विश्व भुखमरी सूचकांक (Global Hunger Index-GHI) 2022: विश्व भुखमरी सूचकांक (GHI) 2022 के अनुसार 121 देशों की रैंकिंग में भारत को 107वें स्थान पर रखा गया है जो पिछले वर्ष (2021) की तुलना में 6 स्थान की गिरावट है।
यह सूचकांक आयरलैंड और जर्मनी के गैर सरकारी संगठनों, कार्सन वर्ल्डवाइड और वेल्ट हंगर हिल्फ़ ने जारी किया है। विगत शनिवार को जारी इस सूचकांक में भारत को अफगानिस्तान को छोड़ दें, तो पाकिस्तान नेपाल तथा बांग्लादेश आदि सभी पड़ोसी मुल्कों से नीचे रखा गया है।
इसके बाद नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारत की केंद्र सरकार ने विश्व भुखमरी सूचकांक (GHI) 2022 को सिरे से नकारते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर “भारत की क्षवि धूमिल करने का निरंतर प्रयास” बताया है। सरकार ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि इस रैंकिंग के निर्धारण के तौर-तरीकों में ही गड़बड़ी है।
विदेश मंत्रालय की तरफ़ से इस पूरे रिपोर्ट को “वास्तविकता से कटा हुआ” बताते हुए कहा कि संस्थाओं ने जानबूझकर भारत सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा को लेकर जारी निरंतर प्रयासों को दरकिनार किया है। जबकि केंद्र सरकार ने दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य सुरक्षा अभियान चलाया है।
Index is an erroneous measure of hunger & suffers from serious methodological issues. Report isn’t only disconnected from ground reality but also chooses to deliberately ignore efforts made by Govt to ensure food Security for population: Govt of India on Global Hunger Report 2022 pic.twitter.com/fJoXyTcyyf
— ANI (@ANI) October 15, 2022
हालांकि यह पहला मौका नहीं है जब भारत सरकार ने ऐसे किसी रिपोर्ट को स्वीकार करने से इनकार किया है। मोदी सरकार ने इस से पहले भी कई मौकों पर जब सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे हैं, उसे “अंतरराष्ट्रीय साजिश के तहत भारत की क्षवि धूमिल करने के प्रयास” बताकर पल्ला झाड़ लिया है।
जुलाई 2022 में अमेरिका की फ़ेडरल सरकारी संगठन US Commission on International Religious Freedom (USCIRF) द्वारा जारी एक रिपोर्ट में भारत को चीन, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान सहित उन 11देशों की सूची में डाल दिया गया जहाँ विशेष वर्ग की धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर संशय (“Countries of Particular concern” over religious freedom) है।
USCIRF recommends #India be designated as a CPC for its systematic, ongoing, and egregious violations of religious freedom, including the repression of critical voices speaking out against these violations.
Read more in USCIRF’s 2022 Annual Report: https://t.co/uradREABDk
— USCIRF (@USCIRF) July 1, 2022
USCIRF के इस रिपोर्ट को लेकर सरकार के तरफ़ से तब भी विदेश मंत्रालय (MEA) को इस रिपोर्ट के खंडन के लिए आगे किया गया। MEA ने तब भी लगभग यही शब्द दुहराए थे कि ईस रिपोर्ट में भारत के संवैधानिक प्रक्रियाओ, बहुवादी प्रणाली तथा लोकतांत्रिक मूल्यों के समझ की कमी है।
MEA Spox Arindam Bagchi response to media queries on comments on India by USCIRF
We’ve seen biased & inaccurate comments on India by USCIRF. These comments reflect a severe lack of understanding of India & its constitutional framework, its plurality & its democratic ethos: MEA pic.twitter.com/CVSFeoMH0N
— ANI (@ANI) July 2, 2022
