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    Myanmar protesters residing in Japan hold photos of Aung San Suu Kyi as they rally against Myanmar's military after seizing power from a democratically elected civilian government and arresting its leader Aung San Suu Kyi, at United Nations University in Tokyo, Japan February 1, 2021. REUTERS/Issei Kato

    भारत के पड़ोसी देश म्यांमार में राजनीतिक संघर्ष का दौर जारी है। वहां के राष्ट्रपति को सेना ने हिरासत में ले लिया है और सेना ने सत्ता अपने हाथ में ले ली है। वहां सैन्य तख्तापलट हो चुका है। इस तख्तापलट पर अमेरिका की प्रतिक्रिया आई है। हाल ही में अमेरिका के राष्ट्रपति बने जो बाइडेन ने म्यांमार में जो हुआ उसको लोकतंत्र पर हमला बताया है। साथ ही जो बाइडन ने यह भी कहा है कि यदि सैन्य तख्तापलट की स्थिति बरकरार रहती है और शीर्ष नेताओं को रिहा नहीं किया जाता तो म्यांमार पर कड़े प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।

    म्यांमार में सामान्य लोगों के लिए इंटरनेट और कॉलिंग व्यवस्था बंद हो चुकी है। मीडिया भी सेना के कब्जे में है और देश के कई शीर्ष नेता हाउस अरेस्ट किए जा चुके हैं। सेना ने सत्ता अपने हाथों में ली हुई है और 1 साल तक के लिए आपातकाल की घोषणा कर दी है। वहां की सड़कों पर सन्नाटा है लेकिन बहुत सी जगहों पर छोटे-मोटे विरोध प्रदर्शन देखें जा रहे हैं। सांसद अपने ही घरों के भीतर बंद हो चुके हैं।

    भारत पर भी इस राजनैतिक अस्थिरता का प्रभाव पड़ सकता है। म्यांमार भारत का पड़ोसी है देश है और भारत की विदेश नीतियों का भी एक अहम हिस्सा है। ऐसे में वहां सैन्य तख्तापलट होना भारत की सुरक्षा के लिए भी एक बड़ा मुद्दा हो सकता है। म्यांमार में इंटरनेट बंद है लेकिन लोग ऑफलाइन ऐप के सहारे दूसरे से जुड़ रहे हैं। ब्रजफाई ऐप को म्यांमार में बड़ी संख्या में डाउनलोड किया गया है। ऐसा अंदेशा जताया जा रहा है कि वहां के लोग इस ऐप के सहारे सेना के खिलाफ कार्यवाही शुरू कर सकते हैं।

    म्यांमार की सेना के बहुत सी विदेशी कंपनियों से भी संबंध बताए जा रहे हैं। ऐसी चर्चाएं सामने आ रही है कि सेना सत्ता हथियाने के बाद अब सत्ता की मजबूती के लिए बहुत से विदेशी कंपनियों के साथ मिलकर काम करने वाली है। हालांकि दुनिया के बहुत से देशों ने इसका विरोध किया है और अमेरिका ने म्यांमार को प्रतिबंधित करने की चेतावनी भी दी है। लेकिन इसके बाद भी चीन और रूस म्यांमार की सेना के समर्थन में हैं।

    संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इस घटना के खिलाफ प्रस्ताव पेश किया गया लेकिन चीन और रूस ने इसका विरोध किया है। म्यांमार की राजधानी में सरकारी इमारतों में सैनिकों ने घेराबंदी की हुई है और टीवी चैनलों के प्रसारण को भी रोक दिया गया है। वहां की सबसे कद्दावर नेता आंग सान सू की मानवाधिकारों के लिए लड़ने वाली नेता मानी जाती हैं और उन्होंने 2015 में भी पूर्ण बहुमत के साथ चुनाव जीता था। वही वहां के सैन्य प्रमुख रोहिंग्याओं की हत्या के लिए जाने जाते हैं। उनकी क्रूरता के किस्से पूरी दुनिया में हैं। उन पर आरोप है कि उनकी सेना ने रोहिंग्या पर काफी अत्याचार करे हैं और बहुत से रोहिंग्याओं को मारा भी है। उन्होंने उनपर पर इतने अत्याचार किए कि इसके बाद उन्हें बांग्लादेश समेत अन्य देशों में भागकर अपनी जान बचानी पड़ी है।

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