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    भारत की जलवायु indian climate in hindi

    विषय-सूचि

    भारत की जलवायु कैसी है?

    भले ही भारत का उत्तरी भाग शीतोष्ण बेल्ट (temparate belt) में स्थित है, लेकिन इसका मौसम किसी उष्णकटिबंधीय देश के मौसम से काफी मिलता जुलता है।

    हिमालय पर्वत श्रंखला (जो उत्तर की तरफ से आने वाले ठंडी हवा को इस तरफ आने से रोकता है जिससे कम ठण्ड होती है) भारत को दक्षिणी एशिया से अलग करता है। इस वजह से सर्दी में भारत का हिस्सा 3॰ से 8॰ सेल्सियस तक गर्म रहता है।

    गर्मी के मौसम के दौरान सूर्य जब सर पर होता है तब देश किसी अन्य शुष्क प्रदेश से कम नहीं लगता। थार, बलूच एवं अन्य मरुस्थलों के प्रभाव के कारण उत्तरी भारत हिस्से में और कभी कभी पूरे देश में लू (एक प्रकार की गर्म हवा), जिससे साल के बाकी समय के मुकाबले तापमान काफी बढ़ जाता है।

    अतः भारत को एक उष्णकटिबंधीय प्रदेश के रूप में माना जाता है। अरब सागर एवं बंगाल की खाड़ी में हवा के बदलाव के कारण भारत में मानसून का मौसम होता है।

    भारत की जलवायु की विशेषताएं (Features of Indian Climate in Hindi)

    स्थलाकृतिक (topographical) विविधता जैसे कि ऊंचाई, स्थिति, समुद्री से दूरी होने के कारण भारत में स्थानीय रूप से मौसम में विविधता काफी देखी जाती है।

    बारिश

    ज्यादातर भागों का जलवायु नम और शुष्क प्रदेश के आधार पर चिन्हित किया गया है। थार मरुस्थल एवं लद्दाख भाग में नमी वाला मौसम नहीं होता। हर जगह साल में होने वाला औसतीय बारिश अलग है।

    मेघालय के मौसेनरम और चेरापूंजी में 1000 सेमी तक बारिश होती है जबकि जैसलमेर में सिर्फ 12 सेमी बारिश होती है।

    गंगा का डेल्टा और ओडिशा के तटीय भाग में अगस्त और सितंबर में जोरदार बारिश होती है जबकि दक्षिणी पूर्वी तट (कोरोमंडल तट) इस समय सूखा होता है।

    उत्तर प्रदेश बिहार, दिल्ली आदि भागों में जून में बारिश होती है जबकि उत्तर पूर्वी राज्य में जुलाई में बारिश का मौसम शुरू होता है।

    तापमान

    भारत में प्रतिदिन और वार्षिक तापमान विभिन्नता देखी जाती है। प्रतिदिन के आधार पर सबसे ज्यादा तापमान में अंतर थार मरुस्थल के जगहों पर देखी जाती है और प्रतिवर्ष के आधार पर सबसे ज्यादा अंतर हिमालय क्षेत्रों में देखा जाता है।

    इस प्रकार का तापमान अंतर तटीय इलाकों में बहुत कम देखा जाता है। दिसंबर- जनवरी के महीने में जहां जम्मू कश्मीर के कुछ भागों में तापमान -40॰ सेल्सियस तक कम हो जाता है वहीँ तटीय इलाकों का तापमान 20-25॰ सेल्सियस तक रहता है।

    कुछ भागों में ठण्ड के समय काफी ठंडी होती है और गर्मियों के समय काफी गर्मी होती है। हिमालय क्षेत्रों में ठंडी मौसम में काफी भयावह ठण्ड पड़ती है जबकि गर्मी के समय तापमान ठीक ठाक रहता है।

    भारतीय जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Indian Climate in Hindi)

    अक्षांश स्थिति (Latitude Location)

