साल 2010 में आई फ़िल्म पिपली लाइव का यह गाना एक बार फिर लोगों के जुबान पर है। जब यह फ़िल्म और गाना रिलीज़ हुआ, तब केंद्र में सरकार थी कांग्रेस (UPA) की और विपक्ष में थी भाजपा (BJP)। इस गाने के बोल का विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने अपने राजनीतिक फायदे के लिए जमकर इस्तेमाल किया।
जनसाधारण के बीच “महंगाई” एक बड़ा चुनावी-मुद्दा बन गया। गैस सिलेंडर, पेट्रोल, डीजल और रोजमर्रा की जरूरतों वाली चीजों के दाम को लेकर भाजपा केंद्र की तत्कालीन कांग्रेस-सरकार (UPA) को घेरने के लिए सड़कों पर थी।
2014 का लोकसभा चुनाव आने लगा और जनता के बीच यह बात स्थापित हो गई कि महँगाई और तेल व गैस की बढ़ती क़ीमतें एक बड़ा मुद्दा है। भाजपा ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने के बाद महंगाई जैसे मुद्दों से जुड़े कई नारे भी दिए। जैसे- “बहुत हुई महंगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार….” या “पेट्रोल हुआ 70 (₹) के पार, अबकी बार मोदी सरकार…”
देश की जनता को इन नारों में भरोसा दिखा.. भरोसा ब्रांड मोदी का..भरोसा गुजरात मॉडल का… और 2014 के चुनाव परिणामों में मोदी लहर का ऐसा जादू चला कि फिर भाजपा सम्पूर्ण बहुमत से सरकार में आई और कांग्रेस (UPA) को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा।
अब दौर बदल गया था…सरकार बदल गयी थी….राजनीतिक धुरंधरों की पारी बदल गयी थी। जो तब सत्ता में थे …अब विपक्ष में आ गए और जो तब विपक्ष में थे, अब सत्ता उनके हाँथो में थी। जो चीज नहीं बदली, वह हैं- महंगाई, बेरोजगारी, गैस, पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतें आदि। ये सभी मुद्दे ज्यों का त्यों अपनी जगह तब भी थे, आज भी हैं।
जिस भाजपा (BJP) को महँगाई तब डायन लगती थी, आज उस मुद्दे पर सरकार का कोई नुमाइंदा बात करना नहीं चाहता है। अगर किसी ने मुँह खोला भी तो आज की महंगाई और बेतहाशा बढ़ती कीमतों का ठीकरा 2014 के पहले की सरकारों के माथे ही फोड़ने की कोशिश होती है।
महंगाई चरम पर… लेकिन “सब चंगा सी”
बढ़ती महंगाई के कारण आज आम जनता-खासकर निचले और मध्यम वर्गीय लोग का पूरा बजट हिल सा गया है। रसोई गैस, पेट्रोल और डीजल जैसे ईंधनों की कीमतों में इज़ाफ़ा होने के कारण हर जरूरत और रोजमर्रा की चीज महंगी हो गयी है। गर्मी का मौसम अभी बस शुरू हुआ है और फलों और सब्जियों की कीमतें आसमान छू रही हैं।
पहले बस प्याज रुलाती थी, अब नींबू भी…
न्यूज़ एजेंसी ANI के एक रिपोर्ट के मुताबिक फलों और सब्जियों के दामों में पूरे देश भर में जबरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है। नींबू जो गर्मी के दिनों में हर घर मे उपयोग होता है, उसकी थोक कीमतें 300-350₹/ KG तक चली गयी हैं वहीं खुदरा मूल्य 10₹/नींबू के आसपास है।
Uttarakhand | Vegetable & fruit sellers in Dehradun suffer loss amid price hike
“Customers aren’t coming in view of inflation. Lemons are Rs 200/kg… Only 2-3 vegetables like cucumber & pumpkin are inexpensive. The market is deserted,” said Hridesh K Rathore, a vegetable seller pic.twitter.com/Pm2pPohKFa
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) April 8, 2022
अब इन कीमतों के कारण ना सिर्फ खरीददार परेशान हैं बल्कि विक्रेताओं के लिए भी इन कीमतों पर फल और सब्जी बेचना दूभर हो रहा है। अगर ऐसे ही कीमतें बढ़ती रहीं तो आम लोगों की खाने की थाली से हरी सब्जी गायब हो जाएंगी है और थाली में बस दिखेगा बस मोदी जी का फ्री या सब्सीडी वाला अनाज।
पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों ने लगाई महंगाई में आग
पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों वाली खबर भारत की आम जनता के लिए अब रोजमर्रा की बात हो गयी गई। पिछले दो हफ़्तों में भारत के लोगों को 80 पैसे वाला पहाड़ा याद हो गया है। बीते 14 दिनों में इन ईंधनों की कीमतें लगभग 10₹/ली बढ़ी हैं।
अर्थशास्त्र का क,ख,ग.घ.. जानने वाला इंसान भी इस बात से वाकिफ़ है कि पेट्रोल, डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी का मतलब है- जरूरत की हर चीज की कीमतों में बढ़ोतरी। इसका असर अब लोगो के रोज की जिंदगी पर दिखना शुरू हो गया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे एक लेख में दुनिया भर के अर्थव्यवस्थाओं में तेल और अन्य ईंधनों की क़ीमतों की तुलना किया गया है। यह तुलनात्मक अध्ययन Purchasing Power of Currency पर आधारित है।
