यमन में शांति के कई प्रयासों जंग की स्थिति बनी हुई है। यमन की जंग में अमेरिका सऊदी नेतृत्व का समर्थन रखना जारी रखेगा। अमेरिका यमन में ईरान के प्रभुत्व को कम करने और इस्लामिक चरमपंथ को खत्म करने के लिए कार्य करता रहेगा। बीते 2 अक्टूबर को तुर्की के इस्तांबुल में सऊदी अरब के दूतावास में पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या हो गयी थी। इसके बाद दबाव में अमेरिकी प्रशासन अपने घरेलू दबाव में आ गया था।
पिछले माह सीनेट में यमन में अमेरिकी सेना के सहयोग के खिलाफ एक प्रस्ताव लाया गया था। इसमें पश्चिमी समर्थित सुन्नी मुस्लिमों का गठबंधन के साथ सूचना साझा करना और हथियार मुहैया करना भी था। अमेरिकी उप सहायक सचिव टिमोथी लान्देर्किंग ने कहा कि हमारे प्रशासन पर दबाव है…या तो इस गठबंधन का सहयोग न करे या इस विवाद से पीछे हट जाए, जिसकी हम मजबूती से खिलाफत करते हैं।
उन्होंने कहा कि हमें यकीन है कि इस गठबंधन का सहयोग जरुरी है। उन्होंने कहा कि सहयोग वापस लेने से गलत सन्देश जायेगा। हाल ही में सऊदी अरब ने अमेरिका के बेस से अपने जहाजों में ईंधन न भरने के फैसले का ऐलान किया था।
अमेरिकी सहायक सचिव ने कहा कि शांति वार्ता इस विवाद के अंत का पहला पड़ाव है। इस विवाद के कारण लाखो लोग मारे गए हैं और लाखों भी भुखमरी में जीवन यापन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हम यमन को स्थिर और संयुक्त देखना की इच्छा रखते हैं न कि उसे अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्थिरता में बहता रहना देने चाहते हैं। उन्होंने कहा कि सऊदी अरब और यूएई का गठबंधन यमन में अल कायदा और इस्लामिक चरमपंथियों का विनाश कर देगा।
यमन दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण तेल टैंकर के व्यापार मार्ग रेड सी से लगता है। यह विवाद मुख्यतः सऊदी अरब और उस कट्टर दुश्मन ईरान के बीच कथित जंग है। यमन के हूथी विद्रोहियों को तेहरान का समर्थन प्राप्त है जबकि यमन की सरकार की सेना को यूएई-सऊदी गठबंधन का समर्थन है।
हौथी विद्रोहियों ने सबसे अधिक जनसंख्या वाले शहर सना पर अपने नियंत्रण के लिए सऊदी अरब के शहरों पर मिसाइल हमले किये थे, जब साल 2014 में हादी की सरकार बर्खास्त हुई थी।