समलैंगिकता को लेकर दुनिया के कई देशों में अलग-अलग विचाधारा व कानून बने हुए है। समलैंगिक लोगों को ‘गे’ भी कहा जाता है। इसके पक्ष व विपक्ष में काफी दलीलें आती है। हाल ही में समलैंगिक विवाह को लेकर ऑस्ट्रेलिया की जनता ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।
ऑस्ट्रेलियाई लोगों ने समलैंगिक शादी के पक्ष में भारी मतदान करते हुए इसका समर्थन किया है। 60 फीसदी से ज्यादा लोगों ने समलैंगिक शादी को लेकर मतदान किया है। इस पर ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल ने कहा कि लोगों के इंसाफ की जीत हुई है।
हालांकि अभी ऑस्ट्रेलिया में समलैंगिक कानून नहीं बना है लेकिन अब इस कानून के बनने का रास्ता साफ हो गया है। टर्नबुल ने क्रिसमस तक कानून बनाए जाने की बात की है।
इन देशों में है समलैंगिक विवाह की अनुमति
वर्तमान में 25 देश ऐसे है जहां पर समलैंगिक विवाह की अनुमति है। इसमे सबसे पहले नीदरलैंड ने साल 2001 में समलैंगिक विवाह को मंजूरी दी थी। इसके बाद नॉर्वे, बेल्जियम, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, ताइवान, ब्राज़ील, अर्जेंटीना, कोलम्बिया, फ्रांस, आयरलैंड, आइस्लैंड, पुर्तगाल, डेनमार्क, अमेरिका, जर्मनी, माल्टा, न्यूज़ीलैंड, संयुक्त राजशाही, मैक्सिको, स्वीडन, लक्समबर्ग, उरूग्वे, फिनलैंड और कनाडा शामिल हुए। सबसे लास्ट में जर्मनी और माल्टा ने साल 2017 में समलैंगिक विवाह को मान्यता दी।
समलैंगिकता क्या है ?
सामान्य तौर पर कहा जाए तो समान लिंग के लोगों के साथ संबंध बनाने की तरफ आकर्षित होना समलैंगिकता होती है। इसमें लोगों का समान लिंग वाले इंसान के साथ यौन संबंध बनाने के प्रति झुकाव होता है।
साफ शब्दों में कहा जाए तो पुरूष का पुरूष के साथ संबंध बनाना व महिला का महिला के साथ संबंध बनाना समलैंगिकता होता है। इस कैटेगरी में गे, लेसबियन, बाईसेक्सुअल व ट्रांसजेंडर को सम्मिलत किया जाता है।
भारत में 157 साल पुरानी समलैंगिकता की धारा
ऑस्ट्रेलिया के जैसे अन्य कई देश है जहां पर समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता मिली हुई है। लेकिन अगर भारत देश की बात की जाए तो यहां पर समलैंगिकता को लेकर स्थिति उलझी हुई नजर आती है। भारत में समलैंगिक विवाह को लेकर आम राय नहीं है।
वर्तमान में भी इस मुद्दे को लेकर बहस होती है। लेकिन कोई स्पष्ट नतीजा सामने नहीं आ रहा है। भारत में समलैंगिक कानून 19 वीं शताब्दी के भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 377 के अन्तर्गत आता है। तकरीबन 157 साल पुराने कानून को अभी तक माना जा रहा है।
धारा 377 के अनुसार यदि कोई वयस्क स्वेच्छा से किसी पुरूष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध स्थापित करता है तो उसे आजीवन कारावास की सजा या 10 साल और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। मानवाधिकार संगठन इस धारा 377 को मौलिक अधिकारों का हनन मानते है।
कई मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि भारत के संविधान के अनुसार सभी नागरिक समान है व उनके साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए। समलैंगिक समुदाय भी इसी संविधान के अन्तर्गत आते है। लेकिन समलैंगिकों के साथ भारत में काफी अत्याचार होता है।
इन्हें बराबरी का दर्जा नहीं दिया जाता है। अगर ये यौन संबंध भी बनाते है तो इस पुराने कानून के अनुसार इन्हें सजा हो सकती है। इसके अलावा समलैंगिक महिलाओं को अक्सर अपहरण या चोरी के अपराधों के झूठे मामलों के तहत सताया जाता है और मुकदमा चलाया जाता है।
दिल्ली हाईकोर्ट में पहुंचा था मामला
नाज़ फाउंडेशन की तरफ से धारा 377 को चुनौती देते हुए दिल्ली हाईकोर्ट में समलैंगिक संबंधो पर एक याचिका दायर की गई। जिस पर साल 2009 में दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई करते हुए धारा 377 को असंवैधानिक करार दिया था।
हाईकोर्ट ने कहा था कि समलैंगिक वयस्कों के बीच में संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में नहीं आना चाहिए। हाईकोर्ट ने तर्क दिया गया कि धारा 377 से नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है।
कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक वयस्कों द्वारा आपसी रजामंदी से यौन संबंध बनाना जायज है। दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को कई देशों के साथ विभिन्न संगठनों ने आधुनिक व उदारवादी फैसला करार देते हुए खुशी जताई थी।
धार्मिक संगठनों ने दी थी सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती
दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कई कट्टरवादी धार्मिक संगठनों ने सप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2013 में दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को गलत करार दिया।
सुप्रीम कोर्ट ने वयस्क समलैंगिकों के बीच में यौन संबंधों को बनाना गैर-कानूनी व संस्कृति के खिलाफ माना। इसी तरह सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को वैध ठहराया। वहीं कहा कि अब आगे से संसद को समलैंगिकता पर कानून बनाने का अधिकार होगा।
केन्द्र सरकार धारा 377 पर पुर्नविचार कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कई संगठनों ने नाराजगी व्यक्त की। इसे सुप्रीम कोर्ट के सबसे बुरे फैसलों में से एक माना गया।
भारत में समलैंगिकता विवाह की वर्तमान स्थिति
वर्तमान में भारत देश में समलैंगिकता को लेकर स्थिति बिल्कुल भी स्पष्ट नहीं कही जा सकती है। समलैंगिक विवाह के मामले पहले भी आते थे और अभी भी सामने आ रहे है। भारत में समलैंगिक विवाह को न तो अवैध माना जा रहा है और न ही इस विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान की जा रही है।
समलैंगिक विषय पर कानून ने भी चुप्पी साध रखी है। कोर्ट ने समलैंगिकता से संबंधित धारा 377 का फैसला केन्द्र सरकार पर छोड़ रखा है। केन्द्र सरकार भी इसे लेकर सक्रिय नजर नहीं आ रही है।
मानवाधिकार व सामाजिक संगठनों की तरफ से समलैंगिक लोगों के अधिकारों के लिए मांग उठाई जा रही है। लेकिन कुछ कट्टरवादी व रूढ़िवादी संगठनों के लोग समलैंगिक विवाह को संस्कृति के खिलाफ मानते है।
समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दिया जाना भारत में अभी कुछ सालों तक तो नजर नहीं आ रहा है। समलैंगिक विवाह का विरोध सिर्फ जाति विशेष के लोग ही नहीं बल्कि हर धर्म के लोग कर रहे है।
इन्होंने समलैंगिकता को बड़ा खतरा बताते हुए इसे देश की धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, नैतिक व सामाजिक मूल्यों को तहस-नहस करने वाला बताया है।
एक तरफ तो भारत खुद को दुनिया का नेतृत्व करने की कोशिशों में लगा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ आधुनिक युग में अन्य विकसित राष्ट्रो की तरह भारत में समलैंगिक विवाह को मंजूरी नहीं दी जा रही है। समलैंगिक विवाह, अधिकारों व कानूनों को लेकर देश में स्वतंत्र रूप से बहस होनी चाहिए।
भारत चाहे तो ऑस्ट्रेलिया की तरह ही भारत में भी समलैंगिकता को लेकर मतदान करवा सकता है। इससे लोगों के विचारों का आसानी से पता चल सकेगा। भारत में समलैंगिक लोगों को समाज में समान रूप से इज्जत व सम्मान नहीं दिया जा रहा है।
राजनीतिक पार्टियां भी इस मुद्दे को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही है। क्योंकि राजनेता अच्छी तरह से जानते है कि अगर समलैंगिक विवाह का मुद्दा उठाया गया तो बडी संख्या में विभिन्न संगठनों द्वारा उनका विरोध किया जा सकता है।
यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि भारत में समलैंगिक विवाह के खिलाफ काफी सारे लोग व संगठन है। भारत में बड़ी संख्या में लोगों व संगठनों की तरफ से समलैंगिक विवाह को नकारा जा चुका है। इसलिए मौजूदा हालातों में भारत में समलैंगिक विवाह को मंजूरी देना संभव नहीं लग रहा है।
भारत की सोच में आ रहा है बदलाव
हालांकि धीरे-धीरे युवाओं में समलैंगिकता के लिए जागरूकता बढ़ रही है। भारत के लोग पश्चिमी देशों की संस्कृति को इतना अपना रहे है कि समलैंगिक लोगों के लिए उनकी सोच में सकारात्मक परिवर्तन भी देखा जा रहा है।
भारतीय लोग खुलेपन के विचार को अपनाने में लगे हुए है। भारत अन्य विकसित राष्ट्रों की नजर में खुद को आधुनिक व लीडरशिप करने वाला देश प्रस्तुत कर रहा है।
ऐसे में भारत के लिए काफी जरूरी है कि वो अन्य देशों की तरह ही भारत में भी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता प्रदान करे। साथ ही समलैंगिक लोगों के मौलिक अधिकारों व सम्मान की रक्षा करे।