पश्चिम बंगाल में पिछले कुछ दिनों से लगातार राजनीतिक घमासान मचा हुआ है। एक ओर जहाँ टीएमसी की मुखिया और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी है, वहीं दूसरी ओर भाजपा खड़ी है। एक ओर जहाँ तृणमूल कॉंग्रेस अपनी पकड़ बंगाल में ढीली नहीं होने देना चाहती है, जबकि भाजपा वहाँ सेंधमारी की भरपूर कोशिशों में लगी हुई है।
भाजपा के कई वरिष्ठ नेता पिछले कुछ महीनों में ही पश्चिम बंगाल में कई रैलियों को संबोधित कर चुके है। इन नेताओं में भाजपा के सबसे महत्वपूर्ण नाम जैसे नरेंद्र मोदी, अमित शाह व योगी आदित्यनाथ शामिल रहे हैं।
हालाँकि इन नेताओं की रैलियों के बाद भी भाजपा पश्चिम बंगाल में अपनी रथयात्रा निकालने में अभी तक असमर्थ रही है। इसी के साथ ही भाजपा को अभी गैर-मुस्लिम आप्रवासी बिल पास कराने के लिए कठनाई उठानी पड़ रही है।
पश्चिम बंगाल में बीजेपी की कोशिशों को लेकर विश्लेषकों का मानना है कि हो सकता है कि भाजपा इस बार अपने 2014 वाले लोकसभा चुनाव प्रदर्शन को न दोहरा सके, ऐसे में भाजपा जिसके लिए हिन्दी पट्टी के राज्य खास मायने रखते हैं, अब गैर हिन्दी राज्यों पर भी अपनी पकड़ को और भी मजबूत करना चाहती है।
मालूम हो कि भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में उत्तर प्रदेश में 80 में से 71 सीटों पर कब्जा किया था, लेकिन इस बार राज्य में हाल ही में हुए सपा-बसपा गठबंधन के चलते भाजपा के लिए 2014 वाला प्रदर्शन दोहराना काफी मुश्किल हो जाएगा।
भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल का अभेद किला पार करना बेहद जरूरी है। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में जब मोदी लहर का बोलबाला था, तब भी भाजपा पश्चिम बंगाल की कुल 42 सीटों में से महज 2 सीटें ही जीत पायी थी।
गौरतलब है कि लोकसभा सीटों के मामले में पश्चिम बंगाल उत्तर प्रदेश(80) और महाराष्ट्र (48) के बाद तीसरा सबसे बड़ा राज्य है।
वर्ष 2014 में भाजपा के लिए पश्चिम बंगाल में वोट प्रतिशत भी 17 प्रतिशत रहा था। ऐसे में भाजपा अब पश्चिम बंगाल को किसी भी हालत में अपने काबू में करना चाहती है।
भाजपा के लिए राहत की बात यह हो सकती है कि पिछले वर्ष राज्य में हुए पंचायती चुनाव में भाजपा ने 23 सीटों पर कब्जा किया था, जबकि इसके पहले उसका प्रदर्शन शून्य था।