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    राहुल गाँधी

    आजकल देशभर में गुजरात विधानसभा चुनावों की चर्चा हो रही है। पिछले 2 दशकों से गुजरात की सत्ता पर काबिज भाजपा आज गुजरात में अपना गढ़ बचाने की जद्दोहद में जुटी हुई है। 90 के दशक से ही भाजपा का परंपरागत वोटबैंक रहा पाटीदार समाज अब उससे किनारा कर चुका है। गुजरात की सत्ता तक पहुँचने के लिए किसी भी दल को पाटीदारों का समर्थन मिलना बहुत जरुरी है। गुजरात की 20 फीसदी आबादी पाटीदारों की है और पाटीदार समाज संगठित होकर वोट करता है। ऐसे में पाटीदार समाज के वोटरों का किसी एक दल को समर्थन देना गुजरात विधानसभा चुनाव के परिणामों को बदल कर रख देगा। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी गुजरात में कांग्रेस को मजबूती देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं और लगातार राज्य का दौरा कर रहे हैं।

    राहुल गाँधी गुजरात में कांग्रेस का दो दशकों का सियासी वनवास खत्म करने की जुगत में लगे हैं। गुजरात में भाजपा के अगुआ रहे नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बन चुके हैं और गुजरात में उनके कद-काठी का कोई भी व्यक्तित्व अब भाजपा के पास नहीं है। ऐसे में भाजपा के लिए गुजरात बचाना मुश्किल नजर आ रहा है। भाजपा आरक्षण की मांग कर रहे पाटीदारों को मनाने में जुटी है पर पिछले 26 महीनों में उसे कोई खास कामयाबी नहीं मिल सकी है। गुजरात में पाटीदार समाज आर्थिक और राजनीतिक रूप से काफी प्रभावशाली माना जाता है। राज्य में करीब 20 फीसदी वोट पाटीदार समाज के पास हैं। इस वजह से पाटीदारों को गुजरात का “किंग मेकर” भी कहा जाता है। पाटीदार समाज का रुख गुजरात में सभी सियासी समीकरणों को गलत साबित कर सकता है।

    10 फीसदी से भी कम हो चुका है मतों का अंतर

    2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा और कांग्रेस के मतों का अंतर 9 फीसदी था। भाजपा को 47 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को 38 फीसदी मत मिले थे। 2012 के विधानसभा चुनावों में कड़वा बिरादरी के 82 फीसदी वोट भाजपा को मिले थे। लेउवा बिरादरी के 63 फीसदी वोटरों ने भाजपा को चुना था। 80 के दशक से ही पाटीदार समाज के 80 फीसदी वोटर भाजपा के पक्ष में मतदान करते आए हैं। इसी वजह से पाटीदार समाज को भाजपा का पारम्परिक वोटबैंक कहा जाता रहा है। पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा को 50 फीसदी मत मिले थे वहीं कांग्रेस को तकरीबन 40 फीसदी मत मिले थे। पाटीदार समाज के वोटरों के मत प्रतिशत 20 है। इस लिहाजन अगर 80 फीसदी पाटीदार कांग्रेस के साथ हो जाए और मुस्लिम दलित एक होकर कांग्रेस का साथ दे दें तो भाजपा के लिए गुजरात बचाना बहुत मुश्किल हो जाएगा।

    मोदी-शाह के बिना नेतृत्वविहीन है गुजरात भाजपा

    भाजपा के गुजरात में लगातार सत्ता पर काबिज रहने की सबसे बड़ी वजह है नरेंद्र मोदी। बतौर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल के दौरान गुजरात भाजपा लोकप्रियता के सातवें आसमान पर पहुँच गई थी पर आज परिस्थितियां बिल्कुल बदल चुकी है। एक वक्त था जब अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी गुजरात विधानसभा चुनावों में भाजपा के जीत की कहानी लिखती थी पर आज इसी जोड़ी को गुजरात बचाने के लिए लगातार राज्य का दौरा कर रही है। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद गुजरात में भाजपा की पकड़ ढ़ीली होने लगी। बतौर मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल और विजय रुपाणी अपने कार्यकाल में लोकप्रिय नहीं रहे है।

    गुजरात कांग्रेस की स्थिति भी इससे जुदा नहीं है और वह भी एक सशक्त चेहरे की तलाश में है। शंकर सिंह वाघेला की बगावत के बाद कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ गई हैं। कांग्रेस ने फिलहाल बतौर मुख्यमंत्री किसी को प्रोजेक्ट नहीं किया है और उम्मीद है कि वह आगे भी मुख्यमंत्री के चेहरे के बिना ही चुनाव लड़ेगी। मुमकिन है कांग्रेस को 2004 के लोकसभा चुनावों की तरह गुजरात में भी जीत हाथ लगे और कांग्रेस आलाकमान गुजरात में अपनी पसंद का मुख्यमंत्री बनाए।

    भाजपा से कट रहे हैं दलित-आदिवासी

    कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी गुजरात में सभी सियासी समीकरणों को भी साध रहे हैं। उना में कथित गौरक्षकों द्वारा हुई दलितों की पिटाई के बाद कांग्रेस इस मामले को जातीय समीकरण संतुलित करने के लिए इस्तेमाल कर रही है। इस घटना के बाद से दलितों में रोष है और वह भाजपा के खिलाफ जा सकते हैं। मुस्लिमों को कांग्रेस का कोर वोटबैंक माना जाता है और ऐसे में कांग्रेस को मुस्लिमों का समर्थन मिलना तय है। कांग्रेस मध्य गुजरात के आदिवासियों को भी अपने साथ मिलाने के लिए प्रयासरत है। नर्मदा विस्थापितों के पुनर्वासन के लिए भाजपा सरकार अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है।

    कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी समाज के इन सभी असंतुष्ट वर्गों को सम्मिलित करके भाजपा के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं। मुमकिन है वह गुजरात में कांग्रेस का सियासी वनवास खत्म करने में सफल हो जाए।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।