Sun. Nov 17th, 2024
    राम जन्मभूमि विवाद

    आज से सुप्रीम कोर्ट में अयोध्या के विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले पर सुनवाई शुरू हुई। इस मामले पर सुनवाई करने के लिए तीन सदस्यीय पीठ का गठन किया गया है। आज हुई सुनवाई के बाद न्याय के सबसे बड़े मंदिर सुप्रीम कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए 5 दिसंबर की तारीख मुकर्रर की है। पहले इस विवाद के जल्द निपटारे के लिए रोज सुनवाई करने का फैसला लिया गया था पर आज सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के वकील और वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल ने इसपर ऐतराज जताते हुए कहा कि यह प्रक्रिया उचित नहीं है। इस मामले के काफी दस्तावेज विभिन्न भाषाओं में है अतः पहले उनका अनुवाद किया जाना चाहिए। उनकी इस दलील को आधार बनाकर तीन सदस्यीय पीठ ने अनुवाद के लिए 12 हफ्ते का समय देते हुए अगली सुनवाई 5 दिसंबर तक के लिए टाल दी।

    राम जन्मभूमि

     

    दरअसल यह विवाद अब केवल धार्मिक मान्यताओं से ना जुड़कर राजनीतिक प्रतिष्ठा से भी जुड़ गया है। केंद्र में हिंदुत्व का तगमा धारण करने वाली और हिन्दुओं की हितैषी कही जाने वाली भाजपा सत्ता में हैं वहीं उत्तर प्रदेश में भी लम्बे अरसे बाद भाजपा की पूर्ण बहुमत से सत्ता वापसी हुई है। केंद्र में नरेंद्र मोदी सत्ताधीश हैं वहीं उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के हाथों में सत्ता की बागडोर है। अगर भाजपा पार्टी और इन दोनों नेताओं के अतीत और जनमानस में व्याप्त इनकी छवि का स्मरण करें तो आँखों के सामने अयोध्या के राम मंदिर में विराजे साक्षात राम के दर्शन होते हैं। राम मंदिर निर्माण का मुद्दा पिछले 25 सालों से देश की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है और सभी दलों ने इसका अपने सुविधानुसार इसका फायदा उठाया है। इसी विवाद ने भाजपा और शिवसेना की छवि ‘मुस्लिम विरोधी’ दल की बना दी वहीं कांग्रेस और सपा ‘मुस्लिम हितैषी’ पार्टियां बन बैठी।

    हालांकि पिछले कुछ वक़्त से राजनीति में यह दांव कमजोर पड़ने लगा था और जनता विकास और जन हितैषी योजनाओं की तरफ ज्यादा आकर्षित होने लगी थी। इससे देश में भाजपा की छवि सुधरी और 2014 के आम चुनावों में पार्टी भारी बहुमत के साथ सत्ता में आई। सत्ता में आते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जाति-धर्म से ऊपर उठकर विकास की राजनीति का रास्ता अपनाया और यह काफी कारगर भी साबित हुआ। हालिया विधानसभा चुनावों में डेढ़ दशक बाद उत्तर प्रदेश में भाजपा की सत्ता वापसी हुई और योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री पद संभाला। योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के गोरक्षपीठ के महंत हैं और उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ राम मंदिर निर्माण के पक्षधर थे। अपने पुराने भाषणों में भी योगी ने मंदिर निर्माण की बात कही थी। ऐसे में मंदिर निर्माण का मुद्दा पुनः उठना लाज़िमी था।

    योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर राम मंदिर निर्माण के समर्थन में लगी होल्डिंग्स नजर आईं। राजधानी लखनऊ और फैजाबाद में तो कई मुस्लिम नेताओं और धर्मगुरुओं ने विवादित जमीन पर राम मंदिर निर्माण के समर्थन में बैनर और होल्डिंग्स लगाए। हालांकि इसे भी विपक्षी दलों ने भाजपा की चाल बताया और कहा कि ये सभी लोग संघी हैं। अयोध्या के मुसलमान जो मुस्लिम समुदाय की तरफ से इस मामले में वादी हैं वह भी राम जन्मभूमि की विवादित जगह पर राम मंदिर निर्माण की बात कहते हैं। उनका मानना है कि इस विवाद का निपटारा अदालत के बाहर हो जाना चाहिए। वह ये भी कहते हैं कि कुछ राजनीतिक दल अपने फायदे के लिए इस विवाद का निपटारा करना नहीं चाहते।

    अयोध्या में राम मंदिर
    अयोध्या में राम मंदिर

     

    विवादित जमीन के पास में ही मुस्लिम बाहुल्य बस्ती है। वहाँ के बुजुर्ग बताते है कि विवाद देखते-देखते कई पीढ़ियां गुजर गईं। अब आने वाली पीढ़ी के लिए हम कोई भी विवाद नहीं छोड़ना चाहते। अब तो इसका निपटारा हो ही जाना चाहिए। राम हिन्दुओं के पूज्य हैं और हिन्दू धर्म में वह भगवान के अवतार माने जाते हैं। सभी धार्मिक साक्ष्य इस बात की पुष्टि भी करते हैं कि राम यहीं जन्मे थे और उनकी राजधानी अयोध्या थी। जब राम यहीं जन्मे थे तो उनका मंदिर भी यहीं बनना चाहिए। जो जमीन मस्जिद की है उसे खाली छोड़ दिया जाए और मस्जिद का निर्माण कहीं और कराया जाना चाहिए।

    हाल ही में शिया वक़्फ़ बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और कहा था कि अयोध्या में विवादित जमीन पर राम मंदिर का ही निर्माण कराया जाए। मस्जिद के निर्माण के लिए पास की मुस्लिम बाहुल्य बस्ती में सरकार जमीन उपलब्ध कराए। बता दें कि शिया वक़्फ़ बोर्ड के पास 1946 तक इस जमीन का मालिकाना हक था जिसे ब्रिटिश सरकार ने छीनकर सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड को ट्रांसफर कर दिया था। इस मामले में शिया वक़्फ़ बोर्ड भी पक्षकार था पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में विस्तृत बहस के दौरान कोई उपस्थित नहीं हुआ। बाबरी मस्जिद को बनाने वाला मीर बक़ी भी शिया था और शिया वक़्फ़ बोर्ड ने इसे भी अपनी याचिका में आधार बनाया है।

    अब मुमकिन है कि विपक्षी पार्टियां शिया वक़्फ़ बोर्ड को भी भाजपा का खिदमतगार बता दें या कह दें कि शिया सच्चे मुसलमान नहीं है। हो सकता है आने वाले वक़्त में शिया वक़्फ़ बोर्ड का आरएसएस से कोई नया रिश्ता निकल आए। लोग चाहे जो भी तर्क दें पर एक बात साफ़ है कि देश के मुसलमान इस विवाद और अपनी जाति-धर्म के ऊपर हो रही राजनीति से ऊब चुके हैं और वह जल्द से जल्द इस मुद्दे का स्थायी, शांतिपूर्ण और न्यायपूर्ण निपटारा चाहते हैं।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।