इस रिपोर्ट के अनुसार भारत मे LPG/लीटर की कीमत दुनिया के किसी भी देश की तुलना में सर्वाधिक है जबकि पेट्रोल की प्रति लीटर कीमत इसी तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर दुनिया मे तीसरे नम्बर पर है। अगर डीजल की बात करें तो प्रति लीटर कीमत आठवें नम्बर पर है।
महंगाई को लेकर विपक्ष का प्रदर्शन
कांग्रेस के कार्यकर्ता महंगाई और ईंधन की बढ़ती कीमतों को लेकर लगातार सड़कों पर है। पहले दिल्ली में यूथ कांग्रेस ने प्रदर्शन किया और उसके बाद देश-भर में अलग-अलग जगहों पर धरना-प्रदर्शन जारी है।
भाजपा निर्मित महंगाई के विरुद्ध कांग्रेस का युद्ध जारी है।@INCMaharashtra कार्यकर्ताओं ने प्रदेशाध्यक्ष @NANA_PATOLE व @bb_thorat के नेतृत्व में भाजपा निर्मित महंगाई के खिलाफ आवाज बुलंद की।
जनहित के मुद्दों पर कांग्रेस का संघर्ष जारी है..#MehangaiMuktBharat pic.twitter.com/0G0mFKhhVc
— Congress (@INCIndia) April 8, 2022
कांग्रेस के साथ साथ अन्य पार्टियां भी अब धीरे=धीरे विरोध प्रदर्शन शुरू कर दी हैं। बीते दिन आम आदमी पार्टी ने मुम्बई की सड़कों पर महंगाई के खिलाफ प्रदर्शन किया। बंगाल से TMC के सांसदों ने बजट सत्र के दौरान लोकसभा के बाहर इन्ही मुद्दों को लेकर विरोध जताया था।
AAP Mumbai protests at CST regarding continuous hike in Petrol and Diesel price in Maharashtra and all across the country. #PetrolDieselPriceHike pic.twitter.com/x8A2CIstxk
— AAP Mumbai (@AAPMumbai) April 7, 2022
महँगाई आज एक वैश्विक समास्या
पहले कोविड-19 के प्रकोप के कारण दुनिया भर के अर्थव्यवस्थाओं का अचानक से बंद हो जाना और उसके बाद बदलते वैश्विक राजनीति के कारण महंगाई आज न सिर्फ भारत में , बल्कि पूरी दुनिया में एक विकट समस्या बन गयी है।
महंगाई से निपटने के लिए दुनिया भर की सरकारें तरह-तरह के कदम उठा रही है। ऑस्ट्रेलिया में सरकार ने ईंधन के बढ़ती कीमतों के मद्देनजर कई तरह के प्रावधान किया है। वहाँ की जनता को 40 लीटर के टैंक को फुल करवाने पर 10 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर की छूट दी जाएगी और यह खर्च सरकार सेहन करेगी। इससे वहां की सरकार पर भारतीय रुपयों में 16,800 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आएगा।
इतना ही नहीं,बल्कि Cost of Living Payment के नाम से साठ लाख लोगों के खाते में 250 ऑस्ट्रेलियाई डॉलर दिया जाएगा और इन पैसों पर कोई आयकर नहीं लगेगा।
जर्मनी में भी पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले टैक्स में अगले 3 महीनों तक के लिए कटौती की गई है। पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कीमतों में भी कमी कर दी गयी है जिसे एक अच्छा कदम माना जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि जर्मनी या ऑस्ट्रेलिया ही दो ऐसे उदाहरण हैं बल्कि फ़्रांस, तुर्की और अन्य अर्थव्यवस्थाऐं भी कुछ ना कुछ ऐसे उपाय आम जनता के हित मे कर रहे हैं।
अगर बात भारत की करें तो इस नजरिया से राहत के नाम पर मुफ्त राशन जैसी योजना ही दिखाई देती है जिसके तहत 80 करोड़ (लगभग 60 फीसदी) आबादी को फ्री या बहुत कम कीमतों पर राशन दिया जा रहा है।
निःसंदेह इस योजना का लाभ बहुत लोगों को मिल रहा है और लोगों को बड़ी संख्या में भुखमरी जैसी स्थिति से बचाया जा रहा है। लेकिन बेतहाशा बढ़ती महंगाई और ईंधनों की कीमतों को काबू में रखने के लिए क्या यह काफी है? जबाब सीधा है- “नहीं “।
पेट्रोल या डीजल या CNG की कीमतों के बढ़ने से सिर्फ उन्हें ही समस्या हो जिनके पास गाड़ियां है, ऐसा नहीं है। ईंधनों की बढ़ती कीमतें जिसमें रसोई गैस भी है, आम-जनता के बजट पर सीधा असर डालती हैं। माल-ढुलाई से लेकर खेतीबाड़ी हो या मैन्युफैक्चरिंग लागत, ईंधन की बढ़ती कीमतों से हर चीज के दामों पर असर पड़ता है।
ऐसे में सरकार के पास एक्साइज ड्यूटी जैसे टैक्स को कम करने का विकल्प मौजूद है जिसे केंद्र और राज्य सरकारों को सोचना चाहिए। माना कि इंफ्रास्ट्रक्चर और अन्य विकास कार्यों के लिए सरकारों को भी पैसे चाहिए होते हैं और पेट्रोल डीजल आदि पर लगाये टैक्स उनकी आमदनी का अहम हिस्सा हैं; लेकिन ये वक़्त आम जनता को राहत देने का है।
महंगाई अब जनता के ऊपर हावी होते जा रही है और उनके बजट और थाली दोनों का संतुलन बिगड़ता जा रहा है। रसोई गैस, सब्जी, दाल आदि की बढ़ती कीमतों के कारण गृहणियों के जेहन में फिर से वही गाना आने लगा है जिसे लेकर 2010-14 तक भाजपा सड़को पर उतरती थी….- “सखी सइयां तो खूब ही कमात हैं, महंगाई डायन खाये जात है !”