भारत के 5 राज्यों में इस वक़्त विधानसभा चुनाव का माहौल है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और गोवा के साथ उत्तर-पूर्व (North East) राज्य मणिपुर की जनता अगले 5 साल के लिए अपना मुख्यमंत्री चुन रही है।
कई राज्यों में चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो गयी हैं तो कई राज्यों में विभिन्न चरणों मे मतदान करवाये जाने के कारण अभी चुनावी गहमा-गहमी और प्रचार-प्रसार जमीन पर जारी है।
इसी क्रम में 28 फरवरी को उत्तर पूर्व का एक महत्वपूर्ण राज्य मणिपुर में भी प्रथम चरण का चुनाव सम्पन्न हुआ। बता दें कि कुल 60 सीटों वाले मणिपुर विधानसभा में 2 चरणों मे चुनाव होना है। प्रथम चरण के मतदान में मणिपुर में शाम 5 बजे तक 85.45% मतदान हुआ जो इस बात का संकेत है कि मणिपुर जनता लोकतंत्र के इस पर्व को लेकर अच्छा-खासा उत्साहित है।
मणिपुर का चुनाव (Manipur Election) उदाहरण है बड़े राज्यों के लिए
सुदूर उत्तर पूर्व में स्थित मणिपुर भी उसी वक़्त चुनावी प्रक्रिया से गुजर रहा है जिस वक्त उत्तर प्रदेश, पंजाब उत्तराखंड जैसे भारत के बड़े राज्यों में भी चुनाव करवाये जा रहे हैं। मणिपुर का चुनाव (Manipur Election)कई मायनों में उदाहरण है। जैसे- अगर मणिपुर के चुनावी गहमा गहमी, जन-उत्साह और मताधिकार का प्रयोग आदि।
मणिपुर: चुनावी गहमा-गहमी
अगर मणिपुर के चुनावी गहमा-गहमी की तुलना बाकी के राज्यों के चुनावी गर्मी से की जाए तो स्थिति उलट जान पड़ती है।
यूपी, पंजाब, उत्तराखंड आदि राज्यों में चुनाव प्रचार के लिए रोड शो, रथयात्रा और जाने क्या-क्या आम बात है।अगर इन राज्यों में किसी बड़े पार्टी के बड़े नेताओं ने रोड शो या महारैली नहीं की तो फिर मीडिया रिपोर्ट्स देखिये; ” ऐसा लगेगा जैसे भतीजे की बारात में फूफा ने खाना नहीं खाया” है।
हज़ारों की संख्या में जनता को जुटाकर तमाम साधन संसाधनों को लगा के बड़े नेताओं की रैलियों का हुजूम, फिर गली-गली में दिन भर बजता लाउडस्पीकर, मंदिर मस्जिद की दौड़, ध्रुवीकरण की हरसंभव कोशिश इत्यादि इन बड़े राज्यों के चुनावों के लिए आम बात हैं। इस बात से किसी जन-हितैषी नेताओं को कोई फर्क नहीं पड़ता कि इन तमाम चुनावी भाग-दौड़ और भीड़ जुटाने की कार्यवाही में शहर के हर सड़क जाम हो जाये या कुछ और।
वहीं मणिपुर की बात करें तो बड़ी भीड़-भाड़ वाली रैलियां यहाँ भी होती हैं पर यदा-कदा…. जब कोई PM मोदी, राहुल गांधी या अमित शाह जैसे बड़े नेता का आना होता हैं। मणिपुर की राजनीति ऱोड-शो वाले कल्चर से दूर जान पड़ती है। डोर-टू-डोर कैम्पेन तो है लेकिन कोई लाउडस्पीकर नहीं।
आपको यहाँ की सड़कों पर तमाम बड़े छोटे नेताओं का पोस्टर चिपकाया हुआ मिल जाएगा लेकिन बड़े बड़े डिजिटल होर्डिंग और लाउडस्पीकर पर चीख चीख के किया जाने वाला प्रचार तंत्र नदारद है। अर्थात चुनावी गहमा गहमी तो है लेकिन ऐसा लगता है सबकुछ आपसी सौहार्द और प्रकृति को ध्यान में रखकर किया जा रहा है।
चुनाव में जनता की भागीदारी
दूसरी वजह चुनाव में जनता की भागीदारी है। पहले चरण के मतदान में लगभग 85.45% मतदान हुआ।
Tentative Polling Percentage.
