इस मामले से सम्बंधित राजनयिक सूत्र ने बताया, भारत ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की अप्रैल में आयोजित दूसरी बैठक के आधिकारिक न्योते को ठुकरा दिया है। भारत ने साल 2017 में बीजिंग में आयोजित पहली बैठक का बहिष्कार कर दिया था। चीन की बीआरआई परियोजना के तहत चीन-पाक आर्थिक गलियारा परियोजना भारत की सम्प्रभुता का उल्लंघन करता है क्योंकि यह विवादित गिलगिट-बाल्टिस्तान क्षेत्र से होकर गुजरता है।
बीआरआई सम्मेलन
चीन को उम्मीद है कि भारत बीआरआई पर अपनी स्थिति और फोरम में शामिल होने की समीक्षा करेगा। बीते वर्ष अप्रैल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अनौपचारिक मुलाकात की थी। चीनी विभाग ने बीते माह भारतीय विदेश मंत्रालय को इस सम्मेलन में शामिल होने का न्योता दिया था लेकिन भारत ने सीपीईसी पर अपनी चिंताजनक प्रतिक्रिया को दोहराया था।
चीन में स्थित भारतीय दूतावास का शायद ही कोई राजनयिक विश्लेषक के तौर पर बीआरआई की दूसरी बैठक में शामिल होगा। हाल ही में चीन ने पाकिस्तानी समर्थित आतंकी समूह जैश ए मोहम्मद के सरगना मसूद अज़हर को वैश्विक आतंकी की सूची में शामिल करने से बचाने के लिए यूएन में प्रस्तावित प्रस्ताव पर टेक्निकल होल्ड लगाया था। भारत के जम्मू कश्मीर के पुलवामा जिले में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी जेईएम ने ली थी। इसमें 40 सीआरपीएफ के जवानो की मृत्यु हो गयी थी।
बीआरआई परियोजना विवाद
बीआरआई की दूसरी बैठक का आयोजन भारतीय संसदीय चुनावो के बीच होगा। चीन की इंफ्रास्ट्रक्चर पहल के साथ भारत किसी प्रकार से कार्य नहीं करना चाहता है। भारत चाहता है कि अंतर्राष्ट्रीय मानकों के तहत इस परियोजना में पारदर्शिता, आर्थिक व्यवहार्यता और सम्प्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान से नियमो का पालन करें।
भारत अपनी कनेक्टिविटी पहल को एक्ट ईस्ट, गो वेस्ट और पड़ोसी फर्स्ट पॉलिसी के तहत प्रचार करना चाहता है। सरकार को यकीन है कि यह परियोजना अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त नियमो, नियम कानून और पारदर्शिता के प्रति अधिक झुकाव दिखाए।
बीआरआई की बैठक का आयोजन तब होगा, जब कई देशों में यह परियोजना विवादों में चल रही हैं। मसलन मालदीव, पाकिस्तान और श्रीलंका में बीआर की परियोजना पर विवाद के सायें मंडरा रहे हैं। चीनी परियोजना को कर्ज के जाल की कूटनीति और नए उपनिवेशवाद के तौर पर बुलाया जा रहा है। भारत ने लगातार गैर जिम्मेदाराना कर्ज के खिलाफ कई बार चेतवनी दी है।
भारत ने पूर्व में कहा था कि “इस पहल को वित्तीय जिम्मेदारियों के सिद्धांत का करना होगा जो देशो पर अनियमित कर्ज का भार डाले। साल 2017 में चीन की बीआरआई मंच में भूटान को छोड़कर भारत के सभी पड़ोसी देशो ने शिरकत की थी।”
बेल्ट एंड रोड से भारत की नाराजगी?
चीन की वन बेल्ट वन रोड योजना का भारत शुरुआत से ही बहिष्कार कर रहा है। इसके सबसे मुख्य कारण है: चीन पाकिस्तान आर्थिक मार्ग (सीपीईसी)।
सीपीईसी भारतीय राज्य जम्मू कश्मीर से होकर गुजरता है। यह इलाका वर्तमान में पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में आता है, लेकिन भारत इसे अपना हिस्सा मानता है।
अपने क्षेत्र की संप्रभुता को ध्यान में रखते हुए भारत नें चीन से साफ़ कर दिया है कि जब तक चीन भारत के साथ सुलह नहीं कर लेता है, तब तक भारत इससे नहीं जुड़ सकता है।
इसके अलावा अन्य कारण यह है कि भारत को लगता है कि इस योजना से भारत के आस-पास वाले देशों में चीन का प्रभुत्व बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा।
उदाहरण के तौर पर, चीन नें श्रीलंका में हंबनटोटा बंदरगाह का विकास किया था। इसे बनाने में 1 अरब डॉलर के लगभग खर्च आया था। जब श्रीलंका समय पर चीन का कर्ज चुकाने में असमर्थ रहा, तब चीन नें इस बंदरगाह का संचालन अपने हिस्से में ले लिया।
श्रीलंका के अलावा चीन नें मालदीव में भी भारी निवेश किया था। मालदीव की अब्दुल्ला यामीन की सरकार नें चीन से भारी लोन लिया था। हाल ही में मालदीव की नवनिर्वाचित इब्राहीम सोलिह की सरकार नें भारत की मदद से चीन का कर्ज चुकाया है।
इसके अलावा बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल जैसे देश भी चीन के करीबा जाते दिख रहे हैं।
ऐसे में चीन भारत के आसपास मौजूद देशों में अपनी उपस्थिति बढाकर भारत पर दबाव बनाना चाहता है।
इसके अलावा चीन अफ्रीकी देशों में भी भारी निवेश कर रहा है।
अफ्रीका के अलावा चीन यूरोपीय देशों में भी भारी निवेश कर रहा है। हाल ही में इटली नें चीन की बेल्ट एंड रोड योजना से जुड़ने का एलान किया है।
ऐसे में भारत को लगता है कि इतनी बड़ी मात्रा में चीन का प्रभुत्व भारत की संप्रभुता के लिए ठीक नहीं है।
अमेरिका नें चेताया
अमेरिका के राज्य सचिव माइक पोम्पिओ ने चीन की बेल्ट रोड परियोजना को सभी देशों के लिए खतरा बताया है। उन्होनें कहा कि “चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है और इसमें मेज़बान देश का आर्थिक प्रस्ताव काफी कम होता है।”
माइक पोम्पिओ ने नेशनल रिव्यु इंस्टिट्यूट 2019 आईडिया सम्मलेन में उन्होनें कहा कि “अमेरिका, उसके दोस्तों और सहयोगियों के लिए चीन एक सुरक्षा का खतरा है। वे दक्षिणी चीनी सागर में नियंत्रण करना चाहते हैं क्योंकि वह नौचालन की स्वतंत्रता को नहीं चाहते हैं। पूरे विश्व में द्वीपों का निर्माण वे जलमार्गों के अच्छे जहाज निर्माता और प्रबंधक बनने के लिए नहीं कर रहे हैं। चीन हर देश के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का खतरा है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव अलग नहीं है।”
इसी के चलते अमेरिका नें इस साल बेल्ट एंड रोड सम्मलेन में अपने प्रतिनिधि को भेजने से इंकार कर दिया है।
रायटर्स के मुताबिक अमेरिका के राज्य विभाग के प्रवक्ता ने इस सम्मलेन के सम्बन्ध में कहा कि “चीन में इस माह के अंत में आयोजित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के आयोजन में अमेरिका उच्च स्टार के अधिकारीयों को नहीं भेजेगा।”