भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कल हिमाचल प्रदेश के रायगढ़ में अपनी रैली से प्रेम कुमार धूमल को हिमाचल प्रदेश में भाजपा का मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया। उनकी इस घोषणा से सभी सियासी पाण्डितों की गणनाएं गलत साबित हो गई है। सभी को उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, महाराष्ट्र, गोवा और हरियाणा की तरह भाजपा आलाकमान हिमाचल प्रदेश में भी नतीजों के आने के बाद ही मुख्यमंत्री का चुनाव करेगा पर अमित शाह की घोषणा ने इसपर पानी फेर दिया है। सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा जोरों पर थी कि केंद्रीय मंत्री जे पी नड्डा को हिमाचल प्रदेश में ठीक वैसे ही भाजपा का चेहरा बनाकर भेजा जा सकता है जैसे मनोहर पर्रिकर को गोवा भेजा गया था। पर हिमाचल प्रदेश के तेजी से बदलते सियासी समीकरणों को देखकर भाजपा आलाकमान ने अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया है।
ऐन वक्त में खेला दांव
भाजपा ने बतौर मुख्यमंत्री उम्मीदवार प्रेम कुमार धूमल को आगे करने का दांव ऐन वक्त पर खेला है। हिमाचल प्रदेश में 9 नवंबर को विधानसभा चुनाव प्रस्तावित हैं और 31 अक्टूबर को अमित शाह ने धूमल के दावेदारी की घोषणा की है। हालाँकि इस घोषणा के बाद हिमाचल भाजपा में असमंजस की स्थिति पैदा हो गई है। हिमाचल भाजपा के एक अन्य दिग्गज नेता और मोदी कैबिनेट में शामिल जे पी नड्डा के प्रभावशाली प्रदर्शन को देखते हुए उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था। बीते समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी नड्डा पर काफी मेहरबान रहे हैं। लेकिन ऐन वक्त पर किए गए इस बदलाव का कारण हिमाचल कांग्रेस द्वारा वीरभद्र सिंह को कमान देना कहा जा रहा है। अब हिमाचल प्रदेश में टक्कर भाजपा और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच है।
जातिगत समीकरण साध रही है भाजपा
प्रेम कुमार धूमल को ऐन वक्त पर मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर भाजपा आलाकमान ने हिमाचल प्रदेश में जातिगत समीकरणों को साधने का प्रयास किया है। हिमाचल प्रदेश के मतदाता वर्ग पर नजर डालें तो राज्य की तकरीबन 37 फीसदी आबादी राजपूत समाज की है। ब्राह्मण मतदाताओं की आबादी 18 फीसदी है। सवर्ण वर्ग को हमेशा से भाजपा का कोर वोटबैंक माना जाता है। हिमाचल भाजपा के पास दोनों वर्गों के बड़े नेता हैं। मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल राजपूत समाज से आते हैं वहीं मोदी सरकार में मंत्री जे पी नड्डा ब्राह्मण समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। अगर जातिगत समीकरणों के आधार पर देखें तो धूमल का पलड़ा भारी दिखाई देता है। भाजपा आलाकमान ने इसी आधार पर जे पी नड्डा की जगह प्रेम कुमार धूमल को तरजीह दी है।
मोदी-शाह की पसंद थे नड्डा
2014 में मोदी सरकार के गठन के बाद नवंबर में हुए पहले मन्त्रिमण्डल विस्तार में जे पी नड्डा को स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया था। बतौर स्वास्थ्य मंत्री अपने 3 वर्षों के कार्यकाल में नड्डा काफी प्रभावी रहे हैं और मोदी सरकार के सबसे लोकप्रिय मंत्रियों में से एक हैं। पिछले 2 सालों से भाजपा आलाकमान जिस तरह से नड्डा के लिए हिमाचल प्रदेश में भूमिका बना उम्मीदें दी थी, धूमल की उम्मीदवारी की घोषणा से उनपर पानी फिर गया। जे पी नड्डा को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जे पी नड्डा की भी पहली पसंद माना जा रहा था। हिमाचल प्रदेश में पीएम मोदी और अमित शाह की रैलियों की जिम्मेदारी भी नड्डा के कन्धों पर थी। पर राज्य में सत्ता वापसी की कोशिशों में जुटी भाजपा ने ऐन वक्त पर व्यक्तिगत पसंद नड्डा की जगह सियासी समीकरणों में फिट बैठ रहे धूमल पर दांव खेला।
