Sat. Apr 27th, 2024
    यरूशलम भारत अमेरिका इजरायल व फिलीस्तीन

    भारत ने यरूशलम मुद्दे पर अपने खास दोस्त व सहयोगी अमेरिका व इजरायल के खिलाफ जाकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में मतदान किया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के यरूशलम को इजरायल की राजधानी घोषित करने के बाद से ही दुनिया के ज्यादातर देश इस फैसले का विरोध कर रहे है।

    यरूशलम पर फिलीस्तीन व इजरायल के बीच जारी विवाद में अमेरिका ने आग लगाने व इजरायल का पक्ष लेने का काम किया है। भारत ने यरूशलम मामले पर शुरूआत में कहा था कि इसमें किसी तीसरे पक्ष को बीच में नहीं आना चाहिए।

    यरूशलम मामले का हल दोनों देशों को ही शांति से निकालना चाहिए। भारत ने इस ट्रम्प के फैसले के खिलाफ मतदान करके इसे सिरे से खारिज कर दिया है।

    ट्रम्प को सुरक्षा परिषद में जीत तो महासभा में मिली हार

    संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रस्ताव ट्रम्प के फैसले के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया था जिसमें लिखा था कि यरूशलम पर ट्रम्प की घोषणा का कोई कानूनी प्रभाव नहीं रहेगा और साथ ही यरूशलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता नहीं मिलेगी। इस मामले को दोनों देशों को ही सुलझाना होगा।

    संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 14 देशों ने इस प्रस्ताव को समर्थन दिया था। लेकिन उस समय अकेले पड़े अमेरिका ने अपनी वीटो पावर का इस्तेमाल कर लिया था। लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासभा में वीटो पावर नहीं है। ऐसे में अमेरिका को यरूशलम मुद्दे पर करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है।

    संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारत समेत कुल 128 देशों ने मतदान किया और इस प्रस्ताव के खिलाफ में कुल 9 वोट पड़े। 35 देशों ने मतदान की प्रक्रिया से खुद को अलग रखा।

    भारत ने अमेरिका के फैसले के खिलाफ जाकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी मजबूती को दिखाया है कि वो किसी भी देश के दबाव में नहीं अपितु स्वतंत्र रूप से काम करता है।

    महासभा में मतदान करने से पहले भारत में मोदी सरकार के कई नेताओं ने मांग की थी कि भारत को अमेरिका व इजरायल के पक्ष में मतदान करना चाहिए।

    भारत व इजरायल के रिश्तों में आई खटास ?

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले भारतीय पीएम थे जो कि इजरायल की यात्रा पर गए थे। दोनों देशों के बीच में पीएम मोदी की यात्रा के बाद से ही संबंधों में मजबूती मिली थी। लेकिन अब इजरायल के खिलाफ मतदान करने से भारत व इजरायल के बीच में संबंधों में तनाव आ सकता है।

    भारत व इजरायल के बीच में हथियारों की आपूर्ति से संबंधित महत्वपूर्ण समझौते हुए है। हाल के समय में भारत व इजरायल के बीच में करीबी नजर आने लगी थी।

    मोदी-बेंजामिन

    कई जानकारों का मानना है कि इजरायल हमेशा से कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन करता आया है। ऐसे में भारत को भी यरूशलम पर इजरायल का साथ देना चाहिए था।

    अमेरिका व इजरायल का साथ न देना भारत की मजबूरी ?

