मेघालय के न्यायाधीश ने बीते सितम्बर को हिन्दू समुदाय से सम्बंधित बयान दिया था जिस पर कार्रवाई के लिए शीर्ष अदालत तैयार हो गया है। न्यायाधीश सुदीप रंजन ने अपने आदेश में भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए, कहा था। उन्होंने कहा कि उपमद्वीप का बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ था, पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक राष्ट्र घोषित कर दिया है तो भारत को खुद को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए।
सर्वोच्च अदालत इसकी समीक्षा करेगा कि क्या हिन्दू राष्ट्र वाला आदेश पलटा या मेघालय अदालत को नोटिस भेजा जाना चाहिए। कई वरिष्ठ वकीलों, सेवानिवृत्त जजों और राजनीतिक दलों ने उनके इस बयान की आलोचना की थी।
न्यायाधीश का स्पष्टीकरण
इसके बाद जज सुदीप रंजन सेन ने अपने बयां को स्पष्ट करते हुए कहा कि “मैं किसी राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित नहीं था। मैं किसी सियासी दल से सम्बंधित नहीं हूँ और न ही मेरा सपना है कि रिटायरमेंट के बाद मैं किसी पार्टी का हिस्सा बनू। मेरा आदेश न ही राजनीति से प्रेरित था और न किसी दल के प्रभावित था।”
उन्होंने कहा था कि विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था और भारत को भी खुद को हिन्दू राष्ट्र बनाना चाहिए था, लेकिन भारत अभी तक एक धर्म निरपेक्ष राष्ट्र है। उन्होंने ने कहा कि राष्ट्रीय नागरिक पंजीकृत कार्यक्रम भी त्रुटिपूर्ण है, क्योंकि कई विदेशी भारतीय बन रहे हैं लेकिन असल भारतीय बाहर किये जा रहे हैं। उन्होंने असम के हिन्दूओं से एकजुट होकर इस मसले का समाधान निकालने की दरख्वास्त की है। उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति, धर्म और परम्पराएं एक जैसी है। उन्होंने कहा कि भाषा के आधार पर हमें एक-दूसरे से नफरत नहीं करनी चाहिए।
न्यायाधीश का बयान
न्यायाधीश एसआर सेन ने कहा कि इन देशों से आये हिन्दुओं, सिखों, जैन, बौद्ध, पारसी, क्रिस्चियन, खासिस, जिंतिय्स और गारो को नागरिकता दी जाए। न्यायाधीश ने कहा कि मैं सम्मानीय प्रधानमन्त्री, गृह मंत्री, कानून मंत्री व अन्य सांसदों से विनती करना चाहूँगा कि इन देशों से आये लोगों को यहाँ सुकून से जीवन यापन करने दिया जाए। उन्होंने कहा कि इन लोगों को बिना दस्तावेजों और सवालों के नागरिकता मुहैया की जाए।
मेघालय के जज के इस बयान पर बिगड़ते हुए एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि भारत को एक हिन्दू राष्ट्र बने रहने की उनकी टिप्पणी अस्वीकार है। हैदराबाद से सांसद ने कहा कि न्याय तंत्र और सरकार को इस आदेश को लिखकर रखना चाहिए, क्योंकि यह नफरत फैलाने वाला आदेश है।