Tue. Apr 30th, 2024
हिमाचल प्रदेश चुनाव

वीरभूमि कहे जाने वाले हिमाचल प्रदेश में सियासी उफान चरम पर है। आगामी 9 नवंबर को प्रस्तावित विधानसभा चुनावों के लिए लिए चुनावी प्रचार अभियान आखिरी चरण में है। सत्ताधारी दल कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी दल भाजपा राज्य के मतदातों को रिझाने की हर मुमकिन कोशिश करती नजर आ रही हैं। कांग्रेस की अगुवाई 6 बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके ‘राजा साहब’ वीरभद्र सिंह कर रहे हैं वहीं भाजपा की ओर से मोर्चा पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल संभाले हुए हैं। भाजपा ने चुनाव पूर्व मुख्यमंत्री ना घोषित करने की अपनी परंपरा तोड़ते हुए विधानसभा चुनावों से 9 दिन पूर्व प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। इस घोषणा से हर कोई हतप्रभ था क्योंकि मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा की दावेदारी लगभग तय मानी जा रही थी। पर जातीय समीकरणों को देखते हुए भाजपा ने धूमल पर दांव खेला।

हिमाचल प्रदेश चुनाव
धूमल-नड्डा की राजपूत-ब्राह्मण की जोड़ी

राजपूत + ब्राह्मण = बहुमत

अगर मतों के लिहाज से देखें तो राजपूत समाज हिमाचल प्रदेश में ‘किंग मेकर’ की भूमिका में है। राज्य के मतदाता वर्ग में राजपूत वोटरों की सहभागिता 37 फीसदी है। राजपूत समाज के बाद हिमाचल प्रदेश में ब्राह्मण समाज का दबदबा है। ब्राह्मण समाज के वोटरों की सहभागिता 18 फीसदी है। मतों के लिहाज से यह हिमाचल प्रदेश में दूसरा सबसे बड़ा तबका है। अगर राजपूत और ब्राह्मण वोटरों को साथ मिला दें तो कुल 55 फीसदी मत हो जाते हैं। किसी भी पार्टी को बहुमत दिलाने या सत्ता तक पहुँचाने के लिए हिमाचल प्रदेश में राजपूत-ब्राह्मण समीकरण को साधना बहुत जरुरी है। इसी वजह से कहा जाता है कि हिमाचल प्रदेश में राजपूतों की ताकत और ब्राह्मणों के आशीर्वाद के बिना सियासी दंगल जीतना संभव नहीं है।

राजपूत बनाम राजपूत का दांव

हिमाचल प्रदेश की सत्ता में आने के लिए भाजपा हर मुमकिन कोशिश कर रही है। प्रेम कुमार धूमल को मुख्यमंत्री पड़ का उम्मीदवार बनाना भाजपा की सियासी रणनीति का हिस्सा है। कोई भी सियासी दल चाहे विकास को कितनी भी तवज्जो दे पर आज भी देश में राजनीति का मुख्य आधार जातिवाद ही है। हिमाचल प्रदेश में राजपूत समाज ‘किंग मेकर’ है और उसके समर्थन बिना हिमाचल की सत्ता तक पहुँचना नामुमकिन है।भाजपा ने हिमाचल प्रदेश में प्रेम कुमार धूमल को आगे करने जातीय और सियासी समीकरणों को साधने का प्रयास किया है। हिमाचल प्रदेश में धूमल की अच्छी-खासी लोकप्रियता है और उनके पूर्ववर्ती कार्यकालों के दौरान राज्य में सड़क निर्माण, पेयजल सुविधा जैसी बुनियादी सुविधाओं का विकास हुआ था। इस वजह से उन्हें ‘सड़क वाला चीफ मिनिस्टर’ भी कहा जाता है।

