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    निकाह हलाला

    चुनाव आयोग द्वारा हाल ही में राज्यसभा चुनावों में नोटा का विकल्प देने के खिलाफ गुजरात कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। इस याचिका में राज्यसभा चुनाव में नोटा के विकल्प की अनुमति देने पर चुनाव आयोग के 2014 की अधिसूचना को चुनौती दी गई है। गुजरात में आगामी 8 अगस्त को 3 सीटों के लिए होने वाले राज्यसभा चुनावों से पहले कांग्रेस विधायकों के लगातार इस्तीफों के बाद अब नोटा के विकल्प ने कांग्रेस की चिंता बढ़ा दी है। बता दें कि गुजरात से राज्यसभा सदस्यता के लिए कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने दावा पेश किया है और भाजपा उनके खिलाफ बलवंत सिंह राजपूत को राज्यसभा में भेजना चाहती है। वरिष्ठ कांग्रेसी शंकर सिंह वाघेला की बगावत और गुजरात कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे को पार्टी भाजपा के साथ बन रहे नए समीकरणों से जोड़कर देख रही है। बता दें कि बलवंत सिंह राजपूत वरिष्ठ कांग्रेसी नेता शंकर सिंह वाघेला के समधी है।

    गुजरात कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के 2013 में दिए उस आदेश को आधार बनाया है जिसमें यह जिक्र किया गया था कि राज्यसभा जैसे अप्रत्यक्ष चुनावों में नोटा के विकल्प का इस्तेमाल नहीं होगा। इस मुद्दे पर मंगलवार को संसद में भी काफी हंगामा हुआ था और कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने राज्यसभा के प्रश्नकाल में इसपर सवाल उठाये थे। जवाब में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि यह फैसला निर्वाचन आयोग के अधिकार क्षेत्र में आता है। सरकार का इसपर कोई हस्तक्षेप नहीं है। कांग्रेस चुनाव आयोग के इस कदम का कड़ा विरोध कर रही है। कांग्रेसी नेताओं ने चुनाव आयोग को ज्ञापन सौंपकर अपने पक्ष से अवगत कराया और इस निर्णय को हटाने की मांग की। इस याचिका पर गुरूवार को सुनवाई होने की सम्भावना है।

    अहमद पटेल

     

    अहमद पटेल की राज्यसभा उम्मीदवारी को लेकर कांग्रेस पहले से ही ‘बैकफुट’ पर है और अब चुनाव आयोग के इस आदेश ने उसे ‘क्लीन बोल्ड’ कर दिया है। गुजरात कांग्रेस को पता है कि अभी पार्टी में कई ऐसे विधायक हैं जो शंकर सिंह वाघेला के करीबी है और मौका मिलते ही उनकी तरफ हो लेंगे। ऐसे में नोटा का विकल्प उन विधायकों के लिए चुनाव के दिन ‘मौके पर चौका’ का काम करेगा और कांग्रेस पार्टी गुजरात में और हाशिए पर चली जाएगी। विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग के इस निर्णय पर यह कहकर भी अपनी आपत्ति जताई कि इससे नोटा का विकल्प चुनने वाले विधायकों की पार्टी सदस्यता खतरे में पड़ जाएगी और संवैधानिक संकट भी उत्पन्न हो जायेगा।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।