सरकार के सुप्रीम कोर्ट से अधिग्रहित गैर-विवादित 67 एकड़ जमीन से यथास्थिति हटाते हुए उसके मालिकों को लौटाने की इजाजत मांगने पर विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी) और निर्मोही अखाड़ा के बीच ऐतिहासिक विदर छिड़ गया है।
वीएचपी ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने आखिरकार उनकी दलील सुन ली जो पिछले दो दशक से बाकी के पीएम अनसुना कर रहे थे-दलील कि गैर-विवादित ज़मीन को उनके मालिक राम जन्मभूमि न्यास के पास लौटा दी जाये ताकी मंदिर का निर्माण-कार्य शुरू किया जा सकें। मगर निर्मोही अखाड़ा जो इस मामले में अभियोगी हैं, उन्होंने केंद्र के कदम को नकारते हुए कहा कि इससे सांप्रदायिक वैमनस्य हो सकता है।
निर्मोही अखाड़ा के महंत दिनेंद्र दास ने इकॉनोमिक टाइम्स को बताया-“मामले के ऊपर एक बार फिर राजनीती खेली जा रही है। इससे सांप्रदायिक सौहार्द बिगड़ सकता है। क्यों नहीं रुक कर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को स्वीकार करें? यह निर्मोही अखाड़ा है जिसका वास्तविक राम जन्मभूमि भूमि पर दावा है और यह हम हैं जिन्हें वहां मंदिर का निर्माण करना है। वीएचपी को इससे क्या लेना देना है?”
उन्होंने 1994 में एससी के इस्माइल फारुकी फैसले पर ध्यान दिलाया, जिसमें कहा गया था कि पूरे 67.7 एकड़ का अधिग्रहण ‘सांप्रदायिक सद्भाव को बनाए रखने और बढ़ावा देने और धर्मनिरपेक्षता के पंथ के अनुरूप के बड़े राष्ट्रीय उद्देश्य’ के लिए किया गया था।
अन्य अखाड़ा के सदस्य ने कहा कि केंद्र के कदम से सुप्रीम कोर्ट में मामले में देरी आ सकती है क्योंकि अब दो दो मामले की सुनवाई होनी है। उनके मुताबिक, “हम इस दलील का विरोध करेंगे।”
हालांकि वीएचपी का कहना है कि ज़मीन की वापसी-लगभग 67 एकड़ का 42 एकड़ को काफी वक़्त से रोका गया था। प्रवक्ता शरद शर्मा ने कहा-“जबसे 1993 में, पीवी नरसिम्हा राव ने हमारी ज़मीन का अधिग्रहण किया है, हम काफी पीएम से उसे लौटाने की सिफारिश कर रहे हैं। केवल अटल बिहारी वाजपेयी ने हमारी मदद करने का प्रयास किया मगर वे नाकामयाब हो गए। आखिरकार, पीएम मोदी ने हमारी सुन ली। सबसे महत्वपूर्व बिंदु है कि वीएचपी या राम जन्मभूमि न्यास ने कभी भी सरकार से ज़मीन के अधिग्रहण के लिए मुआवजा नहीं लिया। मुसलमानों को इस ज़मीन से कुछ लेना-देना नहीं है और हमारे पास वापस आने से उन्हें कोई दिक्कत भी नहीं होनी चाहिए।”
उन्होंने कहा कि अगर वीएचपी को ज़मीन वापस मिल गयी तो वे भगवान राम की जीवनी का निर्माण करेंगे। वीएचपी के अंतरराष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने 1994 के इस्माइल फारुकी फैसले के एक अन्य पहलू का हवाला दिया, जिसमें उल्लेख किया गया था कि ‘सतही भूमि अपने मालिकों को वापस कर दी जाएगी’।
इकबाल अंसारी जो इस मामले के मुस्लमान अभियोगी है, उन्होंने कहा कि उन्हें केंद्र के दलील से कोई दिक्कत नहीं है क्योंकि बाबरी मस्जिद विवादित ज़मीन के अन्दर स्थित थी और केंद्र उस क्षेत्र के बाहर की ज़मीन के साथ कुछ भी करने के लिए स्वंतंत्र है।