“हल्की-फुल्की सी है ज़िन्दगी बोझ तो ख्वाहिशों का है।”, सार्थक दासगुप्ता की इस कहानी को देखकर पियूष मिश्रा की ये पंक्तियां याद आ जाती हैं। हम जहाँ भी हैं जैसे भी हैं, ज़िन्दगी बड़ी खूबसूरत है। फर्क है तो नज़रिये का।
कुछ बड़ा पाने की चाहत में, बड़े ख्वाबों के पीछे भागते हुए कई बार हम जीना ही भूल जाते हैं और यह भी भूल जाते हैं कि हमारे पास जो कुछ है वही दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ है।
और जिन्हे अपनी मंजिल मिल जाती है वे वहां खुश नहीं हैं और जिन्हे नहीं मिल पाती वे यहाँ खुश नहीं हैं। लेकिन हम एक छोटी सी बात नहीं समझ पाते कि ज़िन्दगी में हर रोज़ मिलने वाली छोटी-छोटी खुशियां ही सबसे बड़ी बात है।
हर इंसान अपनी ज़िन्दगी में किसी न किसी चीज़ से जूझ रहा है। अपने स्तर पर एक बड़ी लड़ाई लड़ रहा है और नाखुश भी है। कभी हालत साथ नहीं देते हैं तो कभी लोग और किसी की भी ज़िन्दगी सम्पूर्ण नहीं है।
लेकिन इस असम्पूर्णता से पीछे रोते हुए अपनी ज़िन्दगी खर्च कर देना कोई बुद्धिमानी नहीं है। और यदि हम इस छोटी सी बात को समझ लें और वर्तमान में जीना सीख लें तो शायद ज़िन्दगी के इस खालीपन में भी एक भराव नज़र आएगा।
और हमें सही मायने में संतोष और सुख का एहसास हो पाएगा। मानव कौल, दिव्या दत्ता और नीना गुप्ता द्वारा अभिनीत ‘म्यूजिक टीचर’ में इंसान के दिन-प्रतिदिन के संघर्षों और खूबसूरती को बड़ी ही बारीकी से बुना गया है और यह भी स्पष्ट है कि ये सभी दुख कहीं न कहीं हमारी महत्वाकांक्षाओं से जुड़े हुए हैं।
बेनी माधव सिंह जो एक गायक है और मुंबई जाकर अपने सपनों को सच करना चाहता है, को पिता की अचानक हुई मृत्यु की वजह से वापस अपने गांव लौटना पड़ता है। उसके पिता भी एक जाने-माने गायक हुआ करते थे।
यहाँ वह कुछ ही दिन रहना चाहता है और इस समय को काटने के लिए वह म्यूजिक क्लासेज देने की सोचता है। इसी कड़ी में उसकी मुलाक़ात ज्योत्सना से होती है जो आगे चलकर उसकी स्टूडेंट और प्रेमिका भी बनती है।
दोनों की कहानी को पर्दे पर देखना इस फिल्म की तरह ही एक खूबसूरत एहसास है। प्यार की मासूमियत को फिल्म में शानदार तरीके से दिखाया गया है कि किरदारों के बिना कुछ बोले और बिना किसी अंतरंग दृश्यों के ही आपको यकीन हो जाता है कि दोनों एक दूसरे से प्यार करते हैं।
जोनाइ चाहती है कि बेनी उससे शादी कर ले और दोनों हमेशा एक साथ रहें। बेनी भी कुछ ऐसी ही चाहता है लेकिन इसके बीच उसकी महत्वाकांक्षाओं की दिवार है। वह चाहता है कि जोनाइ म्यूजिक कॉन्ट्रैक्ट साइन करे, मुंबई जाए और करियर बनाए। बेनी को लगता है कि यही उन दोनों के लिए अच्छा है।
इसी बात को लेकर दोनों में मतभेद होते हैं और जोनाइ मुंबई चली जाती है जिसके बाद बेनी को पीछे मुड़ कर नहीं देखती है और बेनी 8 सालों बाद भी रोज़ इसी बात पर घुटता है।
फिल्म के सभी किरदार सलीके से लिखे गए हैं और कोई भी घटना बिना मतलब के नहीं घटित होती है। गीता जो बेनी की दोस्त है उसके पति ने उसे छोड़ दिया है जो बात उसने अबतक किसी को भी नहीं बताई है।
गीता बेनी और उसके संगीत दोनों को ही पसंद करती है। इन दोनों का रिश्ता कॉम्प्लीकेटेड होने के बावजूद एक सुकून का एहसास देता है।