    हाल के दिनों की बात की जाए तो भारत के अमेरिका व इजरायल दोनों देशों के साथ ही संबंध काफी मजबूत है। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू व पीएम मोदी की दोस्ती से दोनो देशों को काफी फायदा हुआ है।

    पीएम मोदी के इजरायल दौरे से भी भारत को काफी फायदा हो रहा था। अगर अमेरिका की बात की जाए तो इस समय भारत का सबसे मजबूत दोस्त व सहयोगी अमेरिका ही है।

    डोनाल्ड ट्रम्प की नई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में भी भारत को मजबूत साझेदार बताया गया है। इसके बावजूद भारत ने अमेरिका के फैसले के खिलाफ जाकर मतदान किया है।

    दरअसल भारत की मजबूरी थी कि वो दुनिया के बहुमत देशों के साथ जाना चाहता है। भारत का मानना है कि मतदान से इजरायल व अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंधों पर कोई असर नहीं होगा।

    भारत ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिखाया है कि वो वैश्विक स्तर पर स्वतंत्र रूप से सही कदम की ओर रूख करता है। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू जनवरी 2018 में भारत का दौरा भी करने वाले है।

    कश्मीर मुद्दे पर फिलीस्तीन को साथ में ला पाएगा भारत ?

    भारत ने यरूशलम पर शुरूआत से ही फिलीस्तीन का समर्थन किया है और ट्रम्प के फैसले का विरोध किया है। भारत व फिलीस्तीन के बीच रिश्ते पिछले कुछ सालों से ही सुधरे है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत ने संतुलन बनाते हुए अधिकतर देशों के निर्णय के हिसाब फिलीस्तीन का समर्थन किया है।

    भारत ने एक तरह से मुस्लिम देश फिलीस्तीन का समर्थन करके रणनीतिक कामयाबी हासिल की है। यरूशलम पर जिस तरह से फिलीस्तीन व इजरायल का संघर्ष है, वैसे ही कश्मीर पर भारत व पाकिस्तान के बीच में संघर्ष है।

    भारत-फिलीस्तीन

    कई जानकारों का कहना है कि कश्मीर विवाद को लेकर मुस्लिम देश फिलीस्तीन ने कभी भी भारत का समर्थन नहीं किया है। लेकिन भारत के इस कदम से संभावना है कि कश्मीर विवाद पर फिलीस्तीन का रूख भारत के पक्ष में हो सकता है।

    भारत में फिलीस्तीन के राजदूत अदनान ए अलीहाइजा ने सबको चौंकाते हुए कुछ दिन पहले कहा था कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जल्द ही फिलीस्तीन की यात्रा पर भी जाने वाले है।

    यरूशलम पर भारत के नेताओं की आलोचना कितनी जायज ?

    यरूशलम मामले पर भारत के मतदान को लेकर कई तरह की प्रतिक्रिया सामने आ रही है। भाजापा नेताओं ने ट्वीट करके कहा था कि भारत को या तो मतदान प्रक्रिया में शामिल नहीं होना चाहिए या फिर इस फैसले के खिलाफ नहीं जाना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, ज्यादातर देशों के निर्णय के साथ ही भारत ने भी अपना निर्णय बहुमत के हिसाब से लिया है।

    बीजेपी सासंद सुब्रह्म्ण्यम् स्वामी ने भारत द्वारा अमेरिका के फैसले के खिलाफ वोट करने की निंदा की है। बीजेपी सांसद ने कहा कि यरूशलम मुद्दे पर अमेरिका के खिलाफ मतदान करके भारत ने एक बड़ी गलती की है।

    यरूशलम भारत अमेरिका

    गौरतलब है कि स्वामी इजरायल के समर्थक है। स्वामी ने कहा कि मुस्लिम देश फिलीस्तीन ने कभी भी कश्मीर मामले पर भारत का साथ नहीं दिया है। ऐसे में उसका समर्थन नहीं करना चाहिए।

    इससे पहले ट्रम्प के फैसले का भी स्वामी ने स्वागत किया था। ये नेता भारत के इस कदम की आलोचना कर रहे है। लेकिन भारत सरकार ने ट्रम्प के फैसले के खिलाफ जाकर बहुमत के हिसाब से अपना निर्णय लिया है। अब देखना यह है कि ट्रम्प के फैसले के खिलाफ जाना भारत पर क्या असर डालता है।