यूनिसेफ की एक रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि भारत के इंटरनेट यूजर्स में महिलाओं की संख्या मात्र एक तिहाई है। यदि लड़कियों और महिलाओं को डिजिटल शिक्षा उपलब्ध नहीं कराई गई तो ये समाज और घर में हाशिए पर चली जाएगी। जिससे देश के डिजिटल इकॉनोमी को धक्का लग सकता है।
डिजिटल शिक्षा में पुरूष बनाम महिला
वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो साल 2017 में महिलाओं की तुलना में 12 फीसदी ज्यादा पुरूषों ने इंटरनेट का इस्तेमाल किया। जबकि भारत के इंटरनेट यूजर्स में महिलाओं की संख्या केवल एक तिहाई है। साल 2017 के वार्षिक फ्लैगशिप प्रकाशन की “द स्टेट ऑफ़ द वर्ल्ड की चिल्ड्रन रिपोर्ट” के शुभारंभ अवसर पर यूनिसेफ ने कहा कि, अभी हाल में ही भारत ने संरचनात्मक सुधार के तहत नकदी निर्भरता को कम करने के लिए डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया है। ऐस में यदि लड़कियों और महिलाओं को डिजिटल रूप से अनपढ़ रखा गया तो वो समाज और घर में हाशिए पर चली जाएंगी। भारत में सभी इंटरनेट यूजर्स में महिलाओं की संख्या मात्र 29 फीसदी है।
लड़कियां-महिलाएं इंटरनेट इस्तेमाल को लेकर लिंगभेद का शिकार
इनमें से ज्यादतर ग्रामीण इलाकों की लड़कियां जिन्हें लिंग भेदभाव के चलते इंटरनेट अथवा मोबाइल सुविधा से वंचित रखा जाता है। बतौर उदाहरण, ग्रामीण राजस्थान के एक गांव में पंचायत ने लड़कियों को मोबाइल फोन या सोशल मीडिया से दूर रहने का फरमान सुनाया था। यूपी के अन्य गांव में कुवांरी लड़कियों को मोबाइल फोन के इस्तेमाल करने तथा जीन्स और टी—शर्ट पहनने पर प्रतिबंध लगाया गया था।
रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल साक्षरता के चलते बच्चों के जीवन स्तर में सुधार तथा भविष्य में कमाई की क्षमता में इजाफा देखने को मिलता है। डिजिटल साक्षरता की असमानता देश के शहरी और ग्रामीण इलाकों में व्यापक स्तर पर अमीर और गरीब के बीच की दूरी बढ़ा सकता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इंडिया ही एक ऐसा देश है जहां डिजिटल असमानता समाज की विरूपता को प्रदर्शित करता है।
भारत में डिजिटल असमानता के पीछे कई कारण हैं जैसे सामाजिक मानदंड, शिक्षा का स्तर, तकनीकी साक्षरता की कमी, बेटियों को इंटरनेट से दूर रखना आदि शामिल है। रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि, कुछ लोगों को डर है कि लड़कियां इंटरनेट का इस्तेमाल कर पुरूषों के नजदीक जा सकती हैं।
इसलिए ज्यादातर परिवारवाले लड़कियों को इंटरनेट इस्तेमाल की इजाजत नहीं देते हैं, यहां तक कि उनके हर कदम पर मां-बाप और भाइयों की नजर रहती है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत के पितृसत्तात्मक समाज में पुरूषों की आज्ञा का पालन और सम्मान करना लड़कियों के जरूरी माना जाता है, यही नहीं कुछ परिवार तकनीकी ज्ञान लड़कियों तथा महिलाओं के लिए जरूरी नहीं मानते।