आज-कल लोगों की जीवनशैली हर दिन बदलती जा रही है। लोग अपनी व्यस्त जीवनशैली के कारण ना ही अपने खान-पान पर ध्यान दे पा रहे है और ना ही अपने शारीरिक स्वास्थ्य पर।
परिणामस्वरूप लोगों को कई तरह की खतरनाक बीमारियों से गुजरना पड़ रहा हैं। कुछ का इलाज तो संभव है पर कुछ बीमारियों का कोई तोड़ नहीं। ऐसी ही एक खतरनाक बीमारी है ‘डायबिटीज’ यानी मधुमेह। आम भाषा में इसे ‘शुगर’ के नाम से जाना जाता है। इस लेख में हम आपको मधुमेह बीमारी की विस्तृत जानकारी प्रदान करेंगे।
डायबिटीज शरीर की वह अवस्था है जिसमें रक्त में चीनी की मात्रा बढ़ जाती है। चीनी को वैज्ञानिक या मेडिकल की भाषा में ग्लूकोज कहा जाता है। इसलिए वैज्ञानिक परिभाषा के अनुसार डायबिटीज शरीर की वह परिस्थिति है जिसमें मनुष्य के रक्त में ग्लूकोज का स्तर नियंत्रण या सामान्य स्तर से अधिक हो जाता है।
यह परिवर्तन इसलिए आवश्यक है क्योकि हमारा शरीर भोजन के जटिल कणों को ऊर्जा के रूप में उपयोग नहीं कर पाता है। परिवर्तित हुए इन आसान कणों को ‘ग्लूकोस’ कहा जाता है। ग्लूकोज ही वह स्रोत है जो शरीर की प्रत्येक कोशिका को ऊर्जा प्रदान करता है।
रक्त में मिश्रित ग्लूकोस को कोशिका तक पहुँचाकर उसका ऊर्जा के रूप में उपयोग करवाने का कार्य इंसुलिन नामक हॉर्मोन करता है। यह हॉर्मोन शरीर के अग्नाशय (पैंक्रियास) के द्वारा उत्पादित होता है। तो एक तरह से यह हॉर्मोन रक्त में ग्लूकोस की मात्रा को नियंत्रित करता है, अर्थात जब पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का स्राव होता है तो रक्त से ग्लूकोज का परिवहन नियमित और नियंत्रित रूप से कोशिकाओं तक होता है लेकिन यदि इंसुलिन का स्राव कम हो जाता है तो इस परिवहन के कार्य में बाधा उत्पन्न हो जाती है जिसके परिणाम स्वरुप रक्त में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ने लगती है। इसी बढ़ी हुई ग्लूकोज की अवस्था को डायबिटीज या मधुमेह के नाम से जाना जाता है।
मधुमेह के प्रकार (types of diabetes in hindi)
जैसा की हमने ऊपर बताया कि इंसुलिन में गड़बड़ी के कारण डायबिटीज होता है। अब इस इंसुलिन में गड़बड़ी दो प्रकार की हो सकती है और इसी वजह से डायबिटीज के मुख्यतः दो प्रकार है जो इस तरह है:-
1. टाइप 1 डायबिटीज:
इसे मेडिकल की भाषा में Insulin-Dependent Diabetes Mellitus या ‘इंसुलिन आश्रित मधुमेह’ कहा जाता है। इसे छोटे नाम में IDDM कहा जाता है। डायबिटीज के इस प्रकार में हमारा शरीर इंसुलिन का उत्पादन करना बंद कर देता है अर्थात अग्नाशय से इंसुलिन का उत्पादन या तो बहुत कम होता है या फिर बिलकुल होता ही नहीं है।
इस वजह से कोशिकाएँ ग्लूकोज का अवशोषण नहीं कर पाती है जिससे ग्लूकोस का स्तर रक्त में बढ़ जाता है। इस प्रकार का डायबिटीज मुख्यतः किशोरावस्था में देखा जाता है, जिस वजह से इसे ‘ज्यूविनाइल ऑनसैट डायबिटीज’ अर्थात ‘कम उम्र में होनेवाले डायबिटीज’ के नाम से भी जाना जाता है।
