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    बजट पेश करने जाते योगी आदित्यनाथ

    हाल ही में पेश उत्तर प्रदेश सरकार का बजट कई वजहों से चर्चा में है। धार्मिक स्थलों को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने से लेकर शिक्षा के बजट में कटौती तक इसका हर बिंदु सुर्खियाँ बटोर रहा है। किसानों की कर्जमाफी के निर्णय के बाद प्रदेश की सरकार के लिए उस 36000 करोड़ के धनराशि की भरपाई करना बड़ी चुनौती है। उसके लिए सरकार ने फिजूलखर्ची को रोकने का निर्णय लिया है।

    इस दिशा में पहला कदम उठाते हुए सरकार ने माध्यमिक और उच्च शिक्षा बजट में तकरीबन 90 फीसदी की कटौती कर दी है। हालाँकि प्राथमिक शिक्षा के बजट में तकरीबन 30 फीसदी की बढ़ोत्तरी की गई है। इस कदम का शिक्षाविदों और जानकारों ने विरोध किया है। उनके अनुसार प्रदेश में शिक्षा का स्तर पहले से ही तारीफ योग्य नहीं था इस कटौती के बाद उसमे और गिरावट आनी निश्चित है। वहीं राज्य के उपमुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री डॉ. दिनेश शर्मा ने कहा है कि यह किसी तरह की कटौती नहीं है। बस फिजूलखर्ची को रोका गया है और इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं आयेगा।

    कुल बजट में हुई है बढ़ोत्तरी

    सरकार ने प्राथमिक शिक्षा पर ज्यादा जोर देते हुए पिछले साल की तुलना में इसके बजट में 5867 करोड़ की बढ़ोत्तरी की है। अब राज्य का प्राथमिक शिक्षा बजट 22000 करोड़ रूपये का हो गया है। वहीं माध्यमिक और उच्च शिक्षा दोनों के बजट में तकरीबन 90 फीसदी की कटौती की गई है। पिछले बजट के मुकाबले माध्यमिक शिक्षा बजट 9500 करोड़ से घटकर 576 करोड़ और उच्च शिक्षा बजट 2742 करोड़ से घटकर 272 करोड़ पर सिमट गया है। इसके बावजूद पिछले बजट के मुकाबले शिक्षा के कुल बजट में 10 फ़ीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।

    कहीं निजीकरण का इरादा तो नहीं

    जानकारों और शिक्षाविदों का कहना है कि इतना बजट तो अध्यापकों के वेतन के लिए भी पर्याप्त नहीं है शिक्षा के अन्य बिंदुओं की क्या बात करें। सरकार का पक्ष रखते हुए उपमुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री दिनेश शर्मा ने कहा कि सरकार शिक्षा की गुणवत्ता के साथ कोई समझौता नहीं करने वाली। यह बस फिजूलखर्ची को रोकने के लिए उठाया गया एक कदम है। सरकार इंफ्रास्ट्रक्टर और अन्य बिंदुओं को किनारे कर सुधरी अध्यापन प्रणाली और शिक्षा की गुणवत्ता पर जोर दे रही है। बड़ी-बड़ी इमारतें बनाने का क्या फायदा जब उनमें पढ़ाने के लिए योग्य अध्यापक ही ना हो।

    सरकार के इस कदम ने माध्यमिक और उच्च शिक्षा के निजीकरण की सम्भावनाओं को और बल दिया है। प्राथमिक शिक्षा के निजीकरण के बाद सरकार के इस कदम पर शिक्षाविदों का कहना है कि सरकार माध्यमिक और उच्च शिक्षा का निजीकरण करने पर विचार कर रही है। ये सरकार के लिए एक आत्मघाती कदम हो सकता है। ऐसा होने की सूरत में सिर्फ उन्हें ही शिक्षा मिलेगी जिनके पास धन होगा। या तो पिछली सरकार शिक्षा पर फिजूलखर्च कर रही थी या इस सरकार के लिए शिक्षा पर खर्च करना फिजूलखर्ची है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।