भूटान के बाज़ारों पर चीन निर्मित उत्पादों की भरमार है। चीन ने तिब्बत पर साल 1951 में अधिग्रहण किया था और भूटान से सीमा विवादों के चलते तल्खी बनी हुई थी। चीन अब छोटे पर्वतीय देशों के साथ संबंधों को सुधारना चाहता है। हालाँकि कोई कूटनीतिक सम्बन्ध नहीं रखना चाहता था।
भारत ने बीते वर्ष भूटान की रक्षा के लिए सेना भेजी जब चीनी सैनिक भूटान के डोकलाम पर सड़क का निर्माण कर रहे थे। डोकलाम पर चीन और भूटान दोनों अपना दावा ठोकते हैं। 72 दिनों तक चले इस संघर्ष में चीनी और भारतीय सेना के मध्य आमना सामना होता रहा। चीन और भूटान के मध्य टकराव के कारण भारत पर उत्पादन के निर्यात के लिए निर्भरता बढ़ा दी।
ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी के इतिहासकार ने बताया कि भूटान की जनता में विविधता की मांग बढ़ रही है और भारत पर से निर्भरता काम हो रही है। हालाँकि भूगोल और इतिहास के कारण भूटान भारत के हितों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता है।
भूटान अपने शुरुआती दौर साल 1960 से ही अलग-थलग रहा है। पड़ोसी देशों पर भूटान की निर्भरता साल 2013 में बढ़ी। भारत ने साल 2013 में ईंधन की कीमते बढ़ने के कारण भूटान पर गैस की सब्सिडी में कटौती करने का आरोप लगाया था।
कॉलेज छात्रा विमला प्रधान ने बताया कि अगर भारत और भूटान अच्छे दोस्त है तो भूटान के किसी अन्य देश के साथ संबंध से हमारी दोस्ती प्रभावित नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कहा भूटान कोई भी फैसला लेने से पूर्व भारत की सहमति लेता है। भारत भूटान के लिए सर्वोपरि है लेकिन एक जलनखोर भाई की तरह व्यवहार न करे।
भारत भूटान को लोन और अनुदान मुहैया करता रहा है लेकिन भूटान पर्वतीय देश में अधिक निवेश चाहता है जिसके लिए चीन की जेब भरी हुई है।
चीन कूटनीति और आर्थिक मदद से दक्षिण एशिया के लाभांश देशों में अपनी पैठ बना रहा है। वहीं भारत के दशकों के मित्र मलेशिया और श्रीलंका दूर होते जा रहे हैं। चीन भूटान में खेल, धर्म और सांस्कृतिक गतिविधियों के माध्यम से प्रवेश कर रहा है।
चीन के उप विदेश मंत्री ने जुलाई में भूटान का दौरा किया था। सरकरी आंकड़ों के मुताबिक भूटान में चीनी पर्यटकों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है। भूटान के नागरिकों के मुताबिक उन्हें अन्य देशों के साथ मित्रता करनी चाहिए।