संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) की आपात बैठक (Emergency Session) में रूस द्वारा यूक्रेन के ऊपर अटैक (Russia-Ukraine War) को लेकर रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पारित किया गया और यह मांग की गई कि मॉस्को को लड़ाई का रास्ता छोड़कर अपने सभी सैन्य बलों को वापस बुला लेना चाहिए।
इस प्रस्ताव पर हुई वोटिंग में 193 सदस्यों वाली महासभा में 141 देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग की जबकि रूस, बेलारूस और सीरिया समेत 5 देशों ने रूस का साथ देते हुए इस प्रस्ताव के विपक्ष में वोट किया; वहीं भारत और चीन सहित कुल 35 देश इस वोटिंग प्रक्रिया से अनुपस्थित रहे।
Resolution ES-11/1 adopted. pic.twitter.com/P9HcvxfvMf
— UN GA President (@UN_PGA) March 2, 2022
कितना महत्वपूर्ण है यह प्रस्ताव
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) द्वारा पारित इस प्रस्ताव का रूस या किसी भी पक्ष पर बाध्यता नहीं (Non-Binding) है’ परंतु यह प्रस्ताव राजनीतिक और कूटनीतिक नजरिये से अतिमहत्वपूर्ण है।
रूस के पक्ष में महज 5 वोट का पड़ना जबकि रूस के विपक्ष में 141 वोट होना महज एक “नंबर गेम ” नहीं है। रूस के विपक्ष में इतना ज्यादा वोट पड़ने का मतलब यह है कि इस समय विश्व राजनीति में रूस “अलग-थलग” पड़ गया है।
पिछले एक हफ्ते में दुनिया भर के देश खासकर यूरोपीय या पश्चिमी देशों ने रूस पर तमाम तरह के आर्थिक और राजनैतिक प्रतिबन्ध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों में सबसे महत्वपूर्ण है- रूस को “स्विफ्ट (SWIFT)” सिस्टम से अलग कर दिया जाना जिससे उसके बैंकों का अंतराष्ट्रीय लेन-देन पर ब्रेक लगाया जा सके।
साथ ही कईदेशों ने रूस के हवाई सेवा पर भी प्रतिबंध लगा दिया है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन और विदेश मंत्री सर्गेई लोवरोव (Sergei Lovrov) के विभिन्न देशों में स्थित संपत्ति को भी फ्रीज़ कर दिया गया है।
इसके साथ ही रूस पर अन्य कई प्रकार के और भी प्रतिबंध लगाए गए हैं जिनका एकमात्र मक़सद रूस के आर्थिक हालात को चोट पहुंचाना है जिस से दवाब बनाया जा सके और रूस यूक्रेन से अपनी सेना वापिस बुला ले। साथ ही तमाम प्रतिबंध रूस को वैश्विक कूटनीति और राजनीतिक मंचो से अलग थलग (Isolate) करने की भी कोशिश है।
भारत और चीन समेत 35 राष्ट्र रहे वोटिंग के दौरान अनुपस्थित
भारत और चीन जैसे देशों का वोटिंग प्रक्रिया से दूर रहने को देखने के दो नजरिया हो सकता है। एक इसे रूस के लिए इन देशों का मूक समर्थन समझा जाये चाहे इसके पीछे की वजह कुछ भी हो। उदाहरण के लिए भारत की बात करें तो भारत और रूस एक ऐतिहासिक द्विपक्षीय सम्बन्ध साझा करते हैं।
दूसरा इन देशों के अपने सामरिक हितों की रक्षा के लिए तटस्थता ही उचित है। इसे भी भारत का उदाहरण लेकर समझा जा सकता है। भारत का रूस पर अपने रक्षा उपकरणों के लिए निर्भरता, या यूक्रेन में फंसे भारतीयों को बाहर निकालने में रूस का सहयोग, या फिर अपने पड़ोसियों जैसे चीन और पाकिस्तान के साथ विवादित मुद्दों पर जैसे का समर्थन इत्यादि – ये कुछ ऐसे सामरिक और कूटनीतिक वजहें हैं जिसके कारण रूस को इन देशों का प्रत्यक्ष समर्थन नहीं मिल रहा है तो प्रत्यक्ष विरोध भी नहीं हो रहा है।
इस से पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की बैठक में भी भारत और चीन ने रूस के खिलाफ प्रस्ताव पर वोटिंग से दूरी बना ली थी जिसके लिए रूस ने स्वागत करते हुए इन देशों का धन्यवाद कहा था।
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) की आपात सत्र (Emergency Session)
संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन 1945 में हुआ है और तब से लेकर आज तक संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) का महज़ 10 आपात सत्र (Emergency Session) बुलाये गए हैं। आखिरी बार आपात सत्र 1997 में गाजा पट्टी के मुद्दे पर बुलाया गया था जिसके बाद अब जाकर रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) के मुद्दे पर आपात सत्र बुलाया गया है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UN Security Council) की बैठक में अपने 5 स्थायी सदस्यों में से किसी एक सदस्य के द्वारा वीटो कर दिए जाने के कारण किसी आपात मुद्दे (विशेषकर अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा से जुड़े मुद्दे) पर कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाने की स्थिति में संयुक्त राष्ट्र महासभा की आपात बैठक बुलाया जाता है।
रूस यूक्रेन विवाद पर भी बीते दिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस द्वारा वीटो (Veto) किये जाने के बाद संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) का आपात सत्र ((Emergency Session) बुलाया गया।