बेनी के उसकी माँ और बहन के साथ भी रिश्ते ठीक नहीं हैं क्योंकि बेनी खुद खुश नहीं रहता। वह हमेशा जोनाइ, जो अब एक बहुत बड़ी स्टार बन चुकी है, को भूलना चाहता है लेकिन हर बार कहीं न कहीं से उसका नाम बेनी के सामने आ ही जाता है जो उसे अतीत में खींचकर ले जाता है।
फिल्म का अंत सबसे दिलचस्प है क्योंकि न तो यह एक हैप्पी एंडिंग है और न ही सैड बल्कि इसे आप एक परफेक्ट एंडिंग कह सकते हैं।
कलाकारों के अभिनय की बात करें तो सभी ने अपनी-अपनी जगह अच्छा किया है परन्तु मानव कौल ने कमाल कर दिया है। जिस तरह से उन्होंने अपने किरदार के छोटे-छोटे भावों में जान भरी है, वह काबिल-ए-तारीफ़ है। एक ही दृश्य में कई भावों को एक साथ दिखाना और साथ ही ओवरएक्टिंग न करना वाकई में कठिन काम है जो मानव जैसा काबिल अभिनेता ही कर सकता है।
नीना गुप्ता का किरदार सहज और सुन्दर है और दिव्या दत्ता ने हर बार की तरह इस बार भी निराश नहीं किया है। दिव्या इतने खूबसूरत किरदार चुनती हैं और उन्हें इतनी ईमानदारी से करती हैं कि उन्हें फिल्मों में देखना किसी ट्रीट से कम नहीं होता है।
ज्योत्सना यानि कि जोनाइ के किरदार में हैं अमृता बागची। उनका अभिनय भी उतना ही मासूम है जितनी वह खुद हैं। मानव कौल के साथ उन्हें देखना एक अच्छा अनुभव है।
फिल्म की कहानी की बात करें तो यह अच्छे से लिखी गई है। कहानी और डायलॉग सार्थक दासगुप्ता और गौरव शर्मा ने मिलकर लिखे हैं जो अंत तक आपको बांध कर रखती है और इसमें कोई भी खामी नज़र नहीं आती।
इसमें कई बड़े ही दमदार एंगल डाले गए हैं जो सोचने पर मज़बूर कर देते हैं। जैसे गुस्सा किसी भी व्यक्ति के जीवन को कहाँ से कहाँ ले जा सकता है और यह कितना घातक हो सकता है। हर व्यक्ति को किसी न किसी चीज़ का इंतज़ार है लेकिन इंतज़ार की अपनी खूबसूरती है, यह कम ही लोग जान पाते हैं।
फिल्म का निर्देशन भी बड़ी ही खूबसूरती से किया गया है। फिल्म का सेट, फिल्म की कहानी, किरदार, उनकी भावनाएं, सब बहुत खूबसूरत हैं और उससे भी ज्यादा सुन्दर है फिल्म का संगीत।
कई बार जब निर्माता म्यूजिकल जर्नी पर फ़िल्में बनाते हैं तो उनका ध्यान संगीत पर ज्यादा होता है और वह स्टोरी लाइन या फिर इस तरह की चीज़ें मिस कर देते हैं लेकिन इस फिल्म में कुछ भी मिसिंग नहीं है।
फिल्म की म्यूजिकल जर्नी भी उतनी ही खूबसूरत है जितनी इसकी कहानी, इसका निर्देशन या फिर इसमें कलाकारों का अभिनय।
खूबसूरत वादियों में जब ‘रिम झिम गिरे सावन’ जैसा क्लासिकल गीत सुनने के लिए मिले और ऊपर से उसमें मानव कौल की क्लासिक एक्टिंग दिखे तो दर्शकों को और क्या चाहिए?
तो यदि आप इस सप्ताह कोई अच्छी फिल्म देखना चाहते हैं और सिनेमाघरों में भी जाना नहीं चाहते तो नेटफ्लिक्स पर रिलीज़ हुई ‘म्यूजिक टीचर’ आपके लिए उतनी ही परफेक्ट चॉइस है जितनी कि यह फिल्म है, जो बताती है कि दुनिया में कुछ भी परफेक्ट नहीं है।
टिपण्णी- मानव कौल की खुद की बहुत खूबसूरत आवाज़ है और ऐसे में उन्हें किसी और की आवाज़ के गानों में लिप्सिंग करते देखना थोड़ा अजीब लगता है लेकिन अब सब कुछ वह खुदी तो नहीं कर सकते न।
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