Phase 1 of Manipur Assembly Elections 2022 has been a success, let’s raise the numbers even more in Phase 2.#ECI #ElectionCommissionOfIndia #CEOManipur #SVEEP #Election2022 #ManipurVotes2022 #CovidSafeElections #ManipurElection2022 pic.twitter.com/4rtESA7PoG— The CEO Manipur (@CeoManipur) March 1, 2022
वहीं जनसंख्या के दृष्टि से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जैसे-जैसे चुनाव चरण दर चरण बढ़ रहा है, जनता की भागीदारी कम होती जा रही है। शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण अंचल में लोगों की भागीदारी कुछ हद तक ज्यादा है पर फिर भी चिंता का सबब है।
मणिपुर में जिस दिन प्रथम चरण का मतदान था, उसी दिन यूपी में पांचवें चरण का मतदान हुआ। निर्वाचन आयोग के वोटर टर्न-आउट ऐप (Elections commission’s voters’ Turnout App) के मुताबिक यूपी में उस दिन कुल 53.93% (Till 5 PM) मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।
उत्तर प्रदेश विधानसभा सामान्य निर्वाचन 2022
पांचवें चरण के अंतर्गत 12 जनपदों की 61 विधानसभा सीटों पर सायं 05 बजे तक कुल औसतन मतदान 53.93% रहा।@ECISVEEP@SpokespersonECI#ECI#AssemblyElections2022 #GoVote #GoVoteUP_Phase5 pic.twitter.com/QbVRKL2d19
— CEO UP #DeshKaMahaTyohar (@ceoup) February 27, 2022
लोकतंत्र का सबसे कॉमन परिभाषा है- “लोकतंत्र जनता का जनता द्वारा जनता के ऊपर किया जाने वाला शासन है।”
यूपी जैसे बड़े राज्यों में लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार में जनता की हिस्सेदारी का कम होना निश्चित ही निर्वाचन आयोग के लिए चिंता का एक सबब है। क्योंकि जनता की आधी भागीदारी से जनता द्वारा जनता के लिए जनता पर किया जाने वाला शासन अपने मकसद तक कैसे पहुंच पायेगा।
AFSPA मुद्दे पर सभी पार्टियां एकमत
एक और वजह ये है कि मणिपुर में बाकि मुद्दों पर सभी पार्टियों के बीच खींचतान जरूर है लेकिन जब बात AFSPA की होती है तो सभी दल अपने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर इसे हटाने के लिए एकमत हैं। चाहे वो भारतीय जनता पार्टी की राज्य इकाई ही क्यों ना हो, इस मुद्दे पर वह भी अपने ही केंद्रीय नेतृत्व से इसे हटाने की मांग को लेकर बाकी पार्टियों के साथ खड़ी दिखाई देती है। यह बात भी मणिपुर के चुनाव को बाकि राज्यो से अलग करती है। हालाँकि ऐसा सिर्फ मणिपुर में है, तो ऐसा नहीं है।
फिलहाल मणिपुर चुनाव का दूसरा चरण अभी बाकी है। पहले चरण में 38 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव करवाये गए जबकि शेष सीटों के लिए दूसरे चरण में 5 मार्च को मतदान होगा।
यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि मणिपुर चुनाव भारत के मेन-लैंड (Main-Land) वाले राज्यों के लिए एक उदाहरण के तौर पर देखा जा सकता है। चाहे वो जनता की भागीदारी हो या चुनाव प्रचार-प्रसार के तरीके… मणिपुर जैसे छोटे राज्य से इन बड़े राज्यों को सीखना चाहिए।