कुल मिलाकर तब भी USCIRF जैसी संस्था के कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए थे, आज भी विश्व भुखमरी सूचकांक (GHI) जारी करने वाली संस्थाओं के कार्यप्रणाली पर ही सवाल उठाए जा रहे हैं।
अब इस से 1 महीने और पहले चलें तो इसी MEA को Office of United Nations High Commissioner for Human Rights (OHCHR) के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलना पड़ा जब OHCHR ने भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार तीस्ता सीतलवाड़ तथा पूर्व DGP RB श्रीकुमार की गिरफ्तारी 2002 के गुजरात दंगों में नरेंद्र मोदी के खिलाफ आरोप लगाने के संदर्भ में हुई थी।
OHCHR के बयान के बाद MEA के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने इसे भारतीय न्याय व्यवस्था के मामले में हस्तक्षेप बताया था।
उस से थोड़ा और पहले चलें तो भारत मे कोरोना से हुई मौतों को लेकर WHO के आंकड़े पर भी भारत सरकार का रवैया कुछ ऐसा ही था। WHO के मुताबिक भारत मे कोरोना के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से 4.7 मिलियन (47 लाख) लोगों की मौत हुई थी जबकि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने आधिकारिक तौर पर 4.81 लाख मौत का दावा किया था।
इस मामले में सरकार की तरफ से आगे आते हुए स्वास्थ मंत्रालय ने WHO के गणना-प्रणाली और मॉडलिंग पर ही सवाल उठाते हुए कहा था कि भारत के समस्याओं को समझे बगैर यह मॉडलिंग और आँकड़े निकाले गए हैं।
थोड़ा और पहले चलें तो 3 किसान कानून को लेकर धरने पर बैठे किसानों के पक्ष में गायिका रिहाना और जलवायु परिवर्तन एक्टिविस्ट ग्रेटा थनबर्ग (Greta Thunberg) में आवाज उठाई तो उसे भारत के खिलाफ विदेशी साजिश का हिस्सा बताया गया।
इसी सिलसिले में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ट्वीट भी किया। “We stand together. We stand united against all attempt to malign India through propaganda and fake narratives”
हालांकि उसके बाद सरकार ने यू-टर्न लेते हुए इन कानूनों को वापस ले लिया जिसे लगभग 1 साल तक मोदी सरकार का हर नुमाइंदा जायज और किसानों के हित में बताया था।
जुलाई 2019 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार के एक अंग ने जम्मू कश्मीर के हालात पर एक रिपोर्ट जारी किया था जिसे लेकर भी MEA का रवैया वही था, जो आज है। MEA ने इस रिपोर्ट को भारत के आंतरिक मामलों में दखल तथा सम्प्रभुता और अखण्डता से जोड़ दिया।
इसके अलावे और भी बहुतेरे लंबी सूची है उन रिपोर्टों और सूचकांको की जिसे वर्तमान मोदी सरकार वैसे ही नकारती रही है जैसे आज GHI 2022 को नकार रही है।
ऐसे में सवाल यह उठता है कि ऐसे रिपोर्ट या सूचकांको के माध्यम से क्या सच मे भारत की क्षवि खराब करने की कोशिश होती है या फिर मोदी सरकार “विदेशी ताकतों और विदेशी हाँथ” का बहाना बनाकर वही “इमेज पॉलिशिंग” वाली राजनीति कर रही है जो कभी एक जमाने मे इंदिरा गांधी सरकार हर बात में “फॉरेन कनेक्शन” से जोड़कर नकार देती थी?
दरअसल राजनीति के इन सियासतदां अपनी और अपने गवर्नेंस की क्षवि को लेकर काफी सजग रहते हैं। अगर किसी विदेशी व्यक्ति ने इन राजनेताओं की तारीफ में 1 पंक्ति भी कह दे तो पूरे देश मे उसका डंका बजाया जाता है, लेकिन ग्रेटा थनबर्ग या किसी रिहाना के द्वारा की गई आलोचना टूलकिट का हिस्सा लगता है।
अगर कोई छोटा मोटा विदेशी NGO भारत के अर्थव्यवस्था आदि की तारीफ कर दे तो वह अगले दिन प्रिंट मीडिया की हैडलाइन और TV पर प्राइम टाइम बन जाता है, पर किसी विश्व भर में स्वीकार्य कोई NGO की Global Hunger Index जैसी रिपोर्ट देश की क्षवि खराब करने का निरंतर प्रयास लगता है।
