प्रवर्तन निदेशालय ने गुरुवार को बसपा प्रमुख मायावती के कार्यकाल के दौरान 1,400 करोड़ रुपये के स्मारक घोटाला के कारण उत्तर प्रदेश के छह जगहों पर छापा मारा है। इससे पहले, पूर्व सीएम अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल के अफसरों और मंत्रियों पर भी रेत खनन घोटाला के मामले में सीबीआई की रेड पड़ी थी।
अधिकारियों के अनुसार, कई नौकरशाह भी ईडी के निशाने पर हैं। लखनऊ के यूपी निर्माण निगम के तत्कालीन एमडी सीपी सिंह के घर पर अधिकारियों द्वारा कथित घोटाले में शामिल अधिकारियों और ठेकेदारों के ठिकानों की तलाशी ली गई थी।
पांच महीने पहले, अलाहाबाद हाई कोर्ट ने कथित स्मारक घोटाला की सतर्कता रिपोर्ट की स्थिति के बारे में पूछताछ की थी। साथ ही कोर्ट ने प्रशासन को आदेश दिया था कि किसी भी मुजरिम को नहीं छोड़ा जाये। उस वक़्त, मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले और न्यायाधीश यशवंत वर्मा मामले की सुनवाई कर रहे थे।
यूपी लोकायुक्त ने मायावती के कार्यकाल में, पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबु सिंह कुशवाहा के साथ साथ 197 अन्य लोगों को लखनऊ और नॉएडा में दलित स्मारक के लिए बलुआ पत्थर की खरीददारी में हेरा-फेरी का दोषी पाया था।
इसके लिए, लोकायुक्त ने 88 पन्नो की रिपोर्ट, पूर्व सीएम अखिलेश यादव को दी थी मगर उन्होंने पर्याप्त सबूत ना होने के कारण मायावती और उनके नौकरशाह को बरी कर दिया था।
जहाँ एक तरफ, सिद्दीकी बसपा छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए हैं, वही दूसरी तरफ कुशवाहा को पार्टी से निकाल दिया गया जब उनका नाम राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के कुख्यात घोटाला में आया। सिंह फ़िलहाल मामले के सिलसिले में जेल की सजा काट रहे हैं।
लोकायुक्त की रिपोर्ट में ये भी लिखा गया है कि करीबन 4,188 करोड़ रूपये स्मारक के पत्थर की खरीद और पूरा होने में खर्च किये गए जिसमे से 35% नौकरशाह, राजनेताओं, ठेकेदारों और इंजीनियरों की जेब में गए। लोकायुक्त की रिपोर्ट में 199 लोगों के खिलाफ जांच की सिफारिश की गई और यह भी कहा गया कि रिपोर्ट में नामित 199 लोगों द्वारा कमीशन के सबूत थे।