बीते दिनों कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में लाने के लिए पत्र लिखा था। उन्होंने लिखा था कि कांग्रेस भी महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में समर्थन देगी। इसके बाद से ही देश में एक बार फिर महिला आरक्षण बिल को लेकर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है। महिला आरक्षण बिल 9 मार्च, 2010 को कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के दौरान राज्यसभ में पास हो चुका है। उसके बाद मनमोहन सरकार ने इसे पूरे कार्यकाल के दौरान लोकसभा में पेश नहीं किया था। नियमों के अनुसार 15वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने के साथ-साथ ही इस बिल के पास होने की उम्मीदों ने भी दम तोड़ दिया था।
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी की पहल पर 9 मार्च, 2010 को राज्यसभा में विपक्ष के भरी शोर-शराबे, विरोध और निलंबन के बाद महिला आरक्षण बिल को मंजूरी मिली थी। इसकी पृष्ठभूमि तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने 4 जून, 2009 को 15वीं लोकसभा के पहले संयुक्त अधिवेशन के दौरान रखी थी। उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार आगामी 100 दिनों के भीतर महिला आरक्षण बिल को पास कराएगी क्योंकि इसकी वजह से महिलाओं को कई जगहों और अवसरों से वंचित रहना पड़ रहा है। मनमोहन सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान यह माना जा रहा था कि 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद संसद में एक तिहाई महिला सांसद पहुँचेंगी पर एक बार फिर यह सपना ही बनकर रह गया। 15वीं लोकसभा भंग होने के साथ ही संविधान के अनुच्छेद 107 (5) के तहत लोकसभा में विचाराधीन सभी बिल भी खत्म हो गए।
43 साल पुरानी है महिला आरक्षण बिल की मांग
महिला आरक्षण बिल की मांग 43 साल पुरानी है। आजादी मिलने के 27 सालों बाद वर्ष 1974 में पहली बार संसद के समक्ष महिलाओं के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठा था। देश में महिलाओं के आंकलन सम्बन्धी सम्बन्धी समिति की रिपोर्ट में इसका जिक्र किया गया था। रिपोर्ट में राजनीतिक इकाइयों में महिलाओं की काम सहभागिता का जिक्र किया गया था। राजनीतिक इकाइयों में महिलाओं की सहभागिता बढ़ाने के लिए पंचायतों और स्थानीय निकायों में महिलाओं के सीट आरक्षित करने का सुझाव दिया गया था। इस सुझाव को मूर्त रूप लेने में तकरीबन 20 साल लग गए। वर्ष 1993 में भारतीय संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के तहत पंचायत और नगर पालिका चुनावों में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया गया।
महिला आरक्षण बिल को पहली बार एच डी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितम्बर, 1996 को भारतीय संविधान के 81वें संशोधन विधेयक के रूप में संसद के समक्ष पेश किया। इसके तुरंत बाद ही देवगौड़ा सरकार अल्पमत में आ गई और 11वीं लोकसभा को भंग कर दिया गया। इस विधेयक को सीपीआई सांसद गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया। इस समिति ने कुछ संशोधनों के साथ 9 दिसंबर, 1996 को इस विधेयक पर अपनी रिपोर्ट लोकसभा के समक्ष रखी। इस रिपोर्ट में सुझाए गए प्रमुख संशोधन नीचे वर्णित हैं –
– रिजर्वेशन की अवधि 15 साल
– ऐंग्लो-इंडियन के लिए सब-रिजर्वेशन
– तीन से कम लोकसभा सीटों वाले राज्यों में भी आरक्षण
– ओबीसी महिलाओं के लिए सब-रिजर्वेशन
– “एक तिहाई से कम नहीं” की जगह “करीब एक तिहाई” व्यवस्था
– दिल्ली विधान सभा में भी आरक्षण
– राज्यसभा और राज्य विधान परिषदों में भी आरक्षण
महिला आरक्षण बिल की पक्षधर थी अटल सरकार
अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार महिला आरक्षण बिल की पक्षधर थी। अटल सरकार ने कई बार महिला आरक्षण बिल को पास कराने की कोशिश की पर उसे सफलता हाथ नहीं लगी। महिला आरक्षण बिल के प्रमुख विरोधियों में समाजवादी पार्टी और आरजेडी प्रमुख थी। महिला आरक्षण बिल के विरोध में मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव और शरद यादव एकजुट हो गए थे और इस जातीय एकजुटता के फलस्वरूप बिल पास नहीं हो सका था। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने सबसे पहले 12वीं लोकसभा में 26 जून, 1998 को महिला आरक्षण बिल को भारतीय संविधान के 84वें संशोधन के रूप में पेश किया था लेकिन विपक्ष के विरोध के चलते यह पासनाही हो सका था। इसके तुरंत बाद अटल सरकार अल्पमत में आ गई थी और और सरकार गिरने की वजह से 12वीं लोकसभा भंग हो गई थी।
13वें लोकसभा चुनावों के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार पुनः सत्ता में लौटी थी और उसने 22 नवंबर, 1999 को महिला आरक्षण बिल पेश किया था। विपक्षी दलों के विरोध के चलते यह बिल एक बार फिर पास नहीं हो सका था। वर्ष 2002 और 2003 में भी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में पेश किया पर सभी दलों के एकमत ना होने की वजह से उसे बिल पास कराने में सफलता हाथ नहीं लगी। आगामी लोकसभा चुनावों में एनडीए सरकार को शिकस्त हाथ लगी और एक बार फिर महिला आरक्षण बिल आधार में लटक गया।
भाजपा के सहयोग से राज्यसभा में पास हुआ था बिल
9 मार्च, 2010 भारतीय संसद के लिए ऐतिहासिक दिन था। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस दिन राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पेश किया। सपा, आरजेडी और अन्य दलों ने इस बिल का विरोध किया और राज्यसभा में भारी हंगामा किया। तब भाजपा, जेडीयू और वामपंथी दलों के सहयोग से कांग्रेस ने यह बिल राज्यसभा में भारी बहुमत से पास करा लिया। यह कई दिनों तक अखबारों की सुर्खियों में छाया रहा और इसे भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का नया अध्याय कहा गया। लेकिन सहयोगी दलों के विरोध और समर्थन वापसी की धमकियों की वजह से कांग्रेस ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया और 14वीं लोकसभा भंग होने के साथ-साथ बिल पास होने की उम्मीदें भी भंग हो गई।
मोदी सरकार के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकता है महिला आरक्षण बिल
महिला आरक्षण बिल को पास कराने की जिम्मेदारी अब मोदी सरकार पर है। लोकसभा में भाजपा के पास स्पष्ट बहुमत है और अगर एनडीए के सभी घटक दलों का साथ मिल जाए तो मोदी सरकार बिल को भारी बहुमत से पास करा सकती है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कांग्रेस के समर्थन को लेकर आश्वस्त कर चुकी हैं। हालाँकि उनके समर्थन ना करने की दशा में भी मोदी सरकार को कोई परेशानी नहीं आती। मोदी सरकार ने शुरुआत से महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया है और मोदी मन्त्रिमण्डल में विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री जैसे अहम पदों पर महिलाएं काबिज हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्रिपल तलाक जैसे संवेदनशील मामले पर मुस्लिम महिलाओं का पक्ष लेकर उनका विश्वास जीता है।
मोदी सरकार ने “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” योजना के माध्यम से कन्या भ्रूण हत्या रोकने और लड़कियों को शिक्षित करने की दिशा में व्यापक कदम उठाए हैं वहीं उज्ज्वला जैसी कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण महिलाओं के जीवनस्तर को सुधारने का काम किया है। महिलाओं को आत्मनिर्भर और स्वावलम्बी बनाने के लिए मोदी सरकार की मुद्रा योजना की देशभर में तारीफ हो रही है। अगर पिछली सरकारों की तुलना में देखें तो मोदी सरकार महिलाओं की सच्ची हितैषी नजर आती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर अपने भाषणों में महिला सशक्तिकरण का जिक्र किया करते हैं। ऐसे में अगर मोदी सरकार महिला आरक्षण बिल को लोकसभा में पेश कर पास करा ले तो यह उसके लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकता है। मोदी सरकार चुनाव से पूर्व महिला आरक्षण बिल को पास कराकर महिला सशक्तिकरण को 2019 लोकसभा चुनावों का मुख्य मुद्दा बना महिलाओं का अपार जनसमर्थन हासिल कर सकती है।