके बाद से ही संजातीय विवादों की स्थिति से जूझ रहा है।
यूएन जांचकर्ताओं ने म्यांमार में नरसंहार के लिए कट्टर राष्ट्रवादी बौद्ध संत और सेना को जिम्मेदार ठहराया था। नेता अंग सान सु की की सरकार ने सेना के साथ सत्ता साझा करने के समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं। रोहिंग्या मुस्लिमों पर अत्याचार के खिलाफ चुप्पी साधने के कारण उनकी काफी आलोचनायें हुई थी।