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    आयकर विभाग

    राजनीतिक दृष्टिकोण से पिछले कुछ महीने देश के लिए बड़े अहम रहे हैं। उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत से सत्ता में आने के बाद भाजपा ऐसी पार्टी बन गई थी जो देश के सभी बड़े हिन्दीभाषी राज्यों में सत्ता पर काबिज थी। सब कुछ मोदी-शाह के ‘मिशन-2019’ के अनुरूप चल रहा था। पर रह-रह कर विपक्षी दलों के मन में केंद्रीय महागठबंधन का ख्वाब हिलोरें मार रहा था। ऐसा होता भी क्यों नहीं आखिर एक महागठबंधन ने ही बिहार में भाजपा का ‘विजय रथ’ थामकर ‘मोदी लहर’ को रोक दिया था। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से एक के बाद पूरे देश में जिस कीचड़ में कमल खिल रहा था पहली बार उसी कीचड़ में भाजपा के ‘विजय रथ’ का पहिया धंस गया था। लालू प्रसाद यादव की आरजेडी , नीतीश कुमार की जेडीयू और कांग्रेस के अनोखे मेल से बना यह महागठबंधन बिहार में ‘मोदी लहर’ के खिलाफ कारगर रहा था। इस जीत ने विपक्षी दलों की उम्मीदें और भाजपा की चिंता बढ़ा दी थी। नीतीश कुमार को महागठबंधन उम्मीदवार के तौर पर 2019 में मोदी के विकल्प के रूप में देखा जाने लगा। निश्चित रूप से भाजपा को केंद्रीय महागठबंधन वाली बात और बिहार में हार कचोट रही थी।

    भाजपा ने पार्टी के बिहार प्रभारी सुशील मोदी को इस महागठबंधन की कमजोर कड़ी ढूंढने को कहा और मोदी तन-मन से इसमें लग गए। नीतीश कुमार ने हमेशा ही अपनी छवि को भ्रष्टाचार मुक्त रखा था और उनकी छवि भी ‘सुशासन बाबू’ की रही है। नीतीश कुमार के परिवार का कोई भी सदस्य राजनीति में सक्रिय नहीं है। कांग्रेस पूरे देश में अपनी जड़ें तलाश रही है ऐसे में कमजोर कड़ी बने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव। लालू प्रसाद यादव और घोटालों का बड़ा पुराना साथ है और वो तो इंसानी उपभोग की वस्तुओं से परे जानवरों का चारा खाने में भी उस्ताद हैं। किसी भी इंसान के वर्तमान पर उसके अतीत का प्रभाव होता है और कोई न कोई कड़ी उसे उसके अतीत से जोड़ती है। यही वाक्य लालू प्रसाद यादव के साथ भी घटित हुआ। लालू यादव के रेलमंत्री कार्यकाल में हुए घोटालों के कारण पूरा यादव परिवार आरोपों के लपेटे में आ गया और यह महागठबंधन टूटने का कारण बना। इस पूरे घटनाक्रम में सीबीआई की बड़ी अहम भूमिका रही और उसने प्रेस रिलीज़ कर सारे तथ्य जनता के सामने उजागर किये। भाजपा ने इसे मुद्दा बनाकर नीतीश कुमार पर दबाव बनाया और अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंदी को अपने खेमे में मिला लिया।

    सीबीआई

     

    आज सुबह ही आयकर विभाग द्वारा कर्नाटक के ऊर्जा मंत्री डीके शिवकुमार के 37 ठिकानों पर छापेमारी की गई। इनमें वह ईगलटन रेसॉर्ट भी शामिल था जहाँ गुजरात कांग्रेस के विधायक ठहरे हुए हैं। आयकर विभाग ने कहा कि उसे शक था कि शिवकुमार के पास भारी मात्रा में नकदी है। हालांकि रेसॉर्ट से कोई नकदी बरामद नहीं हुई। रेसॉर्ट में विधायकों के कमरों के आलावा उनकी गाड़ियों की भी जांच की गई। शिवकुमार के भाई और एक अन्य सहयोगी के घर पर भी छापेमारी हुई। शिवकुमार के दिल्ली स्थित आवास से 5 करोड़ नकदी बरामद हुई है। कांग्रेस रेसॉर्ट में छापेमारी को भाजपा के इशारे पर उठाया गया कदम बता रही है वहीं आयकर विभाग का कहना है कि शिवकुमार रेसॉर्ट में छिपे थे। ऐसे में रेसॉर्ट में छापेमारी के सिवा हमारे पास दूसरा कोई रास्ता नहीं था। बता दें कि गुजरात में होने वाले राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार अहमद पटेल की दावेदारी के खिलाफ भाजपा ने बलवंत सिंह राजपूत को खड़ा किया है। वह बागी कांग्रेसी नेता शंकर सिंह वाघेला के समधी हैं। वाघेला की बगावत के बाद से गुजरात में कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे का दौर शुरू हो गया था जिससे अहमद पटेल की उम्मीदवारी खतरे में पड़ गई थी। दावेदारी पुख्ता करने के लिए कांग्रेस अपने विधायकों को बैंगलोर के इस रेसॉर्ट में लायी थी। विधायकों के इस्तीफे पर कांग्रेस ने गुजरात में भाजपा पर सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था। चुनाव आयोग ने भी ऐन वक़्त पर राजयसभा चुनावों में नोटा के इस्तेमाल का आदेश दिया है जिसे केंद्र के दबाव में लिया गया निर्णय माना जा रहा है।

    आयकर विभाग

     

    कहने को तो ये सारी ही संस्थाएं ‘स्वतंत्र’ रूप से कार्य करती हैं और इनकी कार्यप्रणाली में सरकार का कोई हस्तक्षेप नहीं होता है, पर हालिया घटनाक्रमों के बाद इसपर संदेह होने लगा है। देश की राजनीति में हुए हर बदलाव में इन एजेंसियों की भूमिका उभरकर सामने आई है। अब दो बातें हो सकती हैं, या तो इन एजेंसियों को अब तक अपना ‘अधिकार’ क्षेत्र नहीं पता था या फिर ये अब तक ‘स्वतंत्र’ भूमिका में नहीं थी। यूँ प्रतीत होता है कि भाजपा ने विपक्ष के खिलाफ इन ‘स्वतंत्र’ सरकारी एजेंसियों से गठबंधन कर लिया है और ये सभी एजेंसियां सहयोगी दल की भूमिका बखूबी निभा रही हैं।

    By हिमांशु पांडेय

    हिमांशु पाण्डेय दा इंडियन वायर के हिंदी संस्करण पर राजनीति संपादक की भूमिका में कार्यरत है। भारत की राजनीति के केंद्र बिंदु माने जाने वाले उत्तर प्रदेश से ताल्लुक रखने वाले हिमांशु भारत की राजनीतिक उठापटक से पूर्णतया वाकिफ है।मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक करने के बाद, राजनीति और लेखन में उनके रुझान ने उन्हें पत्रकारिता की तरफ आकर्षित किया। हिमांशु दा इंडियन वायर के माध्यम से ताजातरीन राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर अपने विचारों को आम जन तक पहुंचाते हैं।