हिमाचल प्रदेश चुनाव
राजपूत बनाम राजपूत का दांव

हिमाचल प्रदेश के लिए भाजपा आलाकमान की पहली पसंद मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री जे पी नड्डा थे। प्रेम कुमार धूमल को ऐन वक्त पर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर भाजपा आलाकमान ने हिमाचल प्रदेश में जातिगत समीकरणों को साधने का प्रयास किया है। हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग पर नजर डालें तो राज्य की तकरीबन 37 फीसदी आबादी राजपूत समाज की है। ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी 18 फीसदी है। सवर्ण वर्ग को हमेशा से भाजपा का कोर वोटबैंक माना जाता है। मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल राजपूत समाज से आते हैं वहीं मोदी सरकार में मंत्री जे पी नड्डा ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर जातिगत समीकरणों के आधार पर देखें तो धूमल का पलड़ा भारी दिखाई देता है। भाजपा आलाकमान ने इसी आधार पर जे पी नड्डा की जगह प्रेम कुमार धूमल को तरजीह दी है।

भाजपा ने खेला कोर वोटबैंक साधने का दांव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा को विकास की राजनीति करने वाली पार्टी बताते हैं और यह काफी हद तक सही भी है। पर मतदाता वर्ग आज भी भाजपा को हिंदुत्ववादी राजनीति करने वाला दल मानता है। इसका नजारा अक्सर चुनावी रैलियों में दिख जाता है और भाजपा का सियासी मंच भगवा नजर आता है। भाजपा ने उसके कोर वोटबैंक कहे जाने वाले सवर्ण वर्ग को साधने के लिए हिमाचल प्रदेश में भी हिंदुत्व कार्ड खेला है। एक ओर जहाँ धूमल-नड्डा की जोड़ी राजपूत-ब्राह्मण एकता की बानगी पेश करती नजर आ रही है वही दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे माने जाने वाले योगी आदित्यनाथ हिन्दू मतदाताओं को लुभाते नजर आ रहे हैं। भाजपा हिमाचल प्रदेश की सत्ता तक पहुँचने के लिए एक-एक कर अपने तरकश से सियासी तीर निकाल रही है।

हिमाचल प्रदेश चुनाव
भाजपा ने खेला कोर वोटबैंक साधने का दांव

चुनावों से ठीक पहले देश में हिंदुत्व के सबसे बड़े चेहरे बनकर उभरे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हिमाचल प्रदेश का दौरा किया था। योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि कांग्रेस ने देव भूमि हिमाचल को अपराध भूमि में तब्दील कर दिया है। योगी आदित्यनाथ आज भाजपा के फायरब्रांड नेता होने के साथ-साथ स्टार प्रचारकों की सूची में भी अग्रणी स्थान पर आते हैं। गुजरात भाजपा के एक नेता ने तो उन्हें भाजपा का तीसरा सबसे सशक्त नेता बता दिया था। योगी आदित्यनाथ को हिमाचल प्रदेश में चुनावी अभियान में शामिल कर भाजपा ने हिन्दू मतदाताओं को लुभाने की कोशिश की है। योगी को चुनावी प्रचार अभियान में उतार भाजपा मतों का ध्रुवीकरण करने के प्रयास में है। हिमाचल प्रदेश की 95 फीसदी से अधिक आबादी हिन्दू है। ऐसे में योगी का प्रचार अभियान हिमाचल के चुनाव परिणामों पर असर डाल सकता है।

जातीय समीकरण में फिट बैठ रहे थे धूमल

भाजपा द्वारा घोषित मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल पूर्व में 2 बार हिमाचल प्रदेश की सत्ता संभाल चुके हैं। धूमल को साढ़े तीन दशक से अधिक का सियासी अनुभव है। हिमाचल प्रदेश की आबादी में राजपूत समाज की हिस्सेदारी 37 फीसदी है और प्रेम कुमार धूमल राजपूत समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। धूमल की भाजपा संगठन में भी अच्छी पकड़ है। प्रेम कुमार धूमल के पुत्र और हमीरपुर सांसद अनुराग ठाकुर हिमाचल के युवा वर्ग में खासे लोकप्रिय हैं और भाजपा पिता-पुत्र की इस जोड़ी की लोकप्रियता का फायदा उठाने की पुरजोर कोशिश कर रही है। शुरुआत में भाजपा द्वारा जे पी नड्डा को अपना चेहरा बनाने के संकेत मिल रहे थे पर कांग्रेस द्वारा वीरभद्र सिंह को आगे करने पर भाजपा ने ऐन वक्त में पैंतरा बदल लिया।

