अफ्रीकी राष्ट्रों में चीन में प्रभाव बढ़ते हुए देखकर भारत ने भी कदम उठाने पर विचार किया है। भारत ने पहली बार भारत-अफ्रीका जमीनी अभ्यास की शुरुआत करने का मन बना लिया है। इस अभ्यास में 12 अफ्रीकी राष्ट्रों के भाग लेने की संभावना है। इसमें मिस्र, घाना, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, सूडान, तंज़ानिया और युगांडा अफ्रीकी देश शामिल होंगे। यह समारोह 18 से 27 मार्च के बीच महाराष्ट्र के पुणे में आयोजित होगा।
भारत ने हमेशा अफ्रीकी राष्ट्रों के साथ अच्छे संबंध बरकरार रखे हैं लेखों बीते एक दशक में अफ्रीकी राष्ट्रों में चीन का प्रभाव बढ़ने लगा है। साल 2018 में चीन ने दजिबोटी में नौसैन्य बेस की स्थापना की है, इससे अफ्रीका में चीन की महत्वता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। दजिबोटी एक पूर्वी अफ्रीकी देश है।
यह सबूत है कि चीन हिन्द महासागर के इर्द गिर्द अपनी पैठ को मज़बूत कर रहा है। चीन अफ्रीकी राष्ट्रों को हथियार निर्यात करने वाला सबसे बड़ा राष्ट्र बनकर उभर रहा है। आंकड़ो के अनुसार साल 2013 से 2018 तक चीन से 55 प्रतिशत हथियारों का निर्यात अफ्रीकी राष्ट्रों में हुआ है। इस दौड़ में चीन रूस और अमेरिका से भी एक कदम आगे है।
अफ्रीकी क्षेत्र में चीनी प्रभाव मात्र सैन्य मंसूबों तक सीमित नही है बल्कि यह आर्थिक लक्ष्य हासिल करने का एक प्रयास है। अभी चीनी कंपनियां 51 अफ्रीकी राष्ट्रों में 2500 निर्माण परियोजनाओं से जुड़ी है, जिनकी अनुमानित लागत 94 अरब डॉलर है। चीन इस क्षेत्र को कर्ज के जाल में भी फंसाना चाहता है। अफ्रीका के राष्ट्रों ने अभी चीन से 1.5 अरब डॉलर का कर्ज लिया हुआ है।
पाकिस्तान और श्रीलंका की तरह चीन अफ्रीकी राष्ट्रों पर भी अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है और उन्हें अपने रणनीतिक फायदे के लिए इतेमाल करना चाहता है।