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    गुजरात विधानसभा चुनाव

    भाजपा का देश में प्रभाव बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रपति चुनावों में क्रॉस वोटिंग के बाद गुजरात में हुए कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे से विपक्षी पार्टियां अभी संभल नहीं पाई थी कि 2019 में मोदी के विकल्प के तौर पर देखे जा रहे नीतीश कुमार ने भाजपा का हाथ थाम लिया। भाजपा-जेडीयू गठबंधन ने बिहार में बहुमत साबित कर अपनी सरकार बना ली और विपक्ष को और कमजोर कर दिया। इसी सन्दर्भ में हुए हालिया घटनाक्रम में शुक्रवार शाम लखनऊ में सपा के 2 और बसपा के 1 एमएलसी ने अपना इस्तीफ़ा दे दिया। इस्तीफ़ा देने वालों में सपा से बुक्कल नबाव और यशवंत सिंह हैं वहीं बसपा से जयवीर सिंह का नाम शामिल है। इसे यूपी में बदलते सियासी समीकरणों की शुरुआत माना जा रहा है।

    बुक्कल नवाब सपा प्रमुख अखिलेश यादव के काफी करीबी माने जाते हैं। सपा पहले ही आंतरिक कलह से जूझ रही है। ऐसे हालातों में उनका इस्तीफ़ा कई सवाल खड़े करता है। सपा के 1 और एमएलसी के इस्तीफ़ा देने की चर्चा है। इतना ही नहीं 3 सपा विधायकों के भाजपा में शामिल होने की भी सम्भावना है। बुक्कल नवाब ने कहा कि अब उन्हें पार्टी में घुटन सी महसूस हो रही थी। उन्होंने मोदी-योगी के कार्यों की जमकर तारीफ की और भाजपा में शामिल होने के भी संकेत दिए। उनके इस्तीफे पर प्रतिक्रिया देते हुए सपा नेता नरेश अग्रवाल ने कहा कि ये मौकापरस्त लोग हैं, वक़्त बदलने पर पाला बदल लेते हैं। उन्होंने इस्तीफे को अपने स्वार्थ के लिए उठाया कदम करार देते हुए कहा कि यह पूरी तरह भाजपा के दबाव में लिया गया फैसला है। भाजपा ने पद और धन का लालच देकर हर दल के नेताओं को अपनी ओर मिलाने की रणनीति बनाई है। यह इस्तीफे उसी का हिस्सा है। भाजपा ने इन इस्तीफों से सम्बन्ध होने से इंकार करते हुए कहा है कि यह इन पार्टियों की आपसी फूट का मामला है। पार्टी नेता और प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने कहा कि इन इस्तीफों के बारे में अखिलेश यादव ही जवाब दे सकते हैं और ये उनकी पार्टी का अंदरूनी मामला है। इससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है। दोनों ही पार्टियां अंतर्कलह से जूझ रही हैं और अब यह बात किसी से भी छुपी नहीं है।

    भाजपा को होगा फायदा

    इन तीनों इस्तीफों का भाजपा को फायदा मिलना तय है। प्रदेश में शीर्ष तीन पदों पर काबिज नेताओं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, उपमुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य में से किसी के पास भी विधानसभा या विधान परिषद् की सदस्यता नहीं है। ऐसे में इन इस्तीफों के बाद पार्टी अपने तीनों नेताओं को खाली हुई सीटों पर उम्मीदवार बनाकर विधान परिषद् भेज सकती है। लोकसभा सीटें छोड़ने के बाद इन तीनों की विधानमंडल में इस रास्ते से एंट्री कराई जा सकती है।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।