    • भारत का जलवायु किसी भी उष्णकटिबंधीय देश के जलवायु जैसा है। भारत का मुख्य भूभाग 8॰ N से 37॰ N के बीच है। कर्क रेखा वाले भाग में सूर्य की किरणें काफी ज्यादा मात्रा में पहुँचती हैं। यहाँ गर्मी बहुत ज्यादा पड़ती है और ठंडी मध्यम मात्रा में होती है।
    • उत्तरी भाग उष्ण  तापमान क्षेत्र (warm temperature zone) में आते हैं। यहां सूर्य की रौशनी कम मात्रा में पहुँचती है। यहां बहुत ज्यादा गर्मी होती है और उस समय लू नामक गर्म हवा चलती है। पश्चिमी दबाव के कारण जो ठंडी हवा इस तरफ आती है, उससे यहां बहुत अधिक ठण्ड पड़ती है। इससे कुछ पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान बहुत नीचे चला जाता है।

    समुद्र से दूरी (Distance from the Sea in Hindi)

    समुद्र के पास होने के कारण यहाँ के क्षेत्रों में न ज्यादा गर्मी देखी जाती है, न ज्यादा सर्दी। मानसून सबसे पहले इन इलाकों में पहुँचता है जिससे यहां अच्छी बारिश होती है।

    हिमालय पर्वत का प्रभाव (Effect of Himalayas in Hindi)

    हिमालय भारत और मध्य एशिया के बीच जलवायु को बाँटने का काम करता है। यह पर्वत भारत के जलवायु को प्रभावित करने वाले सबसे महत्वपूर्ण कारक है।

    हिमालय ठंडी मौसम में पश्चिमी एशिया में से आने वाले ठंडी और शुष्क हवाओं को भारत में आने से रोकता है। मानसून के महीने में यह दक्षिणी पूर्वी मानसूनी हवाओं को रोक के रखता है जिससे ठीक से बारिश होती है।

    हिमालय के कारण बंगाल की खाड़ी से आने वाले मानसूनी हवाएं दो भागों में बट जाते हैं – एक भाग उत्तर पश्चिमी एशिया की ओर जाता है और दूसरा भाग दक्षिणी पूर्व एशिया की ओर जाता है।

    अगर हिमालय न होता तो भारत आज मरुस्थल होता और मानसूनी हवा चीन की तरफ चली जाती।

    उष्णकटिबंधीय चक्रवात एवं पश्चिमी विभोक्ष (Tropical Cyclone & Western Disturbances in Hindi)

    उष्णकटिबंधीय विभोक्ष बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर में उत्पन्न होते हैं और भारतीय उपमहाद्वीप के कई महत्वपूर्ण भागों को प्रभावित करते हैं।

    इनमे से ज्यादातर चक्रवात बंगाल की खाड़ी में पैदा होते हैं और दक्षिणी पश्चिमी मानसून के जलवायु को प्रभावित करते हैं।

    अक्टूबर और नवंबर के महीने में मानसून खत्म होने के बाद इस महीने के दौरान बहुत चक्रवात आते हैं जो पूर्वी तटीय इलाकों को प्रभावित करते हैं।

    मेडिटेरेनियन sea में पश्चिमी दबाव बनता है और और यह चक्रवात पूर्व की तरफ मुड़ जाते हैं। यह उत्तरी मैदान और पश्चिमी हिमालय भाग के तापमान को प्रभावित करते हैं।

    मानसून के दौरान पश्चिमी से पूर्वी भाग में बारिश के कम हो जाने का कारण

    गर्मी के मौसम के दौरान उत्तरी मैदान में कई जगह कम दबाव (pressure) वाले बिंदु मौजूद होते हैं।

    जैसे ही मानसूनी हवा पूर्वी से पश्चिमी छोर की ओर जाता है तो इन दबाव बिंदुओं पर तेज बारिश होने के कारण कम दबाव वाले क्षेत्रों में भारी बारिश हो रही होती है।

    जब तक हवा पश्चिमी छोर तक पहुँचता है तब तक मानसून के हवाओं की नमी खत्म हो चुकी होती है।

    हरियाणा और पंजाब प्रदेशों में सर्दी के मौसम में पश्चिमी दबाव के कारण बारिश होती है। गर्मी के मौसम के दौरान यहां बहुत कम बारिश होती है।

    गुजरात एवं राजस्थान में मानसून के हवा को रोकने के लिए कोई पर्वतीय घेराव नहीं है, अतः मानसूनी हवा यहां ज्यादा देर नहीं टिकती और इन प्रदेशों में बहुत कम बारिश होती है। राजस्थान में हवाएं अरावली पहाड़ के समानांतर से निकल जाती हैं।

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