वर्तमान में मालदीव व भारत के बीच में द्विपक्षीय संबंधों में कमजोरी देखी गई है। मालदीव ने चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर गुपचुप तरीके से भारत के हितों को दरकिनार करते हुए हस्ताक्षर किए थे। जिसके बाद भारत ने मालदीव को आपत्ति जताई थी। इसके अलावा कई ऐसी घटनाएं भारत व मालदीव के परिपेक्ष्य में हुई है जिससे दोनों देशों के बीच में तनाव देखा गया था।
भारत व मालदीव के बीच संबंधों को शांत व तनावमुक्त करने के लिए अब मालदीव ने उच्च स्तर की द्विपक्षीय वार्ता के बारे में भारत से पूछा है। मालदीव ने भारत सरकार को उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल की मेजबानी करने का प्रस्ताव भेजा है। संभावना जताई जा रही है कि मालदीव द्विपक्षीय वार्ता के लिए उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल को आमंत्रित कर सकता है।
एक रिपोर्ट में कहा गया है कि दोनों देशों के बीच में बातचीत की रूपरेखा को अभी अतिंम रूप नहीं दिया गया है। संभावना है कि अगले महीने भारत का उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल मालदीव की यात्रा कर सकता है।
मालदीव के विदेश मंत्रालय के उप मंत्री इनाया ने बताया कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की मालदीव में संभावित यात्रा के लिए भारतीय पक्ष के साथ व्यापक चर्चा हुई थी लेकिन शायद पीएम मोदी नहीं आ सके। पिछले कुछ समय से ऐसे कई कारण सामने आए है जिससे दोनों देशों के बीच दूरियां बढ़ी है।
भारतीय राजदूत से मुलाकात के बाद सदस्यों को किया था निलंबित
गौरतलब है कि दोनों देशों के बीच में पिछले कुछ समय में ऐसे वाकया देखे गए है जिससे भारत-मालदीव के बीच संबंधों में दरार आई है।
मालदीव के स्थानीय निकाय के तीन सदस्यों ने भारतीय राजदूत अखिलेश मिश्रा के साथ मुलाकात की थी जिसके बाद मालदीव सरकार ने तीनों सदस्यों को निलंबित कर दिया था। इसके पीछे मालदीव ने कहा कि ये मुलाकात नियमों की अवहेलना करते हुए बिना मंजूरी के हुई थी।
चीन के साथ मुक्त व्यापार संबंधों पर हस्ताक्षर से हुआ तनाव
मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन का झुकाव चीन के प्रति अधिक रहता है। भारत के साथ हितों को दरकिनार करते हुए मालदीव ने चीन के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर किए थे। जिस पर भारत के विदेश मंत्रालय ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि मालदीव को भारत के रिश्तों व हितों का भी ध्यान रखना चाहिए।
इसके अलावा हिंद महासागर में भी चीन की उपस्थिति बढ़ाने पर सहमति जताई थी। प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा था कि हम मालदीव में लोकतंत्र, विकास और स्थिरता का समर्थन करने के लिए भी प्रतिबद्ध है। इसके लिए मालदीव को भी हमारे प्रति संवेदनशील होना पड़ेगा।
मालदीव के अखबार ने पीएम मोदी के बारे में लिखा था अपमानजनक
कुछ दिनों पहले मालदीव सरकार के समर्थित एक अखबार मे भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक संपादकीय लिखा था। इसमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुस्लिम विरोधी व अतिवादी हिंदू बताया गया था।
इस संपादकीय का विरोध भारत समेत मालदीव के विपक्षी नेताओं ने भी किया था। बाद में राष्ट्रपति यमीन ने इस संपादकीय को सरकार समर्थित होने से इंकार कर दिया था और भारत को निकटतम मित्र और सहयोगी बताया था।
अब देखना यह है कि भारत व मालदीव के बीच में द्विपक्षीय वार्ता के बाद दोनों देशों के संबंधों में क्या बदलाव आते है।
मालदीव क्यों जरूरी है भारत के लिए
- दरअसल मालदीव व भारत के बीच में कुछ सालों पहले तक रिश्ते अच्छे थे। लेकिन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यमीन के सत्ता में आने के बाद संबंधों में गिरावट देखी गई है। इसलिए भारत को यमीन के साथ भी संबंध मजबूत करने चाहिए।
- हिंद महासागर में स्थित देश मालदीव के ऊपर चीन की पैनी नजर है। चीन यहां पर अपना प्रभुत्व बढ़ाना चाह रहा है। भारत को चीन का प्रभाव रोकने के लिए मालदीव के साथ नजदीकियां बढ़ाना जरूरी है।
- मालदीव सरकार ने बिना किसी को बताए व भारतीय हितों को दरकिनार कर बीजिंग के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किए है जो कि भारत के लिए चिंता का विषय है।
- मालदीव पहले से ही चीन के कर्ज तले करीब 70 प्रतिशत तक डूबा हुआ है। चीन, मालदीव की हालत भी श्रीलंका व पाकिस्तान की तरह करना चाहता है। इसलिए भारत को चीन के कर्जों से इसे छुटकारा दिलाना होगा।
- भारत को डर है कि कहीं श्रीलंका के बाद मालदीव से भी दूरी न बढ़ जाए। इसलिए भारत, मालदीव के ऊपर अधिक सख्ती नहीं दिखा रहा है।