डायबिटीज के इस टाइप का केवल एक ही इलाज है और वह है बाहर से शरीर में इंसुलिन की आपूर्ति करना। इसलिए इस टाइप में ग्लूकोज का स्तर सामान्य बनाए रखने के लिए नियमित रूप से इंसुलिन के इंजेक्शन लेने की आवश्यकता होती है। इस प्रकार में मरीज का वजन कम हो जाता है।
2. टाइप 2 डायबिटीज:
इसे मेडिकल की भाषा में Non-Insulin-Dependent Diabetes Mellitus या ‘इंसुलिन अनाश्रित मधुमेह’ कहा जाता है। इस टाइप में इंसुलिन सामान्य स्तर पर अग्नाशय से उत्पादित होता है लेकिन हमारे शरीर की कोशिकाएँ उसे महसूस या उसकी कार्यक्षमता को ग्रहण नहीं कर पाती है।
इस वजह से भले ही इंसुलिन शरीर में उत्पादित हो रहा है लेकिन वह अपना कार्य नहीं कर पाती है क्योकि कोशिकाओं पर उसके कार्य का कोई असर नहीं पड़ता है जिस वजह से ग्लूकोज कोशिकाओं तक पहुँच नहीं पाता है और इससे ग्लूकोज का स्तर रक्त में बढ़ने लगता है। यह टाइप मुख्यतः आनुवांशिक कारणों से होता है। इसलिए यह रोग कई परिवारों में पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली जाती है या पाई जाती है।
इन दो प्रकारो के अलावा डायबिटीज के कई अन्य प्रकार भी है जो निम्लिखित है-
3. Gestational Diabetes / GDM (जैस्टेशनल डायबिटीज/ जीडीएम):
इस प्रकार का डायबिटीज मुख्यतः महिलाओं को होता है और खासकर उन महिलाओं को जो गर्भवती होती है। गर्भावस्था के दौरान स्त्री के शरीर में हॉर्मोन से जुड़े कई बदलाव होते है जिससे इंसुलिन की कार्यक्षमता कम हो जाती है। इस वजह से स्त्री के शरीर में ग्लूकोज अथवा शुगर का स्तर बढ़ जाता है।
4. Malnutrition-Related Diabetes Mellitus / MRDM (कुपोषण जनित मधुमेह/एमआरडीएम):
जब व्यक्ति पर्याप्त मात्रा में भोजन नहीं करता है या उसे पर्याप्त मात्रा में सभी जरुरी पोषक तत्वों की आपूर्ति नहीं हो पाती है तब कुपोषण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। कुपोषण की इस अवस्था में शरीर में ऊर्जा की बहुत कमी हो जाती है। इसी में अग्नाशय भी पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाता है जिससे व्यक्ति धीरे-धीरे डायबिटीज का शिकार हो जाता है।
इस प्रकार का डायबिटीज मुख्यतः बच्चों और महिलाओं को होता है। टाइप 1 डायबिटीज की तरह ही यह डायबिटीज भी इंसुलिन का इंजेक्शन देने से ठीक हो सकता है लेकिन इंजेक्शन बंद करने से व्यक्ति कीटोएसिडोसिस का शिकार नहीं होता है जैसा कि टाइप 1 डायबिटीज में देखा जाता है।
5. Impaired Glucose Tolerance / IGT (इंपेयर्ड ग्लूकोज टोलरेंस/आईजीटी):
आईजीटी, डायबिटीज टाइप 2 के पहले की अवस्था है, अर्थात यदि समय रहते आईजीटी का कोई इलाज नहीं किया गया तो यह टाइप 2 डायबिटीज में परिवर्तित हो सकती है। एक तरह से यह मधुमेह और सामान्य ग्लूकोस के स्तर के बीच की स्थिति है। इसलिए आईजीटी से जूझ रहे व्यक्ति में सामान्यतः मधुमेह के लक्षण नहीं दिखाई देते है लेकिन भविष्य में वे मधुमेह से ग्रसित हो सकते है। मेडिकली यह स्थिति 75 ग्राम ग्लूकोज का घोल पिलाने से उत्पन्न की जाती है।
