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    मायावती योगी

    बसपा सुप्रीमो मायावती ने 18 सितम्बर को पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ में विपक्षियों को अपनी ताकत का एहसास कराने के लिए बसपा की शक्ति प्रदर्शन रैली का आयोजन किया है। इस रैली में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 3 मंडलों के शामिल होने की खबर है। इन 3 मंडलों में मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद के नाम शमिल है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश शुरुआत से ही बसपा के जनाधार का गढ़ रहा है और इस क्षेत्र में स्थित हापुड़ में बसपा सुप्रीमो मायावती का ननिहाल भी है। बसपा के राजनीतिक भविष्य के लिहाज से यह रैली काफी महत्वपूर्ण है। काफी वक्त से सियासी गलियारों में यह बात चल रही है कि बसपा का जनाधार खिसक चुका है और बसपा अब आधारहीन हो चुकी है। मायावती की मेरठ रैली को मिलने वाला समर्थन यह निर्धारित करेगा कि यह बातें कोरी अफवाह थी या इनका वास्तविकता से कुछ लेना-देना है।

    बुरे दौर से गुजर रही है बसपा

    राजनीतिक दृष्टिकोण से पिछले कुछ वर्ष बसपा के लिए बिल्कुल भी अच्छे नहीं गुजरे हैं। समाजवाद की लहर में 2012 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में पार्टी के हाथ से सत्ता छिन गई और वह विधानसभा में प्रमुख विपक्षी दल की भूमिका में रह गई। 2014 के लोकसभा चुनावों में बसपा ने अकेले दम पर चुनाव लड़ा और निराशाजनक रूप से उसे कहीं भी सफलता हाथ नहीं लगी। उम्मीद की जा रही थी कि 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों से बसपा वापसी करेगी और उभरकर सियासी पटल पर आएगी। मगर अफसोस, भाजपा की आँधी बसपा को अपने लक्ष्य से कहीं दूर उड़ा ले गई। उत्तर प्रदेश विधानसभा में बसपा विधायकों की संख्या 80 से घटकर 19 पर जा पहुँची। कभी मायावती के विश्वासपात्र रहे बसपा के कई बड़े नेता भाजपा में शामिल हो गए।

    केंद्र की सत्ताधारी भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए ने दलित कार्ड खेलते हुए उत्तर प्रदेश के कानपुर से ताल्लुक रखने वाले रामनाथ कोविंद को देश का राष्ट्रपति बनाकर बसपा के सबसे बड़े सियासी जनाधार में सेंधमारी कर ली और सूबे में पहले से ही मृतप्राय पड़े बसपा को और हाशिए की तरफ धकेल दिया। सहारनपुर में दलितों पर हो रहे अत्याचारों का मुद्दा बनाकर बसपा सुप्रीमो मायावती ने राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इस वजह से वह कुछ दिनों तक चर्चा में रही और उन्हें सभी विपक्षी दलों का समर्थन भी मिला। हालाँकि उनके इस्तीफे के बाद देश की सक्रिय राजनीति में बसपा की भूमिका ना के बराबर रह गई है और अब शायद उन्हें भी यह कदम खुद अपनी कब्र खोदने वाला लग रहा होगा।

    40 विधानसभा क्षेत्रों पर नजर

    मेरठ में आयोजित बसपा की रैली के जरिये बसपा सुप्रीमो मायावती मेरठ, सहारनपुर और मुरादाबाद मंडल की 40 विधानसभा सीटों के वोटरों को साधने की फिराक में हैं। इन सभी सीटों पर दलित वोटरों की दमदार उपस्थिति है और बसपा सुप्रीमो मायावती खुद दलितों की जाटव बिरादरी से आती हैं। बसपा जब भी उत्तर प्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई है उसमें इन 3 मंडलों का अहम योगदान रहा है। इस क्षेत्र को अब तक बसपा का गढ़ माना जाता रहा है और अगर हालिया विधानसभा चुनावों को छोड़ दें तो यह अवधारणा सत्य भी साबित होती है। बसपा कार्यकर्ता रैली में भीड़ जुटाने के लिए गाँव-गाँव घूमकर नुक्कड़ सभाएं कर रहे हैं और लोगों को जागरूक कर रहे हैं। वह योगी सरकार के कार्यकाल में सहारनपुर में दलितों पर हुए अत्याचार को भी प्रचारित कर बसपा के पक्ष में माहौल बनाने की जुगत में हैं।