अगर हालिया विश्व भुखमरी सूचकांक (GHI) 2022 की बात करें तो भारत के लिए कही गयी बातें धरातल पर दृश्यमान है। अब यह हम पर है कि हम उसे देखना चाहते हैं या देखकर भी आँखें मूंदे बैठे रहना चाहते हैं।
यह सच है कि भारत सरकार ने कोरोना काल से एक बड़ी संख्या में आम नागरिकों को विश्व की सबसे बड़ी खाद्य सुरक्षा स्कीम के तहत अनाज मुहैया करवाये हैं पर यह भी उतना ही कटु सत्य है कि देश की वर्तमान हालात में यह प्रयास नाकाफ़ी है।
इस से एक बार मान भी लें कि लोगों की भूख तो मिट गई होगी, लेकिन क्या पौष्टिकता भी हासिल हुआ होगा, तो जवाब है नहीं। विश्व भुखमरी सूचकांक (Global Hunger Index) के रैंकिंग निर्धारण में कुपोषण की स्थिति को शामिल किया जाता है और भारत मे कुपोषण का स्तर काफी चिंताजनक है।
मैं इस बात को अपने निजी अनुभवों के आधार पर दावे से इसलिए कह सकता हूँ क्योंकि मेरी माता जी बिहार जैसे पिछड़े राज्य के सुदूर ग्रामीण इलाके के अनुसूचित टोला (मुहल्ला) के लोगों के बीच आंगनवाड़ी सेविका का काम करती हैं। बच्चों का ग्रोथ चार्ट जो कुपोषण के स्तर को दर्शाता है, 40 बच्चो में लगभग 20-22 बच्चों के लिए लाल-स्तर (Red Level) पर होता है।
दूसरा कोरोना और रूस युक्रेन युद्ध के कारण उभरे आर्थिक मंदी ने गरीबो की कमर दुनिया भर में तोड़ दी है। फिर इसके प्रभाव से भारत जैसा विकासशील देश अछूता कैसे रह सकता था। विश्व बैंक के हालिया रिपोर्ट के मुताबिक गरीबी रेखा के नीचे गुजर बसर करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी आबादी भारत मे निवास करती है।
गरीबी और खाने की गुणवत्ता में कमी या यूं कहें कुपोषण का बड़ा सीधा संबंध है।फिर भारत की कुल आबादी भी भुखमरी और गरीबी के लिए जिम्मेवार हैं। देश में इस समय पिछले 4 दशकों का सबसे उच्चतम बेरोजगारी दर बरकरार है। महँगाई चरम पर है।
कुल मिलाकर ऐसे में विश्व भुखमरी सूचकांक (GHI) 2022 में अगर भारत अपने पड़ोसी मुल्कों से पिछड़ भी गया तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। क्योंकि भारत कोई छोटा मुल्क नहीं है जिसे बस मुफ्त अनाज देकर भुखमरी, गरीबी और मुफलिसी से निकाला जा सकता है।
मोदी सरकार को इन रिपोर्ट या रैंकिंग को स्वीकार करना है या इनकार, यह एक राजनैतिक सहूलियत का मुद्दा हो सकता है। लेकिन भुखमरी, ग़रीबी या बेरोजगारी आदि जैसे मुद्दों पर विचार करने और संगठनात्मक तरीके से एक समग्र व स्पष्ट नीति बनाने की जरूरत है।
गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण आदि से मुक्ति के लिए सबसे पहले महँगाई और बेरोजगारी को दूर करने की आवश्यकता है। क्योंकि लोगों के हाँथ में जब तक पैसे नहीं होंगे, तब तक वह बस पेट भरने के लिए ही खाएंगे; कुपोषण और अन्य कुपोषण-जनित समस्याओं को दूर रखने के लिए नहीं।
क्या हुआ जो विश्व भुखमरी सूचकांक 2022 में भारत का स्थान 101 से फिसलकर 107 हो गया; क्या हुआ जो पाकिस्तान और बांग्लादेश नेपाल आदि से भी नीचे भारत को जगह मिली है; आखिर भारत जैसे विशाल मुल्क की समस्याओं की तुलना भी इन देशों से तो नहीं हो सकती है ना।
भारत मे खाद्यान्न की उपज इन तमाम देशों से कहीं ज्यादा होती है। भारत खुद में गई सक्षम है अपनी समस्याओं से निजात पाने में…. लेकिन उसके लिए जरूरी है कि देश के नीति-निर्माता यानि सरकार पहले इस सच्चाई को स्वीकारे कि देश मे गरीबी बढ़ी है, आर्थिक व धार्मिक असमानताएँ बढ़ी है, महँगाई चरम पर है, बेरोजगारी का आलम परेशान करने वाली है, भुखमरी की समस्या आज भी विद्यमान है, आदि।
अगर हम अपनी समस्याओं को स्वीकार ही नहीं करेंगे, तो इस “शुतुरमुर्गी व्यवहार (Ostrich Approach)” से तो निदान निकलना मुश्किल है। भारत सक्षम है, बस जरूरत है प्रभावशाली तरीके से नीति-क्रियान्वयन की।