हिमाचल प्रदेश चुनाव
जातीय समीकरण में फिट बैठ रहे थे धूमल

भाजपा को सत्ता से कम कुछ भी मंजूर नहीं

भाजपा को हिमाचल प्रदेश में सत्ता से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। भाजपा हिमाचल की सत्ता पाने के लिए कितनी आतुर है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उसने सत्ता की चाह में ‘रूल 75’ को ताक पर रख दिया है। अमित शाह ने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रेम कुमार धूमल के नाम का ऐलान कर यह स्पष्ट कर दिया है कि भाजपा सत्ता वापसी के लिए एक बार अपने सिद्धांतों से समझौता कर सकती है। प्रेम कुमार धूमल की आयु 73 वर्ष, 6 महीने है। चुनाव परिणाम की घोषणा के वक्त तक उनकी आयु 73 वर्ष, 8 महीने हो जाएगी। अगर भाजपा के ‘रूल 75’ के लिहाज से देखें तो बतौर मुख्यमंत्री उनके पास 16 महीने का कार्यकाल होगा। भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की लोकप्रियता को हिमाचल में सत्ता वापसी का आधार बनाना चाहती है।

हिमाचल की सत्ता का सियासी गणित

हिमाचल प्रदेश एक हिन्दू बाहुल्य राज्य है। राज्य में 95 फीसदी आबादी हिन्दू मतदाताओं की है। इसमें सवर्णों की सहभागिता 55 फीसदी है। राजपूत समाज के मतदाताओं की संख्या 37 फीसदी है वहीं ब्राह्मण समाज के मतदाताओं की संख्या 18 फीसदी है। हिमाचल भाजपा के 2 बड़े चेहरे प्रेम कुमार धूमल और जे पी नड्डा क्रमशः राजपूत और ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। भाजपा इन दोनों दिग्गजों को एक साथ लाकर सवर्ण मतदाताओं को अपनी ओर मिलाने की पुरजोर कोशिश में लगी है। 2012 के विधानसभा चुनावों में भाजपा महज 4 फीसदी के मतान्तर से कांग्रेस से पीछे रह गई थी। हालाँकि इसके बाद हुए 2014 लोकसभा चुनावों में भाजपा ने हिमाचल प्रदेश की चारों सीटें जीतकर कांग्रेस को अपनी जबरदस्त मौजूदगी का एहसास करा दिया था।

हिमाचल प्रदेश विधानसभा में कुल 68 सीटें है। 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 36 सीटों पर कब्जा जमाया था वहीं भाजपा को 26 सीटों पर कामयाबी मिली थी। अन्य दलों के हाथ 6 सीटें लगी थी। 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को 2007 के चुनावों की अपेक्षा 16 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था वहीं कांग्रेस को 13 सीटों का फायदा हुआ था। अगर मतों के लिहाज से देखें तो कांग्रेस को 43 फीसदी मत मिले थे वहीं भाजपा को 39 फीसदी मत मिले थे। 2007 के चुनावों की अपेक्षा भाजपा के मत प्रतिशत में 5 फीसदी की कमी आई थी वहीं कांग्रेस का मत प्रतिशत 5 फीसदी बढ़ गया था। 4 फीसदी मतान्तर के बावजूद भाजपा कांग्रेस से 10 सीट पीछे रही थी। अब भाजपा सवर्ण समीकरण को साध मतान्तर पाटकर सत्ता वापसी की राह तलाशने में जुटी है।

By हिमांशु पांडेय

हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है। मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।