डायबिटीज होने के कारण (causes of diabetes in hindi)
डायबिटीज मुख्यतः दो कारणों से होता है-
1 . ख़राब खान-पान और मोटापा: जब लोग जंक फ़ूड या फ़ास्ट फ़ूड का सेवन अधिक करने लगते है तो शरीर में वसा यानी फैट का संचय अधिक होने लगता है जिससे अधिक ऊर्जा का निर्माण होता है।
अधिक ऊर्जा का निर्माण तब होता है जब वसा ग्लूकोस में परिवर्तित होती है। इसलिए अधिक वसा मतलब अधिक ग्लूकोस और अधिक ग्लूकोस मतलब अधिक ऊर्जा।
इतनी अधिक मात्रा में ग्लूकोज को नियंत्रित करने के लिए उतनी मात्रा में अर्थात पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन नहीं हो पाता है जिससे ग्लूकोस रक्त में ही रह जाता है और उसका स्तर बढ़ने लगता है।
अब जब वसा का संचय अधिक होगा तो मोटापे की स्थिति उत्पन्न होगी और वही फिर प्रक्रिया होगी जिसे हमने ऊपर विस्तृत रूप से समझा।
इस तरह ख़राब खान-पान का सेवन करनेवाले और मोटापे से ग्रसित लोगों को मधुमेह का अधिक खतरा रहता हैं।
2 . आनुवांशिक कारण/ पारिवारिक इतिहास: डायबिटीज को आनुवांशिक रोगों की श्रेणी में रखा गया है। अर्थात यदि आपके परिवार में आपके पूर्वजों से लेकर आपके माता-पिता तक डायबिटीज की बीमारी चली आ रही है तो यह संभव है, कि आप भी इसके शिकार हो जाएँ। और यदि आप शिकार होते है तो यह संभव है कि आपकी संतान भी इसकी शिकार हो जाये।
इन दो कारणों के अलावा डायबिटीज होने के अन्य कारण भी है जैसे कि:-
- ज्यादा शारीरिक श्रम न करना अर्थात आलसीपन
- मानसिक तनाव और डिप्रेशन
- गर्भावस्था
- ज्यादा दवाइयों का सेवन
- ज्यादा चाय, दूध, कोल्ड ड्रिंक्स और चीनी वाले खाने का सेवन
- धूम्रपान और तंबाकू का सेवन, इत्यादि
मधुमेह के लक्षण (symptoms of diabetes in hindi)
वैसे मधुमेह के तो बहुत से लक्षण है लेकिन कुछ लक्षण ऐसे भी है जिनसे मधुमेह की जाँच करवाएँ या नहीं, इसकी पुष्टि हो जाती है। इसी तरह के कुछ लक्षण इस प्रकार है:-
- बार-बार पेशाब का आना
- आँखों की रौशनी कम होना और चीजों का धुंधला नज़र आना
- ज्यादा प्यास लगना
- कमजोरी और थकान महसूस होना
- कोई भी चोट या जख्म देरी से भरना
- रोगी के हाथों, पैरों और गुप्तांगों पर खुजली वाले जख्म होना
- त्वचा पर बार बार संक्रमण होना और बार-बार फोड़े-फुँसियाँ निकलना
- भूख ज्यादा लगना
- ज्यादा खाना खाने के बाद भी रोगी का भार कम हो जाना
- चक्कर आना और हृदय गति अनियमित होने का खतरा बन जाना
- किडनी का खराब हो जाना।
मधुमेह की जाँच (test for diabetes in hindi)
अब बारी आती है मधुमेह की जाँच करने की। जब ऊपर दिए गए लक्षण आप महसूस करने लगते है तो आपको अवश्य ही डॉक्टर के पास जाँच के लिए जाना चाहिए। डॉक्टर आपकी जाँच नीचे दिए गए दो प्रकारों या किसी एक प्रकार से कर सकता है:-
1. खाली पेट की गयी जाँच:
