उत्तर भारत का मुख्य राज्य उत्तर प्रदेश, जिसके बारे में कहा जाता है कि दिल्ली का रास्ता इसी राज्य से हो कर गुजरता है। लोकसभा की 80 सीटों वाला ये राज्य भाजपा के खिलाफ गोरखपुर, फूलपुर और कैराना के उपचुनाव में महागठबंधन की प्रयोगशाला बना। इस राज्य के इन तीन सीटों पर उपचुनाव में महागठबंधन की जीत ने इस बात पर मुहर लगा दी कि अगर भाजपा को हराना है तो सबको अपने मतभेदों को भुला कर साथ आना होगा।
लेकिन उसके बाद के 6 महीनो में हवा काफी बदली बदली सी नज़र आ रही है। मायावती ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस से नाराज हो अलग रास्ता अख्तियार कर लिया और कांग्रेस पर क्षेत्रीय पार्टियों को ख़त्म करने का आरोप लगा डाला।
अब हवा का रुख बता रहा है कि उत्तर प्रदेश में एक अलग तरह का फार्मूला पनप रहा है और वो फार्मूला है ‘कांग्रेस मुक्त महागठबंधन का’
सीएनएन-न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक़ समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव और बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती के बीच पिछले कुछ दिनों में इस सम्बन्ध में कई बार बातें हुई है। इस कांग्रेस मुक्त महागठबंधन में चौधरी अजीत चौधरी की पार्टी ‘राष्ट्रीय लोक दल’ को भी शामिल करने की बात चल रही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पार्टियाँ आगे की बातचीत और रणनीति के लिए 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों का इंतज़ार कर रही है।
फ़ॉर्मूला
न्यूज़ 18 की रिपोर्ट के अनुसार सीट शेयरिंग फोर्मुले के तहत अखिलेश यादव, मायावती के आगे झुकते दिख रहे हैं। मायावती, जिनकी दलित वर्ग में गहरी पैठ है, 80 में से 30 से 40 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। जबकि जाट लैंड के नाम से मशहूर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और किसान वोट बैंक पर पकड़ रखने वाले चौधरी अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल को 4 सीटें दी जा सकती है।
संभावित कांग्रेस मुक्त महागठबंधन कुछ सीटें वर्तमान में भाजपा के सहयोगी ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के लिए रख सकती है क्योंकि राजभर इन दिनों भाजपा से नाराज चल रहे हैं और कई बार भाजपा के खिलाफ खुली जंग का ऐलान कर चुके हैं। बाकी बचे सीटों पर समाजवादी पार्टी लड़ सकती है। जबकि ये संभावित महागठबंधन रायबरेली और अमेठी में कोई उम्मीदवार नहीं उतार सकता है। रायबरेली और अमेठी कांग्रेस नेता सोनिया गाँधी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की पारंपरिक सीट है।
उत्तर प्रदेश के जातीय समीकरण काग्फी जटिल हैं। इसलिए कौन किस सीट से लडेगा ये उस सीट के जातीय फैक्टर को ध्यान में रख कर तय किया जाएगा। जहाँ बहुजन समाज पार्टी की स्वीकार्यता दलितों के बीच काफी ज्यादा है वहीँ समाजवादी पार्टी यादवों और मुसलमानों के अलावा अन्य जातियों में भी अपनी पैठ रखती है। इसके अलावा राष्ट्रीय लोक दल किसानो और जाटों पर अपनी गहरी पकड़ रखती है।
सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के बीच के समीकरणों को साधने में थोड़ी मुश्किल आ सकती है क्योंकि राजभर और मायावती आरक्षण के मुद्दे पर एक दुसरे से भिन्न मत रखते हैं। मायावती का मुख्य वोटबैंक दलित आरक्षण का लाभ उठा रहा है जबकि राजभर अपनी जाती के लिए आरक्षण की मांग कर रहे हैं। राजभर जातीय आधार कि अपेक्षा आर्थिक आधार पर आरक्षण के पक्षधर हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में 18 फीसदी राजभर समुदाय हैं जबकि बलिया जिलेके कुछ सीटों पर ये 35 फीसदी भी हैं।
कांग्रेस की गलती
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन करके समाजवादी पार्त्यी को कोई फायदा नहीं हुआ और भाजपा सत्ता में आ गई। छतीसगढ़ में बहुजन समाज पार्टी और मध्य प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बसपा के साथ कांग्रेस के गठबंधन ना करने को अखिलेश यादव ने कांग्रेस का घमंड बताया था और कहा था कि गैर भाजपा पार्टियों को कांग्रेस अपने साथ नहीं रखना चाहती। मायावती ने भी छतीसगढ़ में यही आरोप लगा कर कांग्रेस से गठबंधन करने से इनकार कर दिया था।
अखिलेश यादव ने मध्य प्रदेश में कांग्रेस के अकेले जाने पर कहा था ‘ठीक है वो अकेले जा आरहे हैं, अब हमारी बारी है उनकी गलतियाँ उन्हें बताने की’ उन्होंने कहा था कि आज देश पर भाजपा का राज है तो इसके लिए कांग्रेस जिम्मेदार है।कांग्रेस, सपा, बसपा और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी मिलकर लड़ते तो मध्य प्रदेश में 200 सीटें आती।