    बसपा सुप्रीमो मायावती की इस रैली को 2019 के लोकसभा चुनावों से जोड़कर भी देखा जा रहा है। राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद मायावती पार्टी की जड़ों को मजबूत करने में जुटी हुई थी और और इस्तीफे के बाद यह उनकी पहली रैली है। शुरुआत उन्होंने बसपा के गढ़ से की है और रैली स्थल पर तीनों मंडलों के कार्यकर्ताओं के लिए अलग-अलग ब्लॉक बना दिए गए हैं। मायावती यह भी देखेंगी कि किस मंडल के कार्यकर्ता ज्यादा सक्रिय है और ज्यादा भीड़ जुटाने में सक्षम है। इसके आधार पर वह 2019 लोकसभा चुनावों के वक्त टिकट निर्धारण भी करेंगी। अनुमानतः रैली में 5 लाख लोगों की भीड़ जुटाने का लक्ष्य रखा गया है और इसके लिए बसपा कार्यकर्ता जी-जान से जुटे हुए हैं।

    सोशल इंजीनियरिंग से मजबूत सन्देश देने की कोशिश

    मेरठ की इस रैली के लिए बसपा ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का सोशल इंजीनियरिंग वाला फार्मूला अपनाया है। आम अवधारणा यही है कि बसपा का जनाधार सिर्फ दलित वर्ग तक ही सीमित है। इसे गलत साबित करने के लिए बसपा ने कमर कस ली है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में होने वाली समाज की बैठकों में बसपा कार्यकर्ता और पदाधिकारी जा रहे हैं और और दूसरे समाज की बैठकों में जाकर वह एकता का सन्देश भी दे रहे हैं। गुर्जर समाज की बैठकों में दलित और मुस्लिम समाज के नेता भी शिरकत कर रहे हैं। बसपा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट और गुर्जर समाज को लुभाने का हर संभव प्रयास कर रही है ताकि वह सामजिक एकता के बिंदु पर मंच पर कहीं कमजोर ना दिखे।

    उपचुनावों में उतरने का ऐलान कर सकती है बसपा

    उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के विधानपरिषद सदस्य बनने के साथ ही यह स्पष्ट हो गया था कि आगामी 6 महीनों के भीतर उत्तर प्रदेश में लोकसभा उपचुनाव होंगे। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले 5 बार से गोरखपुर से लोकसभा सांसद थे वहीं उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने 2014 के लोकसभा चुनावों में फूलपुर की अहम सीट जीती थी। फूलपुर की लोकसभा सीट पर दलित, अल्पसंख्यक और पिछड़े तबके का बड़ा जनाधार है और वर्तमान हालातों में बसपा मायावती एक मजबूत दावेदार बन सकती हैं। यह सीट बसपा के लिए काफी मायने रखती है और यहाँ से बसपा संस्थापक कांशीराम ने 1996 में चुनाव भी लड़ा था। हालाँकि उन्हें सपा के जंग बहादुर पटेल हाथों 16 हजार से अधिक मतों से शिकस्त खानी पड़ी थी।

    मायावती और केशव प्रसाद मौर्य
    उपचुनावों में उतरने का ऐलान कर सकती है बसपा

    राज्यसभा सदस्यता से इस्तीफा देने के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती सूबे में संगठन मजबूत करने में जुटी हुई थी और ऐसे में फूलपुर के संभावित उपचुनाव बसपा के लिए संजीवनी का काम कर सकते हैं। बसपा सुप्रीमो ने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की रैली में हिस्सा नहीं लिया था पर फिर भी फूलपुर के लोकसभा उपचुनावों के लिए अन्य विपक्षी पार्टियां उनका समर्थन कर सकती हैं। वर्तमान परिदृश्य और जातीय वोटों के गणित के हिसाब से मायावती फूलपुर लोकसभा सीट से काबिल उम्मीदवार हैं और उनकी उम्मीदवारी की दशा में विपक्ष के लिए जीत के हालात बन सकते हैं।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।