खाली पेट अर्थात इस तरह के जाँच के लिए कुछ घंटे पहले से ही रोगी को कुछ भी खाद्यपदार्थ खाने से मना कर दिया जाता है। विशेषकर जाँच के 12 घंटे पहले से ही खान-पान बंद कर दिया जाता है। जाँच के पहले के 12 घंटों में व्यक्ति को पानी के अलावा और कुछ भी ग्रहण नहीं करना होता है।
एक सामान्य व्यक्ति के रक्त में शुगर/ग्लूकोस की 80 से 120 mg/dl तक की मात्रा ग्लूकोस का सामान्य स्तर होता है।
अगर जाँच में यह मात्रा 120 से 140 mg/dl तक के बीच में आई तो यह डायबिटीज की शुरुआती अवस्था मानी जाती है और मात्रा अगर 140mg/dl से ज्यादा आई है तो यह डायबिटीज की जड़ की अवस्था मानी जाती है। अर्थात आम भाषा में 140mg /dl पर व्यक्ति गंभीर वाली डायबिटीज का शिकार हुआ माना जाता है।
2. खाना खाने के बाद की जाँच
अब पहले जाँच में आए परिणाम को सुनिश्चित करने के लिए कई बार इस दूसरे जाँच की ओर रुख किया जाता है। इस जाँच में खाना खाने के 2 घंटे बाद अगर रक्त में शुगर का स्तर 120 -125 mg/dl से कम पाया जाता है तो यह सामान्य अवस्था मानी जाती है और अगर इसकी मात्रा 145mg/dl आती है तो यह डायबिटीज की निशानी मानी जाती है।
डायबिटीज की जाँच के लिए मुख्यतः मरीज का रक्त या मूत्र सैंपल के रूप में लिया जाता है।
मधुमेह के बचाव और इलाज (diabetes treatment in hindi)
वैसे मधुमेह हो जाने पर डॉक्टर की ही सलाह लेनी चाहिए और डॉक्टर से ही इलाज करवाना चाहिए। लेकिन मधुमेह हो जाने पर उसे नियंत्रित करने के लिए कुछ टिप्स भी मौजूद है, जिसका पालन ना केवल मधुमेह के रोगियों को बल्कि सामान्य व्यक्ति को भी करना चाहिए जिससे वे मधुमेह के शिकार ना हो। वे टिप्स इस प्रकार है:-
- तनाव और चिंता से जितना हो सके दूर रहें
- व्यायाम और मैडिटेशन नियमित रूप से करें
- अच्छी और भरपूर नींद लें
- अपने वजन को नियंत्रण में रखें
- संतुलित आहार का सेवन करें
- अलसी का सेवन करें
- फ़ास्ट फ़ूड या जंक फ़ूड और मीठे खाद्यपदार्थों के सेवन से परहेज करें
- डायबिटीज के मरीजों को कपालभाति प्राणायाम, अनुलोम विलोम और मंडूकासन अवश्य करने चाहिए
- त्वचा के संक्रमण से बचने के लिए किसी भी तरह के शारीरिक चोट से बचें और यदि चोट लगे तो उसे नजरअंदाज ना करें
- नियमित रूप से शुगर लेवल की जाँच करते रहें
- डॉक्टर की सलाह लिए बिना किसी भी तरह की दवाई का सेवन ना करें
- धूम्रपान, चीनी, मिठाई, ग्लूकोज, मुरब्बा, गुड़, आइसक्रीम, केक, पेस्ट्री, मीठा बिस्कुट, चॉकलेट, शीतल पेय, गाढ़ा दूध, क्रीम, तला हुआ भोजन, मक्खन, घी, और हाइड्रोजनीकृत वनस्पति तेल, सफेद आटा, जंक फूड, कुकीज़, डिब्बा बंद और संरक्षित खाद्य पदार्थ, इत्यादि से परहेज करें।
यदि अब भी आपके मन में मधुमेह और शुगर से सम्बंधित कोई सवाल है, तो आप कमेंट के जरिये यह हम से पूछ सकते हैं।
meri dadi ko madhumeh hai. ab vo koi meethi chej nahi khati hai. kya rojana doodh aur daliya khana shi hai/. yadi thode cheeni le, to kya problem hai?
Agar hum cheeni ki jagah gur ya fir honey use karen to kya usse body me koi negative effects honge ?