सत्ता की चाह में ‘रूल 75’ दरकिनार
भाजपा हिमाचल प्रदेश में सत्ता वापसी को कितनी आतुर है इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा आलाकमान ने सत्ता की चाह में ‘रूल 75’ को ताक पर रख दिया है। अमित शाह ने मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर प्रेम कुमार धूमल के नाम का ऐलान कर यह स्पष्ट कर दिया कि भाजपा सत्ता वापसी के लिए एक बार अपने सिद्धांतों से समझौता कर सकती है। प्रेम कुमार धूमल की आयु 73 वर्ष, 6 महीने है। चुनाव परिणाम की घोषणा के वक्त तक उनकी आयु 73 वर्ष, 8 महीने हो जाएगी। अगर भाजपा के ‘रूल 75’ के लिहाज से देखें तो बतौर मुख्यमंत्री उनके पास 16 महीने का कार्यकाल होगा। भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की लोकप्रियता को हिमाचल में सत्ता वापसी का आधार बनाना चाहती है।
विकल्प बन सकते हैं नड्डा
अगर भाजपा हिमाचल प्रदेश में सरकार बनाने में सफल रहती है तो प्रेम कुमार धूमल के हाथ में मुख्यमंत्री पद की कमान होगी। मुमकिन है भाजपा सत्ता में आने के बाद हिमाचल प्रदेश में भी ‘रूल 75’ का पालन करे। ऐसे में तकरीबन डेढ़ वर्षों बाद धूमल की विदाई तय है। भाजपा उनकी जगह अपनी पहली पसंद जे पी नड्डा को हिमाचल प्रदेश सौंप सकती है और प्रेम कुमार धूमल को नड्डा की खाली की गई सीट से राज्यसभा भेज सकती है। 2019 लोकसभा चुनावों के मद्देनजर हिमाचल प्रदेश के ‘किंग मेकर’ राजपूत समाज को साधने के लिए भाजपा आलाकमान प्रेम कुमार धूमल या उनके पुत्र अनुराग ठाकुर में से किसी एक को मोदी मन्त्रिमण्डल में शामिल कर सकती है। धूमल को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने का दांव अमित शाह के दिमाग की उपज है और इसके लिए निश्चित तौर पर उन्होंने सियासी गुणा-भाग कर के फैसला लिया होगा।
हिमाचल का सियासी समीकरण
हिमाचल प्रदेश विधानसभा में कुल 68 सीटें है। 2012 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने 36 सीटों पर कब्जा जमाया था वहीं भाजपा को 26 सीटों पर कामयाबी मिली थी। अन्य दलों के हाथ 6 सीटें लगी थी। 2012 में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा को 2007 के चुनावों की अपेक्षा 16 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा था वहीं कांग्रेस को 13 सीटों का फायदा हुआ था। अगर मतों के लिहाज से देखें तो कांग्रेस को 43 फीसदी मत मिले थे वहीं भाजपा को 39 फीसदी मत मिले थे। 2007 के चुनावों की अपेक्षा भाजपा के मत प्रतिशत में 5 फीसदी की कमी आई थी वहीं कांग्रेस का मत प्रतिशत 5 फीसदी बढ़ गया था। 4 फीसदी मतान्तर के बावजूद भाजपा कांग्रेस से 10 सीट पीछे रही थी। अब भाजपा सवर्ण समीकरण को साध मतान्तर पाटकर सत्ता वापसी की राह तलाशने में जुटी है।
हिमाचल प्रदेश में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव भाजपा और कांग्रेस के लिए साख की लड़ाई बन चुका है। दिग्गज कांग्रेसी और राज्य के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह संभवतः अपनी आखिरी सियासी पारी खेलने को तैयार है वहीं प्रमुख विपक्षी दल भाजपा सत्ता वापसी की जी-तोड़ कोशिशों में लगी हुई है। वीरभद्र सिंह के राजनीतिक कद और व्यक्तित्व को देखते हुए भाजपा आलाकमान ने सभी समीकरणों में फिट बैठ रहे प्रेम कुमार धूमल पर दांव खेला है। जे पी नड्डा की जगह प्रेम कुमार धूमल की उम्मीदवारी से भाजपा अपना कोर वोटबैंक साधने की कोशिश में है। एक ओर जहाँ हिमाचल की वादियों में पारा लगातार गिर रहा है वहीं सियासी सरगर्मियां लगातार बढ़ रही हैं। सबकी नजरें इस बात पर टिकी हैं कि हिमाचल की सियासत में बाजी किसके हाथ लगती है।